Makar Sankranti 2024 Date: मकर संक्रांति के दिन स्नान का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, पौराणिक कथाएं, मंत्र व फल और अन्य जानकारियां

 

क्या है मकर संक्रांति?

मकर संक्रांति हिन्दू धर्म का प्रमुख पर्व है।मकर संक्रांति में 'मकर' शब्द मकर राशि के बारे में बताता है जबकि 'संक्रांति' का अर्थ संक्रमण अर्थात प्रवेश करना है। ज्योतिष के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। एक राशि को छोड़कर दूसरे में प्रवेश करने की इस विस्थापन क्रिया को संक्रांति कहते हैं।मकर संक्रांति को भगवान सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं। सूर्य देव के मकर राशि में आने के साथ ही मांगलिक कार्य जैसे विवाह, मुंडन, सगाई, गृह प्रवेश आदि होने लगते हैं। मकर संक्रांति के आगमन के साथ ही एक माह का खरमास खत्म हो जाता है।संक्राति के पर्व को पश्चिमी बिहार और उत्तर प्रदेश में खिचड़ी, पश्चिम बंगाल में पौष संक्रांति, असम में बिहु, तमिलनाडु में ताइ पोंगल, गुजरात और उत्तराखंड के कई इलाकों में उत्तरायण, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब में माघी, कश्मीर घाटी में शिशुर सेंक्रात, कर्नाटक में मकर संक्रमण नाम से जाना जाता है। मकर संक्राति के दिन गंगा स्नान, व्रत, कथा, दान और भगवान सूर्यदेव की उपासना करने का विशेष महत्त्व है।


मकर संक्रांति को क्यों कहा जाता है पतंग महोत्सव पर्व? | Why is Makar Sankranti called Kite Festival?


यह पर्व 'पतंग महोत्सव' के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन लोग छतों पर खड़े होकर पतंग उड़ाते हैं। हालांकि पतंग उड़ाने के पीछे कुछ घंटे सूर्य के प्रकाश में बिताना मुख्य वजह बताई जाती है। सर्दी के इस मौसम में सूर्य का प्रकाश शरीर के लिए स्वास्थवर्द्धक और त्वचा और हड्डियों के लिए बेहद लाभदायक होता है। 

कब है मकर संक्रांति? |  When is Makar Sankranti? 

पंचांग के अनुसार, इस वर्ष मकर संक्रांति का पर्व 15 जनवरी ​दिन सोमवार को मनाया जाएगा। इस दिन सूर्य देव रात 2 बजकर 54 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेंगे।

मकर संक्रांति पुण्यकाल - सुबह 07 बजकर 15 मिनट से शाम 06 बजकर 21 मिनट तक। 

मकर संक्रांति महा पुण्यकाल - सुबह 07 बजकर 15 मिनट से सुबह 09 बजकर 06 मिनट तक। 

मकर संक्रांति का शुभ संयोग | The Auspicious Sanyog of Makar Sankranti :-

15 जनवरी 2024 को मकर संक्रांति पर 77 सालों के बाद वरीयान योग और रवि योग का संयोग बन रहा है। इस दिन बुध और मंगल भी एक ही राशि धनु में विराजमान रहेंगे। 

वरीयान योग :  15 जनवरी को यह योग प्रात: 2 बजकर 40 मिनट से लेकर रात 11 बजकर 11 मिनट तक रहेगा। 
रवि योग : 15 जनवरी को सुबह 07 बजकर 15 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 07 मिनट तक रहेगा। 
सोमवार : पांच साल बाद मकर संक्रांति सोमवार के दिन पड़ रही है। ऐसे में सूर्य संग शिव का आशीर्वाद भी प्राप्त होगा। 


मकर संक्रांति की तिथि का इतिहास और सूर्य की चाल से मकर संक्रांति की तारीख का रहस्य | History of Makar Sankranti date And the secret of Makar Sankranti date with the movement of Sun


मकर संक्रांति का समय युगों से बदलता रहा है। ज्योतिषीय गणना और घटनाओं को जोड़ने से मालूम होता है कि महाभारत काल में मकर संक्रांति दिसंबर में मनाई जाती थी। ऐसा उल्लेख मिलता है कि 6 वीं शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के समय में 24 दिसंबर को मकर संक्रांति मनाई गयी थी। अकबर के समय में 10 जनवरी और शिवाजी महाराज के काल में 11 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई गई थी।मकर संक्रांति की तिथि का यह रहस्य इसलिए है क्योंकि सूर्य की गति एक साल में 20 सेकंड बढ़ जाती है। इस हिसाब से 5000 साल के बाद संभव है कि मकर संक्रांति जनवरी में नहीं बल्कि फरवरी में मनाई जाएगी।

मकर संक्रांति का महत्व | Importance of Makar Sankranti :-


ग्रहों की शांति, पितृ दोष व मोक्ष प्राप्ति के लिए मकर संक्रांति को बहुत ही लाभकारी माना जाता है। इसके साथ ही खरमास की समाप्ति होती है व शुभकाल शुरु होता है। इसलिए मकर संक्रांति का बहुत महत्व है। सूर्य हर माह में राशी का परिवर्तन करता है। वर्ष की बारह संक्रांतियों में से दो संक्रांतियां सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। मकर संक्रांति और कर्क संक्रांति। सूर्य जब मकर राशी में जाता है तब मकर संक्रांति होती है। मकर संक्रांति से अग्नि तत्त्व की शुरुआत होती है और कर्क संक्रांति से जल तत्त्व की। मकर संक्रांति भगवान सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण होने का संधि काल है। उत्तरायण में पृथ्वीवासियों पर सूर्य का प्रभाव तो दक्षिणायन में चंद्र का प्रभाव अधिक होता है। सूर्यदेव छह माह उत्तरायण (मकर से मिथुन राशि तक) व छह माह दक्षिणायन (कर्क से धनु राशि तक) रहते हैं। उत्तरायण देवगण का दिन तो दक्षिणायन रात्रि मानी जाती है(उत्तरायण काल में दिन बड़े हो जाते हैं तथा रातें छोटी होने लगती हैं, वहीं दक्षिणायन काल में ठीक इसके विपरीत- रातें बड़ी और दिन छोटा होने लगता है।)। इस समय किए जप और दान का फल अनंत गुना होता है।

इस विषय से जुड़ा एक काफी प्रसिद्ध श्लोक है, जो इस दिन के महत्व को समझाने कार्य करता है।

“माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।
स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥”

इस श्लोक का अर्थ है कि “जो भी व्यक्ति मकर संक्रांति के दिन शुद्ध घी और कंबल का दान करता है, वह अपनी मृत्यु पश्चात जीवन-मरण के इस बंधन से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति करता है”।

मकर संक्रांति का पर्व जिस प्रकार देश भर में अलग-अलग तरीके और नाम से मनाया जाता है, उसी प्रकार खान-पान में भी विविधता रहती है। इस दिन तिल का हर जगह किसी ना किसी रूप में प्रयोग होता ही है। तिल स्वास्थ्य के लिए भी बेहद फायदेमंद है।

मकर संक्रांति के पौराणिक कथाएं | Mythology of Makar Sankranti :-


मकर संक्रांति के साथ कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हैं...

एक कथा के अनुसार, शनि देव को उनके पिता सूर्य देव पसंद नहीं करते थे। इसी कारण सूर्य देव ने शनि देव और उनकी मां छाया को अपने से अलग कर दिया। इस बात से क्रोध में आकर शनि और उनकी मां ने सूर्य देव को कुष्ठ रोग का श्राप दे दिया। पिता को कुष्ठ रोग में पीड़ित देख सूर्य भगवान की दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज ने तपस्या की। यमराज की तपस्या से सूर्यदेव कुष्ठ रोग से मुक्त हो गए। लेकिन सूर्य देव ने क्रोध में आकर शनि देव और उनकी माता के घर ‘कुंभ', जो शनि प्रधान राशि है, को जला दिया। इससे माता छाया और पुत्र शनि दोनों को बहुत कष्ट हुआ। यमराज ने अपनी सौतेली माता और भाई शनि को कष्ट में देख उनके कल्याण के लिए पिता सूर्य को समझाया। यमराज की बात मान सूर्य देव शनि से मिलने उनके घर पहुंचे। कुंभ में आग लगने के बाद वहां काले तिल के अलावा सब कुछ जल गया था। इसीलिए शनि देव ने अपने पिता सूर्य देव की पूजा काले तिल से की। इसके बाद सूर्य देव ने शनि को उनका दूसरा घर ‘मकर' दिया। मान्यता है कि शनि देव को तिल की वजह से ही उनके पिता, घर और सुख की प्राप्ति हुई, तभी से मकर संक्रांति पर सूर्य पूजा के साथ तिल का बड़ा महत्व माना जाता है।धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन पवित्र नदी में स्नान, दान, पूजा आदि करने से व्यक्ति का पुण्य प्रभाव हजार गुना बढ़ जाता है। इस दिन से मलमास खत्म होने के साथ शुभ माह प्रारंभ हो जाता है। इस खास दिन को सुख और समृद्धि का दिन माना जाता है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन का ही चयन किया था। 

इसके अलावा मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे−पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं। साथ ही महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए इस दिन तर्पण किया था।

एक अन्य मान्यता के अनुसार मकर संक्रांति के दिन ही यशोदा ने कृष्ण जन्म के लिए व्रत किया था जिसके बाद मकर संक्रांति के व्रत का प्रचलन हुआ।

कहा जाता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत कर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी व सभी असुरों का सिर मंदार पर्वत में दबा दिया था।इस दिन सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं और गीता के अनुसार जो व्यक्ति उत्तरायण में शरीर का त्याग करता है, वह श्री कृष्ण के परम धाम में निवास करता है। इस दिन लोग मंदिर और अपने घर पर विशेष पूजा का आयोजन करते हैं। पुराणों में इस दिन प्रयाग और गंगासागर में स्नान का बड़ा महत्व बताया गया है, जिस कारण इस तिथि में स्नान एवं दान का करना बड़ा पुण्यदायी माना गया है।

मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने की परंपरा का महत्व | Importance of Khichdi Food Tradition on Makar Sankranti :-


मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी दान और खाने की परंपरा के पीछे भगवान शिव के अवतार कहे जाने वाले बाबा गोरखनाथ की कहानी है। खिलजी के आक्रमण के समय नाथ योगियों को खिलजी से संघर्ष के कारण भोजन बनाने का समय नहीं मिल पाता था। इससे योगी अक्सर भूखे रह जाते थे और कमजोर हो रहे थे। इस समस्या का हल निकालने के लिए बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जी को एक साथ पकाने की सलाह दी। यह व्यंजन काफी पौष्टिक और स्वादिष्ट था। इससे शरीर को तुरंत उर्जा मिलती थी। नाथ योगियों को यह व्यंजन काफी पसंद आया। बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम खिचड़ी रखा। 

गोरखपुर स्थिति बाबा गोरखनाथ के मंदिर के पास मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी मेला आरंभ होता है। कई दिनों तक चलने वाले इस मेले में बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है और इसे भी प्रसाद रूप में वितरित किया जाता है। 

खिचड़ी दान और भोजन के पीछे एक दूसरा कारण यह है कि संक्रांति के समय नया चावल तैयार हो जाता है। माना जाता है कि सूर्य देव ही सभी अन्न को पकाते हैं और उन्हें पोषित करते हैं इसलिए आभार व्यक्त करने के लिए सूर्य देव को गुड़ से बनी खीर या खिचड़ी अर्पित करते हैं।

वैसे मकर संक्रांति के दिन बनाई जाने वाली खिचड़ी में उड़द का दाल प्रयोग किया जाता है जो शनि से संबंधित है। कहते हैं इस दिन विशेष खिचड़ी को खाने से शनि का कोप दूर होता है। इसलिए खिचड़ी खाने की परंपरा है। वैज्ञानिक नजरिए से मकर संक्रांति पर खिचड़ी का सेवन करना सेहत के लिए काफी फायदेमंद माना गया है। दरअसल सर्दियों के मौसम में शरीर का तापमान गिर जाता है। तिल और गुड़ खाने से शरीर गर्म रहता है।


कैसे मनाएं मकर संक्रांति? | How to celebrate Makar Sankranti?


  • तड़के स्नान करें और सूर्य को अर्घ्य दें।
  • श्रीमदभागवद के एक अध्याय का पाठ या गीता का पाठ करें।
  • साथ ही मत्स्य पुराण के 98वें अध्याय के 17 वें भाग से लिया गया यह श्लोक पढ़ना चाहिए-
"यथा भेदं न पश्यामि शिवविष्णवर्कपद्मजान्।
तथा ममास्तु विश्वात्मा शंकरः शंकरः सदा।।"

इसका अर्थ है- मैं शिव एवं विष्णु तथा सूर्य एवं ब्रह्मा में अन्तर नहीं करता। वह शंकर, जो विश्वात्मा है, सदा कल्याण करने वाला हो।
  • खिचड़ी, नए अन्न, कम्बल और घी का दान करें।
  • भोजन में नए अन्न की खिचड़ी बनायें।
  • भोजन भगवान को समर्पित करके प्रसाद रूप से ग्रहण करें।


सूर्य से लाभ पाने के लिए क्या करें?

  • लाल फूल और अक्षत डाल कर सूर्य को अर्घ्य दें।
  • सूर्य के बीज मंत्र का जाप करें।
  • मंत्र होगा – “ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः”
  • लाल वस्त्र, ताम्बे के बर्तन तथा गेंहू का दान करें।
  • संध्या काल में अन्न का सेवन न करें।


मकर संक्रांति के दिन शनि देव को करें प्रसन्न:-

  • तिल और अक्षत डाल कर सूर्य को अर्घ्य दें।
  • स्टील या लोहे के पात्र में तिल भरकर अपने सामने रखें।
  • शनि देव के मंत्र का जाप करें- मंत्र होगा - "ॐ प्रां प्री प्रौं सः शनैश्चराय नमः"
  • किसी गरीब व्यक्ति को बर्तन (लोहा) समेत तिल,घी,काला कम्बल का दान कर दें।
  • इससे शनि से जुड़ी हर पीड़ा से मुक्ति मिलेगी।
  • अगर हो सके तो दिन में अन्न का सेवन न करें।


स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के समाधान हेतु उपाय :-

  • प्रात:काल एक ताम्बे के पात्र में जल लेकर उस में कुंकुम, शक्कर और एक बेलपत्र डालें। 
  • इस मंत्र से सूर्य को सात बार जल दें। 
  • मंत्र होगा -‘नमो नम: सहस्रांशु आदित्याया नमो नम: ह्रीं सूर्याय नम:'। 
  • तिल, लाल वस्त्र, हरे फल और शक्कर या गुड़ का दान करें। 
  • हर रविवार को सूर्य को इसी तरह जल दें।


मकर संक्रांति पर राशि अनुसार करें इन मंत्रों का जाप व दान करने से आपको मिलेगा फल :-

राशियों के अनुसार सफेद तिल के साथ निम्न मंत्रों का जाप करने के बाद निर्दिष्ट सामग्रियों का दान किया जाए, तो ग्रह दशा अनुकूल होगी।

मेष मंत्र- ऊं रवये नम:

दान सामग्री- गुड़।

वृषभ मंत्र- ऊं मित्राय नम:

दान सामग्री - शक्कर।

मिथुन मंत्र- ऊं खगाय नम:

दान सामग्री-सिंघाड़ा, नारियल।

कर्क मंत्र- जय भद्राय नम:

दान सामग्री- दूध और चावल।

सिंह मंत्र- ऊं भास्कराय नम:

दान सामग्री-अनार।

कन्या मंत्र- ऊं भानवे नम:

दान सामग्री- हरे फल।

तुला मंत्र- ऊं पुष्णे नम:

दान सामग्री- चावल, खट्टे फल।

वृश्चिक मंत्र- ऊं सूर्याय नम:

दान सामग्री-दूध और गुड़।

धनु मंत्र- ऊं आदित्याय नम:

दान सामग्री- चना दाल, गुड़।

मकर मंत्र- ऊं मरीचये नम:

दान सामग्री - मूंगफली।

कुम्भ मंत्र- ऊं सवित्रे नम:

दान सामग्री- शक्कर, उड़द दाल।

मीन मंत्र- ऊं अर्काय नम:

दान सामग्री - बेसन की मिठाई।


मकर संक्रांति पूजा से होने वाले लाभ | Makar Sankranti puja benefits :-


  • इससे चेतना और ब्रह्मांडीय बुद्धि कई स्तरों तक बढ़ जाती है, इसलिए यह पूजा करते हुए आप उच्च चेतना के लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
  • अध्यात्मिक भावना शरीर को बढ़ाती है और उसे शुद्ध करती है।
  • इस अवधि के दौरान किये गए कामों में सफल परिणाम प्राप्त होते है।
  • समाज में धर्म और आध्यात्मिकता को फ़ैलाने का यह धार्मिक समय होता है।

भारत में मकर संक्रांति त्यौहार और संस्कृति | Makar Sankranti in different parts of India :-


भारत वर्ष में मकर संक्रांति हर प्रान्त में बहुत हर्षौल्लास से मनाया जाता है। लेकिन इसे सभी अलग अलग जगह पर अलग नाम और परंपरा से मनाया जाता है।

  • पश्चिमी बिहार और उत्तर प्रदेश  :- पश्चिमी बिहार और उत्तर प्रदेश में इसे खिचड़ी का पर्व कहते है। इस दिन पवित्र नदियों में डुबकी लगाना बहुत शुभ माना जाता है। इस अवसर में प्रयाग यानि इलाहाबाद में एक बड़ा एक महीने का माघ मेला शुरू होता है। त्रिवेणी के अलावा, उत्तर प्रदेश के हरिद्वार और गढ़ मुक्तेश्वर और बिहार में पटना जैसे कई जगहों पर भी धार्मिक स्नान हैं। 
  • पश्चिम बंगाल :- बंगाल में हर साल एक बहुट बड़े मेले का आयोजन गंगा सागर में किया जाता है। जहाँ माना जाता है कि राजा भागीरथ के साठ हजार पूर्वजों की रख को त्याग दिया गया था और गंगा नदी में नीचे के क्षेत्र डुबकी लगाई गई थी। इस मेले में देश भर से बड़ी संख्या में तीर्थयात्री भाग लेते हैं।
  • तमिलनाडु :- तमिलनाडु में इसे पोंगल त्यौहार के नाम से मनाते है, जोकि किसानों के फसल काटने वाले दिन की शुरुआत के लिए मनाया जाता है।
  • आंध्रप्रदेश :- कर्नाटक और आंधप्रदेश में मकर संक्रमामा नाम से मानते है। जिसे यहाँ 3 दिन का त्यौहार पोंगल के रूप में मनाते हैं। यह आंध्रप्रदेश के लोगों के लिए बहुत बड़ा इवेंट होता है। तेलुगू इसे ‘पेंडा पाँदुगा’ कहते है जिसका अर्थ होता है, बड़ा उत्सव।
  • गुजरात :- उत्तरायण नाम से इसे गुजरात और राजस्थान में मनाया जाता है। इस दिन गुजरात में पतंग उड़ाने की प्रतियोगिता रखी जाती है, जिसमे वहां के सभी लोग बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते है। गुजरात में यह एक बहुत बड़ा त्यौहार है। इस दौरान वहां पर 2 दिन का राष्ट्रीय अवकाश भी होता है।
  • बुंदेलखंड :- बुंदेलखंड में विशेष कर मध्यप्रदेश में मकर संक्रांति के त्यौहार को सकरात नाम से जाना जाता है। यह त्यौहार मध्यप्रदेश के साथ ही बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड और सिक्किम में भी मिठाइयों के साथ बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।
  • महाराष्ट्र :- संक्रांति के दिनों में महाराष्ट्र में टिल और गुड़ से बने व्यंजन का आदान प्रदान किया जाता है, लोग तिल के लड्डू देते हुए एक – दूसरे से “टिल-गुल घ्या, गोड गोड बोला” बोलते है। यह महाराष्ट्र में महिलाओं के लिए विशेष दिन होता है। जब विवाहित महिलाएं “हल्दी कुमकुम” नाम से मेहमानों को आमंत्रित करती है और उन्हें भेंट में कुछ बर्तन देती हैं।
  • केरल :- केरल में इस दिन लोग बड़े त्यौहार के रूप में 40 दिनों का अनुष्ठान करते है, जोकि सबरीमाला में समाप्त होता है।
  • उड़ीसा :- हमारे देश में कई आदिवासी संक्रांति के दिन अपने नए साल की शुरुआत करते हैं। सभी एक साथ नृत्य और भोजन करते है। उड़ीसा के भूया आदिवासियों में उनके माघ यात्रा शामिल है, जिसमे घरों में बनी वस्तुओं को बिक्री के लिए रखा जाता है।
  • हरियाणा :- मगही/माघी नाम से हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में यह मनाया जाता है।
  • पंजाब :- पंजाब में लोहड़ी नाम से इसे मनाया जाता है, जो सभी पंजाबी के लिए बहुत महत्व रखता है, इस दिन से सभी किसान अपनी फसल काटना शुरू करते है और उसकी पूजा करते है।
  • असम :- माघ बिहू असम के गाँव में मनाया जाता है।
  • कश्मीर :- कश्मीर में शिशुर सेंक्रांत नाम से जानते है।

विदेशों में मकर संक्रांति के त्यौहार के नाम | Makar Sankranti festival in abroad:-


भारत के अलावा मकर संक्रांति दुसरे देशों में भी प्रचलित है लेकिन वहां इसे किसी और नाम से जानते है।

  • नेपाल में इसे माघे संक्रांति कहते है। नेपाल के ही कुछ हिस्सों में इसे मगही नाम से भी जाना जाता है।
  • थाईलैंड में इसे सोंग्क्रण नाम से मनाते है।
  • म्यांमार में थिन्ज्ञान नाम से जानते है।
  • कंबोडिया में मोहा संग्क्रण नाम से मनाते है।
  • श्रीलंका में उलावर थिरुनाल नाम से जानते है।
  • लाओस में पी मा लाओ नाम से जानते हैं।
भले विश्व में मकर संक्रांति अलग अलग नाम से मनाते है लेकिन इसके पीछे छुपी भावना सबकी एक है वो है शांति और अमन की।

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