चैत्र नवरात्रि 2022: तिथि, मुहूर्त एवं महत्व, जानें



सनातन धर्म में नवरात्रि का त्यौहार अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है जो हिन्दुओं द्वारा बेहद ही श्रद्धाभाव एवं हर्षोल्लास से मनाया जाता है। नवरात्रि का त्यौहार देवी दुर्गा को समर्पित एक पवित्र पर्व है और यह साल में कुल चार बार आता है। इन चार नवरात्रि के नाम इस प्रकार हैं: माघ, आषाढ़, चैत्र और आश्विन आदि। विश्व में हिंदू धर्म के अनुयायियों द्वारा मनाये जाने वाले नवरात्रि में देवी शक्ति के नौ अलग-अलग रूपों का पूजन किया जाता है।

प्रत्येक वर्ष चार नवरात्रि माघ, आषाढ़, चैत्र और आश्विन आदि को मनाने का विधान हैं, लेकिन इन चार नवरात्रि में से माघ और आषाढ़ को गुप्त नवरात्रि माना गया हैं। इनके अतिरिक्त चैत्र तथा आश्विन नवरात्रि वह दो नवरात्रि हैं, जिनका हिंदू धर्म में सर्वाधिक विशिष्ट महत्व है। चैत्र नवरात्रि को वसंत ऋतु में मनाया जाता हैं इसलिए इन्हें ‘वासंती नवरात्र’ भी कहा जाता हैं। इसके साथ ही चैत्र नवरात्रि को विशेष स्थान प्राप्त है क्योंकि चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन से हिंदू नववर्ष का आरम्भ माना गया है। चैत्र में आने वाले नवरात्रि को चैत्र नवरात्रि और शरद ऋतु में आने वाली नवरात्रि को शरद नवरात्रि या शारदीय नवरात्रि कहते हैं।

हिंदू पुराण और ग्रंथों के अनुसार, चैत्र नवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण नवरात्रि है जिसमें देवी शक्ति की पूजा की जाती थी, रामायण के अनुसार भी भगवान राम ने चैत्र के महीने में देवी दुर्गा की उपासना कर रावण का वध कर विजय प्राप्त की थी। इसी कारणवश चैत्र नवरात्रि पूरे भारत में, खासकर उत्तरी राज्यों में धूमधाम के साथ मनाई जाती है। यह हिंदू त्यौहार बिहार, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड में बहुत लोकप्रिय है। महाराष्ट्र और कोंकण में यह "गुड़ी पड़वा" के साथ शुरू होती है और इसे संवतसारा या संवत भी कहा जाता है, जबकि आंध्र प्रदेश जैसे दक्षिणी राज्यों में, यह उत्सव "उगादी" से शुरू होता है।

हिंदू नववर्ष का प्रारंभ : चैत्र नवरात्र से हिंदू नववर्ष का प्रारंभ माना जाता है और पंचांग की गणना की जाती है। पुराणों के अनुसार चैत्र नवरात्रि से पहले मां दुर्गा अवतरित हुई थीं। ब्रह्म पुराण के अनुसार, देवी ने ब्रह्माजी को सृष्टि निर्माण करने के लिए कहा। चैत्र नवरात्र के तीसरे दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में अवतार लिया था। श्रीराम का जन्म भी चैत्र नवरात्र में ही हुआ था।

ज्योतिष की दृष्टि से भी है अहम : ज्योतिषीय दृष्टि से  से भी चैत्र नवरात्र का विशेष महत्व है क्यूंकि इसके दौरान सूर्य का राशि परिवर्तन होता है। कहा जाता है कि नवरात्र में देवी और नवग्रहों की पूजा से पूरे साल ग्रहों की स्थिति अनुकूल रहती है। पंडितों का मानना है कि चैत्र नवरात्र के दिनों में मां स्‍वयं धरती पर आती हैं, इसलिए मां की पूजा से इच्छित फल की प्राप्ति होती है।

चैत्र नवरात्रि 2022 तिथि:


चैत्र नवरात्रितिथि
प्रथम नवरात्रि: माँ शैलपुत्री पूजा, घटस्थापनाप्रतिपदा तिथि, 2 अप्रैल 2022, शनिवार
दूसरा नवरात्र: माँ ब्रह्मचारिणी पूजाद्वितीया तिथि,3 अप्रैल 2022, रविवार
तीसरा नवरात्र: माँ चंद्रघंटा पूजातृतीया तिथि, 4 अप्रैल 2022 सोमवार
चौथा नवरात्र: माँ कुष्मांडा पूजाचतुर्थी तिथि, 5 अप्रैल 2022 मंगलवार
पांचवां नवरात्र: माँ स्कंदमाता पूजापंचमी तिथि, 6 अप्रैल 2022, बुधवार
छठा नवरात्र: माँ कात्यायनी पूजाषष्ठी तिथि, 7 अप्रैल 2022, गुरुवार
सातवां नवरात्र: माँ कालरात्रि पूजासप्तमी तिथि, 8 अप्रैल 2022, शुक्रवार
आठवां नवरात्र: माँ महागौरीअष्टमी तिथि, 9 अप्रैल 2022, शनिवार
नवां नवरात्र: माँ सिद्धिदात्रीनवमी तिथि, 10 अप्रैल 2022, रविवार
दसवां दिन नवरात्र पारणादशमी तिथि, 11 अप्रैल 2022, सोमवार

घट स्थापना शुभ मुहूर्त-


प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ : अप्रैल 01, 2022 को सुबह 11 बजकर 54 से शुरू 
प्रतिपदा तिथि समाप्त : अप्रैल 02, 2022 को सुबह 11 बजकर 57 पर समाप्त

चैत्र घटस्थापना शनिवार, अप्रैल 2, 2022 को-

घटस्थापना शुभ मुहूर्त: सुबह 6 बजकर 22 मिनट से 8 बजकर 31 मिनट तक 
घटस्थापना का अभिजीत मुहूर्त:  दोपहर 12:08 बजे से 12:57 बजे तक रहेगा।

सर्वार्थ सिद्धि योग:

वैदिक पंचांग के अनुसार नवरात्रि के दौरान सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है। लेकिन यह योग  3, 5, 6, 9 और 10 अप्रैल को बन रहा है। ज्योतिष में इस योग को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यता है कि यह योग हर कार्य में सिद्धि दिलाता है। मतलब इस योग में जो भी कार्य किया जाता है वह सफल हो जाता है।

रवि योग में करें मां दुर्गा की आराधना:

पंचांग के अनुसार रवि योग 4, 6 और 10 अप्रैल को बन रहा है। मान्यता है यह योग सभी कष्टों को दूर करता है। वहीं इस योग में पूजा- अर्चना करने से अक्षय पुण्य का फल प्राप्त होता है। 

चैत्र नवरात्रि का महत्व

चैत्र नवरात्रि की प्रतीक्षा देवी दुर्गा के भक्त साल भर करते है। विक्रम संवत के प्रथम दिन अर्थात चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर 9 दिन अर्थात नवमी तिथि तक चैत्र नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है। चैत्र नवरात्रि से ही गर्मियों के मौसम की शुरुआत होती है और प्रकृति एक महत्वपूर्ण जलवायु परिवर्तन से गुजरती है। चैत्र नवरात्रि सामान्यरूप से मार्च या अप्रैल माह में आते हैं।

चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि से प्रारम्भ हुए नवरात्रि की समाप्ति नवमी तिथि पर होती है। चैत्र नवरात्रि के अंतिम दिन अर्थात नवमी तिथि को भगवान श्रीराम के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। इस तिथि को रामनवमी के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन अयोध्या में भगवान श्रीराम ने माता कौशल्या के गर्भ से जन्म लिया था। इस वज़ह से चैत्र नवरात्रि को राम नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। नवरात्रि के नौ दिनों को किसी नए या मांगलिक कार्य की शुरुआत के लिए शुभ माना जाता है।

चैत्र नवरात्रि में माँ दुर्गा के नौ स्वरूप


 


चैत्र नवरात्रि के नौ दिनों में आदिशक्ति के नौ विभिन्न स्वरूपों का पूजन किया जाता है। इन नौ दिनों के दौरान अनेक प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान एवं पूजा करने का विधान हैं। देवी दुर्गा के नौ रूप इस प्रकार हैं:

माँ शैलपुत्री: माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों में से प्रथम स्वरूप है शैलपुत्री जो चंद्रमा को दर्शाता हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने की वजह से इन्हें शैलपुत्री के नाम से जाना गया। इनका वाहन वृषभ है और इन्हें वृषारूढ़ा नाम से भी जाना जाता है।

माँ ब्रह्मचारिणी: देवी दुर्गा का दूसरा रूप हैं माँ ब्रह्मचारिणी और ये श्वेत वस्त्र धारण करती हैं। देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप अत्यंत तेज़ और ज्योतिर्मय है, इनके पूजन से मंगल ग्रह के नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं।

माँ चंद्रघंटा: देवी दुर्गा का तीसरा स्वरूप माँ चंद्रघंटा का हैं जो शुक्र ग्रह को नियंत्रित करती हैं और इनका वाहन सिंह हैं। देवी की पूजा से शुक्र ग्रह के दुष्प्रभाव से सुरक्षा मिलती हैं।

माँ कूष्मांडा: देवी दुर्गा का चौथा स्वरूप माँ कूष्मांडा का हैं जो सूर्य देव का पथ प्रदर्शन करती हैं। देवी कुष्मांडा का वाहन सिंह हैं और इनके पूजन से सूर्य के नकारात्मक प्रभावों से रक्षा होती है।

माँ स्कंदमाता: नवरात्रि के पांचवें दिन देवी दुर्गा के पंचम स्वरूप माँ स्कंदमाता की पूजा की जाती हैं। इनकी पूजा से बुध ग्रह से जुड़ें दोष और उनके दुष्प्रभावों का अंत होता हैं।

माँ कात्यायनी: नवरात्रि के छठे दिन माँ कात्यायनी की पूजा की जाती हैं। इनके पूजन से बृहस्पति ग्रह से सम्बंधित दुष्प्रभावों का निवारण होता हैं।

माँ कालरात्रि: देवी दुर्गा का सातवां स्वरूप माँ कालरात्रि का हैं जिनकी आराधना सप्तमी पर होती है। शनि ग्रह को माँ कालरात्रि नियंत्रित करती हैं और इनके पूजन से शनि देव के अशुभ प्रभाव कम होते हैं।

माँ महागौरी: माँ दुर्गा का अष्टम स्वरूप है देवी महागौरी का जिनकी पूजा अष्टमी तिथि पर की जाती है। देवी के पूजन से राहु सम्बंधित दोषों का निवारण होता है।

माँ सिद्धिदात्री: नवरात्रि के नौवें और अंतिम दिन देवी सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। यह देवी केतु ग्रह को नियंत्रित करती हैं और इनकी पूजा से केतु के बुरे प्रभावों का निवारण होता हैं।

चैत्र नवरात्रि में घटस्थापना का महत्व

चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन को महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि इस दिन शुभ मुहूर्त में विधिपूर्वक घटस्थापना या कलश स्थापना करने के पश्चात देवी शक्ति के प्रथम स्वरूप माता शैलपुत्री की उपासना करने की परंपरा है। कलश स्थापना को संपन्न करने के उपरांत ही नवरात्रि के त्यौहार का शुभारंभ हो जाता है। शास्त्रों के अनुसार, कलश को प्रथम पूज्य श्रीगणेश की संज्ञा दी गई है।

हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार, किसी भी मांगलिक कार्य एवं पूजा से पूर्व श्रीगणेशजी का पूजन किया जाता हैं। हम लोगों में से अधिकतर इस बारे में नहीं जानते हैं कि नवरात्रि के दौरान देवी दुर्गा की पूजा में कलश की स्थापना क्यों करते हैं? कलश स्थापना से सम्बंधित पौराणिक ग्रंथों में वर्णित एक मान्यता है जिसके अनुसार कलश को भगवान विष्णु का शाश्वत रूप माना गया है। इस दिन देवी दुर्गा की पूजा से पहले कलश की पूजा की जाती हैं। चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन अर्थात प्रतिपदा तिथि पर कलश स्थापना को शुभ मुहूर्त में किया जाता हैं।


नवरात्रि में मां की दुर्गा की पूजा के लिए आवश्यक सामग्री

सबसे जरूरी चीज है मां दुर्गा की मूर्ति या तस्वीर। इसके अलावा लाल रंग मां दुर्गा का सबसे खास रंग माना जाता है। इसलिए पूजा में आसन के तौर पर लाल रंग के कपड़े का इस्तेमाल करें। 

अन्य सामग्री में- फूल, फूल माला, आम के पत्ते, बंदनवार, पान, सुपारी, लौंग, बताशा, हल्दी की गांठ, थोड़ी पीसी हुई हल्दी, मौली, रोली, कमलगट्टा, शहद, शक्कर, पंचमेवा, गंगाजल, नैवेध, जावित्री, नारियल जटा वाला, सूखा नारियल, नवग्रह पूजन के लिए सभी रंग या फिर चावलों को रंग लें, दूध, वस्त्र, दही, पूजा की थाली, दीपक, घी, अगरबत्ती आदि सामान पहले से ही एकत्रित करके रख लें।  

मां दुर्गा के सोलह श्रृंगार की लिस्ट

नवरात्रि में मां दुर्गा के सोलह श्रृंगार का विशेष महत्व होता है। श्रृंगार के सामान में लाल चुनरी, लाल चूड़ियां, सिंदूर, बिंदी, काजल,  मेहंदी, महावर, शीशा, बिछिया, इत्र, चोटी, गले के लिए माला या मंगलसूत्र, पायल, नेल पेंट, लिपस्टिक, रबर बैंड, नथ, गजरा, मांग टीका, कान की बाली, कंघी, शीशा आदि पहले से ही रख लें।

हवन के लिए सामग्री 

हवन करने से घर का वातावरण शुद्ध होता है। ऐसे में नवरात्रि में हवन के लिए हवन कुंड, लौंग का जोड़ा, कपूर, सुपारी, गुग्ल, लोबान, घी, पांच मेवा और अक्षत रख लें। 

अखंड ज्योति के लिए सामग्री 

यदि आप अखंड ज्योति जलाना चाहते हैं, तो पीतल या मिट्टी का साफ दीया, ज्योत के लिए रूई की बत्ती, रोली या सिंदूर, चावल जरूर रखें।

घटस्थापना पूजा विधि

  • प्रथम नवरात्रि के दिन प्रात:काल जल्दी उठकर स्नानादि कार्यों से निवृत्त होकर साफ कपड़े पहनकर पूजा स्थान की सफाई करें।
  • माँ दुर्गा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करने के बाद फूल अर्पित करें। 
  • देवी दुर्गा के सामने बाईं तरफ एक खुले बर्तन में मिट्टी डालकर उसमें सप्तधान या फिर जौ बोने चाहिए।
  • अब इस मिट्टी पर 1 कलश की स्थापना करें और कलश में जल भरें। 
  • इसके बाद कलश के ऊपरी हिस्से अर्थात गर्दन पर कलावा बांधें।
  • अब कलश के ऊपर आम या अशोक के पत्ते रखें, फिर उस पत्तों के मध्य नारियल स्थापित करें और उस पर कलावा बांध दें।
  • इसके बाद अब माता दुर्गा का सच्चे मन से आवाहन करें और दीप जलाकर कलश का पूजन करें।
  • देवी की विधिपूर्वक पूजा करने के बाद दुर्गासप्तशती या दुर्गा चालीसा का पाठ करें। पूजा संपन्न होने के बाद आरती करें और देवी को प्रसाद का भोग लगाने के बाद सभी में प्रसाद का वितरण करें।

चैत्र नवरात्रि के दौरान अनुष्ठान



बहुत भक्त नौ दिनों का उपवास रखते हैं। भक्त अपना दिन देवी की पूजा और नवरात्रि मंत्रों का जप करते हुए बिताते हैं।चैत्र नवरात्रि के पहले तीन दिनों को ऊर्जा माँ दुर्गा को समर्पित है। अगले तीन दिन, धन की देवी, माँ लक्ष्मी को समर्पित है और आखिर के तीन दिन ज्ञान की देवी, माँ सरस्वती को समर्पित हैं। चैत्र नवरात्रि के नौ दिनों में से प्रत्येक के पूजा अनुष्ठान नीचे दिए गए हैं।

पूजा विधि

घट स्थापना नवरात्रि के पहले दिन सबसे आवश्यक है, जो ब्रह्मांड का प्रतीक है और इसे पवित्र स्थान पर रखा जाता है, घर की शुद्धि और खुशाली के लिए।

१. अखण्ड ज्योति
नवरात्रि ज्योति घर और परिवार में शांति का प्रतीक है। इसलिए, यह जरूरी है कि आप नवरात्रि पूजा शुरू करने से पहले देसी घी का दीपक जलाते हैं। यह आपके घर की नकारात्मक ऊर्जा को कम करने में मदद करता है और भक्तों में मानसिक संतोष बढ़ाता है।

२. जौ की बुवाई
नवरात्रि में घर में जौ की बुवाई करते है। ऐसी मान्यता है की जौ इस सृष्टी की पहली फसल थी इसीलिए इसे हवन में भी चढ़ाया जाता है। वसंत ऋतू में आने वाली पहली फसल भी जौ ही है जिसे देवी माँ को चैत्र नवरात्रि के दौरान अर्पण करते है।

३. नव दिवस भोग (9 दिन के लिए प्रसाद)
प्रत्येक दिन एक देवी का प्रतिनिधित्व किया जाता है और प्रत्येक देवी को कुछ भेंट करने के साथ भोग चढ़ाया जाता है। सभी नौ दिन देवी के लिए 9 प्रकार भोग निम्न अनुसार हैं:
1 दिन: देसी घी (गाय के दूध से बने)
2 दिन: शक्कर और पंचामृत
3 दिन: दूध या दूध से बनी चीजें (खीर अथवा मिठाई)
4 दिन: मालपुआ
5 दिन: केले का भोग 
6 दिन:  मीठा पान, शहद
7 दिन: गुड़ या गुड़ से बनी चीजों का भोग
8 दिन: गुड़ या नारियल
9 दिन: अनाज का भोग लगाएं जैसे - हलवा, चना-पूरी, खीर और पुए , धान का हलवा या तिल का नैवेद्य

४. दुर्गा सप्तशती
दुर्गा सप्तशती शांति, समृद्धि, धन और शांति का प्रतीक है और नवरात्रि के 9 दिनों के दौरान दुर्गा सप्तशती के पाठ को करना, सबसे अधिक शुभ कार्य माना जाता है।

५. नौ दिनों के लिए नौ रंग
शुभकामना के लिए और प्रसंता के लिए, नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान लोग नौ अलग-अलग रंग पहनते हैं:
1 दिन: हरा
2 दिन: नीला
3 दिन: लाल
4 दिन: नारंगी
5 दिन: पीला
6 दिन: नीला
7 दिन: बैंगनी रंग
8 दिन: गुलाबी
9 दिन: सुनहरा रंग

६. कन्या पूजन





कन्या पूजन माँ दुर्गा की प्रतिनिधियों (कन्या) की प्रशंसा करके, उन्हें विदा करने की विधि है। उन्हें फूल, इलायची, फल, सुपारी, मिठाई, श्रृंगार की वस्तुएं, कपड़े, घर का भोजन (खासकर: जैसे की हलवा, काले चने और पूरी) प्रस्तुत करने की प्रथा है।

अनुष्ठान के कुछ विशेष नियम

बहुत सारे भक्त निचे दिए गए अनुष्ठानों का पालन करते हैं:-

  1. प्रार्थना और उपवास चैत्र नवरात्रि समारोह का प्रतीक है। त्योहार के आरंभ होने से पहले, अपने घर में देवी का स्वागत करने के लिए घर की साफ सफाई करते हैं।
  2. सात्विक जीवन व्यतीत करते हैं। भूमि शयन करते हैं। सात्त्विक आहार करते हैं।
  3. उपवास करते वक्त सात्विक भोजन जैसे कि आलू, कुट्टू का आटा, दही, फल, आदि खाते हैं।
  4. नवरात्रि के दौरान, भोजन में सख्त समय का अनुशासन बनाए रखते हैं और अपने व्यवहार की निगरानी भी करते हैं, जैसे की
    • अस्वास्थ्यकर खाना नहीं खाते।
    • सत्संग करते हैं।
    • भजन और कीर्तन करते हैं ।
    • ज्ञान सूत्र से जुड़ते हैं।
    • ध्यान करते हैं।
    • चमड़े का प्रयोग नहीं करते हैं।
    • क्रोध से बचे रहते हैं।
    • कम से कम 2 घंटे का मौन रहते हैं।
    • अनुष्ठान समापन पर क्षमा प्रार्थना का विधान है तथा विसर्जन करते हैं।

चैत्र नवरात्री का महत्व

यह माना जाता है कि यदि भक्त बिना किसी इच्छा की पूर्ति के लिए महादुर्गा की पूजा करते हैं, तो वे मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर कर मोक्ष प्राप्त करते हैं।

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