मोहिनी एकादशी 2020: व्रती इस शुभ मुहूर्त में करें ऐसी पूजा




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आज सोमवार 4 मई को मोहिनी एकादशी व्रत का दिन है। यह व्रत हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। इस व्रत रखने से अनेक कामनाएं पूरी हो जाती है। इस दिन सीता माता का पता लगाने के लिए भगवान श्रीराम ने व्रत रखकर रखा था। कहा जाता इसी दिन भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन से निकले अमृत की रक्षा दानों से करने के लिए मोहिनी रूप धारण किया था, तभी से इसे मोहिनी एकादशी कहा जाने लगा। इस दिन व्रत रखकर इस शुभ मुहूर्त में पूजा करने से व्रती को मनचाही कामना की प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है।ऐसा विश्वास किया जाता है कि यह तिथी सब पापों को हरने वाली और उत्तम है। इस दिन जो व्रत रहता है उसके व्रत के प्रभाव से मनुष्य मोहजाल तथा पातक समूह से छुटकारा पा जाते हैं।यह तिथी सब पापों को हरनेवाली है। इस दिन जो व्रत रखते है वह मनुष्य मोहजाल तथा पातकों से छुटकारा पा जाते हैं।

इस शुभ मुहूर्त में करें पूजन :-


मोहिनी एकादशी का आरंभ 4 मई सोमवार को सूर्योदय से पूर्व ही हो जाएगा, इसलिए इस दिन यह तिथि पूरे दिन ही रहेगी। लेकिन कहा जाता है कि इस दिन व्रती को सुबह, दोपहर एवं शाम के समय तीनों काल में ही पूजन करना चाहिए।शाम को एकादशी व्रत की कथा पढ़कर, पूजन करके ही अपना व्रत खोलना चाहिए।

मोहिनी एकादशी पूजा विधि | Mohini Ekadashi Puja Vidhi :-


इस दिन भगवान राम को पीले फूल, पंचामृत तथा तुलसी दल अर्पित करें, फल भी अर्पित कर सकते हैं। इसके बाद भगवान राम का ध्यान करें तथा उनके मन्त्रों का जप करें। इस दिन पूर्ण रूप से जल पर उपवास रखना चाहिए। इस दिन मन को ईश्वर में लगायें, क्रोध न करें, असत्य न बोलें। इस दिन भगवान राम के सामने कुछ देर जरूर बैठना चाहिए। श्रीराम रक्षा स्तोत्र का पाठ करें। राम जी के इस मंत्र का जप 108 बार जरूर करें- मंत्र "ॐ राम रामाय नमः"।।

शास्त्रों में सभी तिथियों में सर्वश्रेष्ठ तिथि एकदशी तिथि को माना गया है, इस दिन किए गए जप-तप, यज्ञ, दान और सेवा का बहुत अधिक महत्त् माना जाता है। 



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एकादशी तिथि के दिन इन कार्यों को नहीं करना चाहिए।

  • जुआ खेलना- जुआ नहीं खेलने वाले जीवन में हमेशा धन का अभाव रहता है।


  • पान खाना- ग्यारस के दिन पान खाने से मन में रजोगुण की प्रवृत्ति बढ़ती है।


  • दूसरों की बुराई से बचना- एकादशी के दिन दूसरों की बुराई करने से मन में दूसरों के प्रति कटु भाव आ सकते हैं ।


  • एकादशी के दिन चोरी, हिंसका जैसे गलत कार्य नहीं करना चाहिए।


  • स्त्रीसंग- एकादशी पर स्त्रीसंग करना भी वर्जित है क्योंकि इससे भी मन में विकार उत्पन्न होता है और ध्यान भगवान भक्ति में नहीं लगता । अतः ग्यारस के दिन स्त्रीसंग नहीं करना चाहिए।


मोहिनी एकादशी का महत्व | Importance of Mohini Ekadashi :-


वैसे तो वर्ष भर आने वाली सभी एकादशियों का महत्व होता है। लेकिन मोहिनी एकादशी का खास महत्व है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर देवताओं की दानवों से रक्षा की थी। ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने माता सीता का पता लगाने के लिए वैशाख मास की मोहिनी एकादशी का व्रत किया था। इस व्रत के प्रभाव से सभी प्रकार के दुख और पाप खत्म हो जाते हैं। 

मोहिनी एकादशी व्रत कथा | Mohini Ekadashi Vrat Katha:-


धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि, "हे कृष्ण! वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसकी कथा क्या है? इस व्रत की क्या विधि है, यह सब विस्तारपूर्वक बताइए।"   

श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे धर्मराज! मैं आपसे एक कथा कहता हूँ, जिसे महर्षि वशिष्ठ ने श्री रामचंद्रजी से कही थी। एक समय श्रीराम बोले कि हे गुरुदेव! कोई ऐसा व्रत बताइए, जिससे समस्त पाप और दु:ख का नाश हो जाए। मैंने सीताजी के वियोग में बहुत दु:ख भोगे हैं।

महर्षि वशिष्ठ बोले- हे राम! आपने बहुत सुंदर प्रश्न किया है। आपकी बुद्धि अत्यंत शुद्ध तथा पवित्र है। यद्यपि आपका नाम स्मरण करने से मनुष्य पवित्र और शुद्ध हो जाता है तो भी लोकहित में यह प्रश्न अच्छा है। वैशाख मास में जो एकादशी आती है उसका नाम मोहिनी एकादशी है। इसका व्रत करने से मनुष्य सब पापों तथा दु:खों से छूटकर मोहजाल से मुक्त हो जाता है। मैं इसकी कथा कहता हूँ। ध्यानपूर्वक सुनो।

सरस्वती नदी के तट पर भद्रावती नाम की एक नगरी में द्युतिमान नामक चंद्रवंशी राजा राज करता था। वहाँ धन-धान्य से संपन्न व पुण्यवान धनपाल नामक वैश्य भी रहता है। वह अत्यंत धर्मालु और विष्णु भक्त था। उसने नगर में अनेक भोजनालय, प्याऊ, कुएँ, सरोवर, धर्मशाला आदि बनवाए थे। सड़कों पर आम, जामुन, नीम आदि के अनेक वृक्ष भी लगवाए थे। उसके 5 पुत्र थे- सुमना, सद्‍बुद्धि, मेधावी, सुकृति और धृष्टबुद्धि। 

इनमें से पाँचवाँ पुत्र धृष्टबुद्धि महापापी था। वह पितर आदि को नहीं मानता था। वह वेश्या, दुराचारी मनुष्यों की संगति में रहकर जुआ खेलता और पर-स्त्री के साथ भोग-विलास करता तथा मद्य-मांस का सेवन करता था। इसी प्रकार अनेक कुकर्मों में वह पिता के धन को नष्ट करता रहता था।

इन्हीं कारणों से त्रस्त होकर पिता ने उसे घर से निकाल दिया था। घर से बाहर निकलने के बाद वह अपने गहने-कपड़े बेचकर अपना निर्वाह करने लगा। जब सबकुछ नष्ट हो गया तो वेश्या और दुराचारी साथियों ने उसका साथ छोड़ दिया। अब वह भूख-प्यास से अति दु:खी रहने लगा। कोई सहारा न देख चोरी करना सीख गया। 

एक बार वह पकड़ा गया तो वैश्य का पुत्र जानकर चेतावनी देकर छोड़ दिया गया। मगर दूसरी बार फिर पकड़ में आ गया। राजाज्ञा से इस बार उसे कारागार में डाल दिया गया। कारागार में उसे अत्यंत दु:ख दिए गए। बाद में राजा ने उसे नगरी से निकल जाने का कहा। 

वह नगरी से निकल वन में चला गया। वहाँ वन्य पशु-पक्षियों को मारकर खाने लगा। कुछ समय पश्चात वह बहेलिया बन गया और धनुष-बाण लेकर पशु-पक्षियों को मार-मारकर खाने लगा। एक दिन भूख-प्यास से व्यथित होकर वह खाने की तलाश में घूमता हुआ कौडिन्य ऋषि के आश्रम में पहुँच गया। उस समय वैशाख मास था और ऋषि गंगा स्नान कर आ रहे थे। उनके भीगे वस्त्रों के छींटे उस पर पड़ने से उसे कुछ सद्‍बुद्धि प्राप्त हुई। 

वह कौडिन्य मुनि से हाथ जोड़कर कहने लगा कि हे मुने! मैंने जीवन में बहुत पाप किए हैं। आप इन पापों से छूटने का कोई साधारण बिना धन का उपाय बताइए। उसके दीन वचन सुनकर मुनि ने प्रसन्न होकर कहा कि तुम वैशाख शुक्ल की मोहिनी नामक एकादशी का व्रत करो। इससे समस्त पाप नष्ट हो जाएँगे। मुनि के वचन सुनकर वह अत्यंत प्रसन्न हुआ और उनके द्वारा बताई गई विधि के अनुसार व्रत किया।

हे राम! इस व्रत के प्रभाव से उसके सब पाप नष्ट हो गए और अंत में वह गरुड़ पर बैठकर विष्णुलोक को गया। इस व्रत से मोह आदि सब नष्ट हो जाते हैं। संसार में इस व्रत से श्रेष्ठ कोई व्रत नहीं है। इसके माहात्म्य को पढ़ने से अथवा सुनने से एक हजार गौदान का फल प्राप्त होता है।

मोहिनी एकादशी व्रत के लाभ | Benefits of Mohini Ekadashi Vrat :-

मोहिनी एकादशी के व्रती की चिंताएं और मोह माया का प्रभाव कम होता है। मोहिनी एकादशी के व्रती को ईश्वर की कृपा का अनुभव होने लगता है। मोहिनी एकादशी के व्रती के पाप प्रभाव कम होता है और मन शुद्ध होता है। मोहिनी एकादशी के व्रती हर तरह की दुर्घटनाओं से सुरक्षित रहता है। मोहिनी एकादशी के व्रती को गोदान का पुण्य फल प्राप्त होता है।

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