Dhanteras Yam Deep Daan : जानें क्‍यों धनतेरस के दिन यमराज को करते हैं दीपदान, पुराणों में म‍िलता है वर्णन



यमराज को दीपदान करने की यह है वजह

इस बार धनतेरस पर्व 22 अक्तूबर को है। इस दिन कुछ न कुछ खरीदने की परंपरा है। लेक‍िन क्‍या आप जानते हैं क‍ि इस द‍िन इस परंपरा के अलावा एक और परंपरा यानी कि यमराज को दीपदान करने का भी न‍िर्वहन क‍िया जाता है। सनातन धर्म में यमराज को मृत्यु के देवता के रूप में जाना जाता है। यमराज के दूत ही मृत्यु के समय आत्मा को लेने के लिये आते हैं। वेदों में इनका उल्लेख सूर्यदेव के पुत्र के रूप में किया गया है। वैदिक काल में यज्ञों में यमदेव की भी पूजा की जाती थी और उन्हें हविष्य भी दिया जाता था।भैंसे पर सवार रहने वाले दण्डधर यमराज जीवों के शुभाशुभ कर्मों के निर्णायक हैं। इनका एक अलग लोक जिसे यमलोक कहा जाता है। मौत के बाद मनुष्य यमलोक में ही जाता है जहां यमराज उनके कर्मों के आधार पर उसे स्वर्ग या नरक में भेजते हैं। पुराणों के अनुसार धनतेरस के द‍िन ऐसा करने से अकाल मृत्यु का भय खत्म हो जाता है। पूरे वर्ष में एक मात्र यही वह दिन है, जब मृत्यु के देवता यमराज की पूजा दीपदान करके की जाती है। हालांक‍ि कुछ लोग नरक चतुर्दशी यानी क‍ि छोटी दीपावली के द‍िन भी दीपदान करते हैं।

जानें धनतेरस के दिन दीपदान को लेकर क्‍या कहता है पुराण?

  • स्कंदपुराण में धनतेरस को लेकर एक श्‍लोक म‍िलता है। इसके अनुसार,

‘कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां निशामुखे। 
यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनिश्यति।’ 

अर्थ - कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी के दिन सायंकाल के समय घर के बाहर यमदेव के उद्देश्य से दीप रखने से अपमृत्यु का निवारण होता है।

  • पद्मपुराण के अनुसार,
‘कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां तु पावके। 
यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनश्यति।’ 

अर्थ -  कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को घर से बाहर यमराज के लिए दीप देना चाहिए, इससे मृत्यु का नाश होता है।

पुराणों में यमराज की म‍िलती है ऐसी एक कथा



पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार एक समय यमराज ने अपने दूतों से पूछा कि क्या कभी तुम्हें प्राणियों के प्राण हरण करते समय किसी पर दया आई है ? तो वे संकोच में पड़कर बोले- नहीं महाराज। यमराज ने उनसे दोबारा पूछा तो उन्होंने बताया कि एक बार एक ऐसी घटना घटी थी, जिससे हमारा हृदय कांप उठा था। हेम नामक राजा की पत्नी ने जब एक पुत्र को जन्म दिया तो ज्योतिषियों ने नक्षत्र गणना करके बताया कि यह बालक जब भी विवाह करेगा, उसके चार दिन बाद ही मर जाएगा। यह जानकर उस राजा ने बालक को यमुना तट की एक गुफा में ब्रह्मचारी के रूप में रखकर बड़ा किया। एक दिन जब महाराजा हंस की युवा बेटी यमुना तट पर घूम रही थी तब वह ब्रह्मचारी युवक उस कन्‍या पर मोह‍ित हो गया और उसने गंधर्व विवाह कर लिया। ले‍क‍िन जैसे ही चौथा दिन पूरा हुआ राजकुमार की मौत हो गई। अपने पति की मृत्यु देखकर उसकी पत्नी बिलख-बिलखकर रोने लगी। उस नवविवाहिता का करुण विलाप सुनकर हमारा हृदय भी कांप उठा।

तब नहीं रुक रहे यमराज के दूतों के भी आंसू

यमदूतों ने कहा क‍ि उस राजकुमार के प्राण हरण करते समय हमारे आंसू नहीं रुक रहे थे। तभी एक यमदूत ने पूछा, क्या अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय नहीं है? इस पर यमराज बोले- एक उपाय है। अकाल मृत्यु से छुटकारा पाने के लिए व्यक्ति को धनतेरस के दिन पूजन और दीपदान विधिपूर्वक करना चाहिए। जहां यह पूजन होता है, वहां अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता। कहते हैं कि तभी से धनतेरस के दिन यमराज के पूजन के बाद दीपदान की परंपरा प्रचलित हुई।

धनतेरस के द‍िन ऐसे करना चाह‍िए दीपदान

धनतेरस की शाम को मुख्य द्वार पर 13 और घर के अंदर भी 13 दीप जलाने होते हैं। ये काम सूरज डूबने के बाद किया जाता है। लेकिन यम का दीया परिवार के सभी सदस्यों के घर आने और खाने-पीने के बाद सोते समय जलाया जाता है। इस दीप को जलाने के लिए पुराने दीप का इस्‍तेमाल करें। उसमें सरसों का तेल डालें और रुई की बत्ती बनाएं। घर से दीप जलाकर लाएं और घर से बाहर उसे दक्षिण की ओर मुख कर नाली या कूड़े के ढेर के पास रख दें। साथ ही उस समय ‘मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह। त्रयोदश्यां दीपदानात्सूर्यज: प्रीतयामिति।’ मंत्र का जप करें और साथ में जल भी चढ़ाएं। इसके बाद बिना उस दीप को देखे ही घर के अंदर आ जाएं।

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