माँ सिद्धिदात्री – माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति
माँ दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्र-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता है। ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य उसमें आ जाती है।
नौवें शारदीय नवरात्र 2022 तिथि | Ninth Shardiya Navratri 2022 Date :-
नवमी तिथि आरम्भ: 03 अक्टूबर 2022, दिन सोमवार को शाम 04 बजकर 39 मिनट से
नवमी तिथि समाप्त: 04 अक्टूबर 2022, दिन मंगलवार को दोपहर 02 बजकर 22 मिनट तक।
पूजन और पारण: उदिया तिथि के कारण नवमी का पूजन और पारण 04 अक्टूबर को ही किया जाएगा।
नौवें शारदीय नवरात्र 2022 पूजा शुभ मुहूर्त | Ninth Shardiya Navratri 2022 Subh Muhurat :-
ब्रह्म मुहूर्त : प्रात:काल 04:53 से 05:41 तक।
प्रातः सन्ध्या : प्रात:काल 05:17 से 06:30 तक।
अभिजीत मुहूर्त : दोपहर 12:03 से 12:51 तक।
विजय मुहूर्त : दोपहर 02:26 से 03:14 तक।
अमृत काल : शाम 04:52 से 06:22 तक।
गोधूलि मुहूर्त : शाम 06:13 से 06:37 तक।
रवि योग : पूरे दिन
4 अक्टूबर 2022, मंगलवार दुर्गा महा नवमी का शुभ चौघड़िया | Durga Maha navami 2022 shubh choghadiya:
दिन का चौघड़िया :
लाभ – सुबह 10 बजकर 41 मिनट से दोपहर 12 बजकर 10 मिनट तक।
अमृत – दोपहर 12 बजकर 10 मिनट से 01 बजकर 38 मिनट तक।
शुभ (वार वेला) – दोपहर 03 बजकर 07 मिनट से 04 बजकर 35 मिनट तक।
रात का चौघड़िया :
अमृत – शाम 04 बजकर 54 मिनट तक से 06 बजकर 27 मिनट तक।
लाभ (काल रात्रि)– रात्रि 07 बजकर 35 मिनट से 09 बजकर 07 मिनट तक।
शुभ – रात्रि 10 बजकर 38 मिनट से 12 बजकर 10 मिनट तक। अक्टूबर 05
अमृत– रात्रि 12 बजकर 10 मिनट से 01 बजकर 41 मिनट तक। अक्टूबर 05
माँ सिद्धिदात्री का स्वरूप | Maa Siddhidatri Ka Swaroop:-
देवी सिद्धिदात्री का रूप अत्यंत सौम्य है, देवी की चार भुजाएं हैं। दाईं भुजा में माता ने चक्र और गदा धारण किया है और बांई भुजा में शंख और कमल का फूल है। मां सिद्धिदात्री कमल आसन पर विराजमान रहती हैं, मां की सवारी सिंह हैं।मां दुर्गा के इस स्वरूप की पूजा करने से सभी प्रकार की सिद्धियों की प्राप्ति होती है।माँ सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को ये सभी सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ हैं। देवीपुराण के अनुसार भगवान शिव ने इनकी कृपा से सिद्धियों को प्राप्त किया था। इनकी अनुकम्पा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वे लोक में 'अर्द्धनारीश्वर' नाम से प्रसिद्ध हुए।माँ की आराधना वाले इस दिन को रामनवमी भी कहा जाता है और शारदीय नवरात्रि के अगले दिन अर्थात दसवें दिन को रावण पर राम की विजय के रूप में मनाया जाता है।
माँ सिद्धिदात्री का महत्व | Maa Siddhidatri ki Puja Ka Mahatva/ Importance:-
माना जाता है कि माँ सिद्धिदात्री की पूजा करने से सभी प्रकार की सिद्धियों की प्राप्ति होती है। नवरात्रि के अंतिम दिन यानी नवमी के दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।माँ सिद्धिदात्री की उपासना से उनके भक्त को महत्वाकांक्षाए, असंतोष, आलस्य,ईष्या परदोषदर्शन, प्रतिशोध आदि सभी प्रकार की दुर्बलताओं से छुटकारा मिलता है।देवी सिद्धिदात्री की उपासना से मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व जैसी सभी आठों प्रकार की सिद्धियां साधक को प्राप्त होती हैं।ब्रह्मवैवर्त पुराण के श्रीकृष्ण जन्म खंड में यह संख्या अठारह बताई गई है।इनके नाम इस प्रकार हैं-1.सर्वकामावसायिता 2. सर्वज्ञत्व 3. दूरश्रवण 4. परकायप्रवेशन 5. वाक्सिद्धि 6. कल्पवृक्षत्व 7. सृष्टि 8.संहारकरणसामर्थ्य 9. अमरत्व 10 सर्वन्यायकत्व|यह देवी।इन सभी सिद्धियों की स्वामिनी हैं। इनकी पूजा से भक्तों को ये सिद्धियां प्राप्त होती हैं।
माँ सिद्धिदात्री की पूजा विधि | Maa Siddhidatri Ki Puja Vidhi:-
- इस दिन पूजा करने के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान कर स्वच्छ हो जाएं। उसके बाद साधक को शुद्ध होकर साफ वस्त्र धारण करने चाहिए।
- सर्वप्रथम कलश की पूजा व उसमें स्थपित सभी देवी-देवताओ का ध्यान करना चाहिए।
- इसके बाद एक चौकी पर मां की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।इसके पश्चात माता के मंत्रो का जाप कर उनकी विधिवत पूजा करनी चाहिए।
- इस दिन माता सिद्धिदात्री को नवाह्न प्रसाद, नवरस युक्त भोजन, नौ प्रकार के पुष्प और नौ प्रकार के ही फल अर्पित करने चाहिए।
- उसके बाद भगवान शंकर और ब्रह्मा जी की पूजा पश्चात अंत में इनके नाम से हवि देकर आरती और क्षमा प्रार्थना करें। हवन में जो भी प्रसाद चढ़ाया है उसे बाटें और हवन की अग्नि ठंडी को पवित्र जल में विसर्जित कर दें अथवा भक्तों के में बाँट दें।यह भस्म- रोग, संताप एवं ग्रह बाधा से आपकी रक्षा करती है एवं मन से भय को दूर रखती है।
- इस दिन कन्या पूजन भी किया जाता है। इस दिन नौ कन्याओं को घर में भोग लगाना चाहिए। नव-दुर्गाओं में सिद्धिदात्री अंतिम है तथा इनकी पूजा से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। कन्याओं की आयु दो वर्ष से ऊपर और दस वर्ष तक होनी चाहिए और इनकी संख्या कम से कम 9 तो होनी ही चाहिए। यदि 9 से ज्यादा कन्या भोज पर आ रही है तो कोई आपत्ति नहीं है। उन्हें भोजन कराकर दक्षिणा दें और अंत में उनका पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त करें।
- इस तरह से की गई पूजा से माता अपने भक्तों पर तुरंत प्रसन्न होती है। भक्तों को संसार में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन भक्तों को अपना सारा ध्यान निर्वाण चक्र की ओर लगाना चाहिए। यह चक्र हमारे कपाल के मध्य में स्थित होता है। ऐसा करने से भक्तों को माता सिद्धिदात्री की कृपा से उनके निर्वाण चक्र में उपस्थित शक्ति स्वतः ही प्राप्त हो जाती है।
माँ सिद्धिदात्री की कथा :-
माँ सिद्धिदात्री के बारे अनेक कथा प्रसंग प्राप्त होते हैं। जिसमें दुर्गा सप्तशती के कुछ प्रसंग माँ सिद्धिदात्री के विषय में है। क्योंकि इन्हीं के द्वारा ही व्यक्ति को सिद्धि, बुद्धि व सुख-शांति की प्राप्ति होगी। और घर का क्लेश दूर होता है। पारिवार में प्रेम भाव का उदय होता है। अर्थात् यह देवी ही सर्वमय हैं, जिसे एक कथानक में देवी स्वतः ही स्वीकार किया है कि -इस संसार में मेरे सिवा दूसरी कौन है? देख, ये मेरी ही विभूतियाँ हैं, अतः मुझमें ही प्रवेश कर रही हैं। तदनन्तर ब्रह्माणी आदि समस्त देवियाँ अम्बिका देवी के शरीर में लीन हो गयीं। उस समय केवल अम्बिका देवी ही रह गयीं। देवी बोली- मैं अपनी ऐश्वर्य शक्ति से अनेक रूपों में यहाँ उपस्थित हुई थी। उन सब रूपों को मैंने समेट लिया। अब अकेली ही युद्ध में खड़ी हूँ। तुम भी स्थिर हो जाओ। तदनन्तर देवी और शुम्भ दोनों में सब देवताओं तथा दानवों के देखते-देखते भयंकर युद्ध छिड़ गया।।
ऋषि कहते हैं – तब समस्त दैत्यों के राजा शुम्भ को अपनी ओर आते देख देवी ने त्रिशूल से उसकी छाती छेदकर उसे पृथ्वी पर गिरा दिया। देवी के शूल की धार से घायल होने पर उसके प्राण-पखेरू उड़ गये और वह समुद्रों, द्वीपों तथा पर्वतों सहित समूची पृथ्वी को कॅपाता हुआ भूमि पर गिर पड़ा।। तदनन्तर उस दुरात्मा के मारे जाने पर सम्पूर्ण जगत् प्रसन्न एवं पूर्ण स्वस्थ हो गया तथा आकाश स्वच्छ दिखायी देने लगा। पहले जो उत्पात सूचक मेघ और उल्कापात होते थे, वे सब शान्त हो गये तथा उस दैत्य के मारे जाने पर नदियां भी ठीक मार्ग से बहने लगीं।
मां सिद्धिदात्री की कृपा से बने महादेव अर्धनारीश्वर, जानिए पूरी कथा
देवी दुर्गा के इस अंतिम स्वरुप को नव दुर्गाओं में सबसे श्रेष्ठ और मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है। भगवान शिव ने भी इस देवी की कृपा से यह तमाम सिद्धियां प्राप्त की थीं। इनकी कृपा से ही महादेव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण शिव अर्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए।
शिव पुराण के अनुसार जब सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्माजी ने देखा उन्होंने जिस ब्रह्मांड की रचना की है उसमें विकास की गति नहीं है। उन्होंने पाया कि पशु-पक्षी और मनुष्य की संख्या में बढ़ोत्तरी नहीं हो रही है। कहा जाता है कि तब आकाशवाणी के अनुसार ब्रह्माजी ने मैथुनी (प्रजननी) सृष्टि उत्पन्न करने का संकल्प किया। ब्रह्माजी ने जब इस बारे में भगवान विष्णु से पूछा तो उन्होंने महादेव की आराधना करने को कहा।
इसके बाद ब्रह्माजी ने शक्ति के साथ शिव को संतुष्ट करने के लिए तपस्या की । ब्रह्माजी की तपस्या से परमात्मा शिव संतुष्ट हो अर्धनारीश्वर का रूप धारण कर उनके समीप गए तथा अपने शरीर में स्थित देवी शक्ति के अंश को पृथक कर दिया। तब ब्रह्माजी ने उस परम शक्ति की स्तुति की। ब्रह्माजी की स्तुति से प्रसन्न होकर शक्ति ने अपनी भृकुटि के मध्य से अपने ही समान कांति वाली एक अन्य शक्ति की सृष्टि की जिसने हिमालय की पुत्री पार्वती रूप में जन्म लेकर महादेव से मिलन किया।
मां सरस्वती का स्वरूप हैं मां सिद्धिदात्री, देती हैं सफलता का वरदान
माँ सिद्धिदात्री को विद्या की देवी मां सरस्वती का भी स्वरूप माना जाता है। नवरात्रि में जिन देवियों के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है उनमें माँ सिद्धिदात्री को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है। इन्हें सम्पूर्णता की देवी भी कहा गया है।
वैसे तो माँ सिद्धिदात्री की पूजा कभी भी की जा सकती है लेकिन नवरात्रि के नौवें दिन को श्रेष्ठ माना गया है। इस दिन विधि-विधान और पूरी निष्ठा से इनकी पूजा करने वाले भक्तों को सभी सिद्धियां प्राप्त होती हैं। दुनिया में कुछ भी उसके लिए असंभव नहीं रहता। मां की कृपा से साधक में सभी क्षेत्रों में विजय प्राप्त करने के लिए सामर्थ्य आ जाती है।
कहा जाता है कि साधारण मनुष्यों के अलावा रिषि मुनि और देवता भी हर काम में सफलता प्राप्त करने के लिए मां सिद्धदात्री की पूजा, साधना करते हैं। मां सिद्धदात्री की साधना से लोगों की सभी भौतिक और अध्यात्मिक मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
इनकी पूजा और उपासना विद्यार्थियों के बहुत ही लाभकारी बताई गई है। सभी विद्याओं में सफलता और श्रेष्ठता प्राप्त करने के लिए मां सिद्धदात्री का आशीर्वाद अत्यंत आवश्यक होता है।
माँ सिद्धिदात्री के मंत्र :
या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और माँ सिद्धिदात्री के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे अपनी कृपा का पात्र बनाओ।
माँ सिद्धिदात्री के श्लोक:-
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि । सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी ।।
माँ सिद्धिदात्री का ध्यान :-
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥
स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।
शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम्॥
पटाम्बर, परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदना पल्लवाधरां कातं कपोला पीनपयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां श्रीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
माँ सिद्धिदात्री की स्तोत्र पाठ :-
कंचनाभा शखचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।
स्मेरमुखी शिवपत्नी सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकारं भूषिता।
नलिस्थितां नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोअस्तुते॥
परमानंदमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥
विश्वकर्ती, विश्वभती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्व वार्चिता विश्वातीता सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी।
भव सागर तारिणी सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥
धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनी।
मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिध्दिदात्री नमोअस्तुते॥
माँ सिद्धिदात्री का कवच :-
ओंकारपातु शीर्षो मां ऐं बीजं मां हृदयो।
हीं बीजं सदापातु नभो, गुहो च पादयो॥
ललाट कर्णो श्रीं बीजपातु क्लीं बीजं मां नेत्र घ्राणो।
कपोल चिबुको हसौ पातु जगत्प्रसूत्यै मां सर्व वदनो॥
माँ सिद्धिदात्री की आरती ( Maa Siddhidatri Aarti):-
जय सिद्धिदात्री तू सिद्धि की दाता।
तू भक्तो की रक्षक तू दासो की माता।।
तेरा नाम लेते ही मिलती हैं सिद्धि।
तेरे नाम से मन की होती हैं शुद्धि।।
कठिन काम सिद्ध कराती हो तुम
जभी हाथ सेवक के सर धरती हो तुम।।
तेरी पूजा मैं तो न कोई विधि हैं ।
तू जगदम्बें दाती तू सर्वसिद्धि हैं ।।
रविवार को तेरा सुमरिन करे जो।
तेरी मूर्ति को ही मन मैं धरे जो।।
तू सब काज उसके कराती हो पूरे
कभी काम उस के रहे न अधूरे।।
तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया।
रखे जिसके सर पैर मैया अपनी छाया।।
सर्व सिद्धि दाती वो हैं भागयशाली।
जो है तेरे दर का ही अम्बें सवाली।।
हिमाचल है पर्वत जहाँ वास तेरा।
महा नंदा मंदिर मैं हैं वास तेरा।।
मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता।
भक्ति हैं सवाली तू जिसकी दाता।।
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