होली 2022 : होली की तिथि को लेकर न रहें भ्रम में, जानें होली की पौराणिक-प्रामाणिक कथा व होली क्यों और कैसे मनाई जाती है ?


होली भारत के सबसे पुराने पर्वों में से है। यह कितना पुराना है इसके विषय में ठीक जानकारी नहीं है | लेकिन इसके विषय में इतिहास पुराण व साहित्य में अनेक कथाएँ मिलती है। इस कथाओं पर आधारित साहित्य और फ़िल्मों में अनेक दृष्टिकोणों से बहुत कुछ कहने के प्रयत्न किए गए हैं लेकिन हर कथा में एक समानता है कि - असत्य पर सत्य की विजय और दुराचार पर सदाचार की विजय और विजय को उत्सव मनाने की बात कही गई है।भारत देश त्योहारों का देश है, यहाँ भिन्न जाति के लोग भिन्न भिन्न त्यौहार को बड़े उत्साह से मनाया करते है और इन्हीं त्यौहार में से एक त्यौहार है “होली”

साल 2022 में होली कब है?

भारत में सामान्तया त्यौहार हिंदी पंचाग के अनुसार मनाये जाते है। इस तरह होली हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। यह त्यौहार बसंत ऋतू के स्वागत का त्यौहार माना जाता है।होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय त्यौहार है। रंगों का त्यौहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन को होलिका जलायी जाती है, जिसे होलिका दहन भी कहते हैं।दूसरा दिन धूलिवंदन कहलाता हैं | इस दिन रंगअबीर-गुलाल इत्यादि फेंकते हैं, ढोल बजा कर होली के लोकगीत गाये जाते हैं और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता को भूल कर गले मिलते हैं और फिर से दोस्त बन जाते हैं। एक दूसरे को रंगने और गाने-बजाने का दौर दोपहर तक चलता है। इसके बाद स्नान कर के विश्राम करने के बाद नए कपड़े पहन कर शाम को लोग एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं, गले मिलते हैं और मिठाइयाँ खिलाते हैं।भारतीय ज्योतिष के अनुसार चैत्र शुदी प्रतिपदा के दिन से नववर्ष का भी आरंभ माना जाता है। इस उत्सव के बाद ही चैत्र महीने का आरंभ होता है। अतः यह पर्व नवसंवत का आरंभ तथा वसंतागमन का प्रतीक भी है।

इस साल 2022 में होली का त्यौहार 19 मार्च 2022, दिन 

शनिवार को मनाई जाएगी।


होलिका दहन 2022 तिथि - 17 मार्च 2022, गुरुवार 

होलिका दहन उत्तम मुहूर्त- होलिका दहन के लिए उत्तम मुहूर्त 17 मार्च रात 12 बजकर 58 मिनट से रात 02 बजकर 12 मिनट तक है। इसके बाद ब्रह्म मुहूर्त शुरू हो जाएगा। इस दौरान होलिका की पूजा करना लाभकारी रहेगा। 

भद्रा पूंछ- 17 मार्च रात 09 बजकर 04 मिनट से 10 बजकर 14 मिनट तक

भद्रा मुख- 17 मार्च रात 1 बजकर 20 मिनट से 18 मार्च सुबह 12 बजकर 57 मिनट तक

रंगवाली होली- 19 मार्च

पूर्णिमा तिथि आरंभ- दोपहर 12 बजकर 57 मिनट से  (17 मार्च)

पूर्णिमा तिथि समाप्त- दोपहर 12 बजकर 53 मिनट तक (18 मार्च)

एक दिन के अंतर से मनाई जाएगी होली

पंचांग की गणना के अनुसार होलिका दहन इस साल 17 मार्च को होगा और रंगोत्सव, रंग गुलाल वाली होली 19 मार्च को होगी।धार्मिक ग्रंथ में कहा गया है कि यदि प्रदोष काल में भद्रा हो और निशीथ काल से पहले भद्रा समाप्त हो जा रही हो, तब भद्रा के समाप्त होने पर निशीथ काल यानी मध्य रात्रि से पहले होलिका दहन कर लेना चाहिए। इस लिहाज से 17 तारीख को प्रदोष काल में भद्रा है और मध्य रात्रि में भी भद्रा का साया बना हुआ है। इसके साथ ही अगले दिन प्रदोष काल से पहले ही पूर्णिमा समाप्त हो जा रही है। नियम के अनुसार होलिका दहन पूर्णिमा तिथि में भद्रा रहित काल में करना चाहिए।तिथि के अनुसार 17 मार्च को रात्रि के 12:57 के बाद ही होलिका दहन करना है। जबकि, एक दिन बीच करके यानी उदया तिथि के हिसाब से 19 मार्च को होली मनाई जाएगी।कुछ जगहों पर 18 और 19 दोनों को रंग वाली होली खेली जाएगी।

होलिका दहन भद्रा में नहीं करने का कारण

शास्त्रों के अनुसार, भद्रा को अशुभ माना जाता है। क्योंकि भद्रा के स्वामी यमराज होते हैं। इसलिए इस योग में कोई भी शुभ काम करने की मनाही होती है। लेकिन भद्रा की पुंछ काल में होलिका दहन किया जा सकता है। क्योंकि इस समय भद्रा का प्रभाव काफी कम होता है और व्यक्ति को दोष भी नहीं लगता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भद्रा भगवान सूर्य की पुत्री और शनिदेव की बहन है। ऐसे में उनका स्वभाव बिल्कुल शनिदेव की तरह ही है। इन्हें कोध्री स्वभाव का माना जाता है। इसी कारण इस स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए भगवान ब्रह्मा ने काल गणना में एक प्रमुख अंग में विष्टि करण को जगह दी है। कहा जाता है कि भद्रा हर समय तीनों लोक का भ्रमण करती रहती हैं। इसलिए जब पृथ्वी में भद्रा होती है तो उस समय किसी भी तरह का शुभ कार्य नहीं किया जाता है।

होली पर बन रहे ये खास संयोग-


इस साल होली पर वृद्धि योग, अमृत सिद्धि योग व सर्वार्थ सिद्धि योग के साथ ध्रुव योग का निर्माण हो रहा है। वृद्धि योग में किए गए कार्यों से लाभ प्राप्त होने की मान्यता है। वहीं सर्वार्थ सिद्धि योग में कार्यों से पुण्य प्राप्त होता है। ध्रुव योग से चंद्रमा और सभी राशियों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा होली पर इस साल बुध-गुरु की युति से आदित्य योग का भी निर्माण हो रहा है।

होलिका पूजन :-

होलिका दहन के लिए हमें एक लोटा जल,माला,रोली,चावल,गन्ध, पुष्प,कच्चा सूत, गुड़,सबूत हल्दी,मूंग,बताशे,गुलाल,नारियल,गेहूं की बालियाँ आदि की आवश्यकता रहती है। होलिका दहन करने से पहले होली की पूजा की जाती है।इस पूजा को करते समय पूजा करने वाले को होलिका के पास जाकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुहँ करके बैठकर होलिका का पूजन करना चाहिए।बड़गुल्ले की बनी चार मालाएं इनमें से एक पितरों के नाम की, दूसरी हनुमान जी के नाम की, तीसरी शीतला माता के नाम की तथा चौथी माला अपने घर परिवार की होलिका को समर्पित कर कच्चे सूत की तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटें फिर लोटे का शुद्ध जल व अन्य पूजन की सभी वस्तुएं होली को समर्पित करें।गंध पुष्प का प्रयोग करते हुए पंचोपचार विधि से होलिका का पूजन करें।पूजन के बाद जल से अर्ध्य दे तथा सूर्यास्त के बाद प्रदोषकाल में होलिका में अग्नि प्रज्ज्वलित करें। 

होली की राख से लाभ :-


होली की अग्नि में सेंक कर लाये गए धान्यों को खाएं, इसके खाने से निरोगी रहने की मान्यता है।ऐसा माना जाता है कि होली की बची हुई अग्नि तथा राख को अगले दिन प्रातः काल घर में लाने से घर को अशुभ शक्तियों से बचाने में सहयोग मिलता है तथा इस राख को शरीर पर लेपन करना भी कल्याणकारी रहता है।

होली की कहानी  व होली क्यों मनाई जाती है ?

हर त्यौहार की अपनी एक कहानी होती है, जो धार्मिक मान्यताओ पर आधारित होती है। होली के पीछे भी कुछ प्रमुख कथा हैं।

प्रथम कथा : प्रह्लाद और होलिका की कथा


होली का त्यौहार प्रह्लाद और होलिका की कथा से भी जुड़ा  हुआ है। विष्णु पुराण तथा श्रीमद भागवत पुराण की एक कथा के अनुसार प्रह्लाद के पिता दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने तपस्या कर भगवान ब्रम्हा जी  से यह वरदान प्राप्त कर लिया कि वह न तो पृथ्वी पर मरेगा न आकाश में, न दिन में मरेगा न रात में, न घर में मरेगा न बाहर, न अस्त्र से मरेगा न शस्त्र से, न मानव से मारेगा न पशु से। इस वरदान को प्राप्त करने के बाद वह स्वयं को अमर समझ कर नास्तिक और निरंकुश हो गया। इसलिए वह देवताओं से घृणा करता था और उसे देवताओं के भगवान विष्णु  का नाम सुनना भी पसंद नहीं था, लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। वह चाहता था कि उनका पुत्र भगवान नारायण की आराधना छोड़ दे, परन्तु प्रह्लाद इस बात के लिये तैयार नहीं था। हिरण्यकश्यपु ने उसे बहुत सी प्राणांतक यातनाएँ दीं लेकिन वह हर बार बच निकला। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी। अतः उसने होलिका को आदेश दिया के वह प्रह्लाद को लेकर आग में प्रवेश कर जाए जिससे प्रह्लाद जलकर मर जाए।प्रहलाद अपनी बुआ के साथ वेदी पर बैठ गया और अपने भगवान की भक्ति में लीन हो गया। तभी अचानक होलिका जलने लगी और आकाशवाणी हुई, जिसके अनुसार होलिका को याद दिलाया गया, कि अगर वह अपने वरदान का दुरूपयोग करेगी, तब वह खुद जल कर राख हो जाएगी और ऐसा ही हुआ जब उसने भगवान भक्त प्रह्लाद का वध करने का प्रयत्न किया। होलिका अग्नि में जल गई परन्तु नारायण की कृपा से प्रह्लाद का बाल भी बाँका नहीं हुआ। इसी तरह प्रजा ने हर्षोल्लास से उस दिन खुशियाँ मनाई और आज तक उस दिन को होलिका दहन के नाम से मनाया जाता है जिसमें होलिका जलाते हैं  और अगले दिन रंगो से इस दिन को होली का पर्व के रूप में मनाते हैं।

द्वितीय कथा : राधा और कृष्ण की कथा


होली का त्योहार राधा और कृष्ण की पावन प्रेम कहानी से भी जुड़ा हुआ है। वसंत के सुंदर मौसम में एक दूसरे पर रंग डालना उनकी लीला का एक अंग माना गया है। मथुरा और वृन्दावन की होली राधा और कृष्ण के इसी रंग में डूबी हुई होती है। बरसाने और नंदगाँव की लठमार होली तो प्रसिद्ध है ही देश विदेश में श्रीकृष्ण के अन्य स्थलों पर भी होली की परंपरा है। यह भी माना गया है कि भक्ति में डूबे जिज्ञासुओं का रंग बाह्य रंगों से नहीं खेला जाता, रंग खेला जाता है भगवान्नाम का, रंग खेला जाता है सद्भावना बढ़ाने के लिए, रंग होता है प्रेम का, रंग होता है भाव का, भक्ति का, विश्वास का। होली उत्सव पर होली जलाई जाती है अंहकार की, अहम् की, वैर द्वेष की, ईर्ष्या मत्सर की, संशय की और पाया जाता है विशुद्ध प्रेम अपने आराध्य का, पाई जाती है कृपा अपने ठाकुर की।

तृतीय कथा : शिव पार्वती और कामदेव की कथा


शिव और पार्वती से संबंधित एक कथा के अनुसार हिमालय पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान शिव से हो जाये पर शिवजी अपनी तपस्या में लीन थे। कामदेव पार्वती की सहायता को आए। उन्होंने पुष्प बाण चलाया और भगवान शिव की तपस्या भंग हो गयी। शिवजी को बड़ा क्रोध आया और उन्होंने अपनी तीसरी आँख खोल दी। उनके क्रोध की ज्वाला में कामदेव का शरीर भस्म हो गया। फिर शिवजी ने पार्वती को देखा। पार्वती की आराधना सफल हुई और शिवजी ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। इस कथा के आधार पर होली की आग में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकत्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है। एक अन्य कथा के अनुसार कामदेव के भस्म हो जाने पर उनकी पत्नी रति ने विलाप किया और शंकर भगवान से कामदेव को जीवित करने की गुहार की। ईश्वर प्रसन्न हुए और उन्होने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया। यह दिन होली का दिन होता है। आज भी रति के विलाप को लोक संगीत के रूप मे गाया जाता है और चंदन की लकड़ी को अग्निदान किया जाता है ताकि कामदेव को भस्म होने मे पीड़ा ना हो। साथ ही बाद मे कामदेव के जीवित होने की खुशी मे रंगो का त्योहार मनाया जाता है।

चौथी कथा : कंस और पूतना की कथा /पूतनावध


कंस ने मथुरा के राजा वसुदेव से उनका राज्य छीनकर अपने अधीन कर लिया स्वयं शासक बनकर आत्याचार करने लगा। एक भविष्यवाणी द्वारा उसे पता चला कि वसुदेव और देवकी का आठवाँ पुत्र उसके विनाश का कारण होगा। यह जानकर कंस व्याकुल हो उठा और उसने वसुदेव तथा देवकी को कारागार में डाल दिया। कारागार में जन्म लेने वाले देवकी के सात पुत्रों को कंस ने मौत के घाट उतार दिया। आठवें पुत्र के रूप में कृष्ण का जन्म हुआ और उनके प्रताप से कारागार के द्वार खुल गए। वसुदेव रातों रात कृष्ण को गोकुल में नंद और यशोदा के घर पर रखकर उनकी नवजात कन्या को अपने साथ लेते आए। कंस ने जब इस कन्या को मारना चाहा तो वह अदृश्य हो गई और आकाशवाणी हुई कि कंस को मारने वाले तो गोकुल में जन्म ले चुका है। कंस यह सुनकर डर गया और उसने उस दिन गोकुल में जन्म लेने वाले हर शिशु की हत्या कर देने की योजना बनाई। इसके लिए उसने अपने आधीन काम करने वाली पूतना नामक राक्षसी का सहारा लिया। वह सुंदर रूप बना सकती थी और महिलाओं में आसानी से घुलमिल जाती थी। उसका कार्य स्तनपान के बहाने शिशुओं को विषपान कराना था। अनेक शिशु उसका शिकार हुए लेकिन कृष्ण उसकी सच्चाई को समझ गए और उन्होंने पूतना का वध कर दिया। यह फाल्गुन पूर्णिमा का दिन था अतः पूतनावध की खुशी में होली मनाई जाने लगी।

पांचवी कथा : राक्षसी ढुंढी की कथा


राजा पृथु के समय में ढुंढी नामक एक कुटिल राक्षसी थी। वह अबोध बालकों को खा जाती थी। अनेक प्रकार के जप-तप से उसने बहुत से देवताओं को प्रसन्न कर के उसने वरदान प्राप्त कर लिया था कि उसे कोई भी देवता, मानव, अस्त्र या शस्त्र नहीं मार सकेगा, ना ही उस पर सर्दी, गर्मी और वर्षा का कोई असर होगा। इस वरदान के बाद उसका अत्याचार बढ़ गया क्यों कि उसको मारना असंभव था। लेकिन शिव के एक शाप के कारण बच्चों की शरारतों से वह मुक्त नहीं थी। राजा पृथु ने ढुंढी के अत्याचारों से तंग आकर राजपुरोहित से उससे छुटकारा पाने का उपाय पूछा। पुरोहित ने कहा कि यदि फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन जब न अधिक सर्दी होगी और न गर्मी सब बच्चे एक एक लकड़ी लेकर अपने घर से निकलें। उसे एक जगह पर रखें और घास-फूस रखकर जला दें। ऊँचे स्वर में तालियाँ बजाते हुए मंत्र पढ़ें और अग्नि की प्रदक्षिणा करें। ज़ोर ज़ोर से हँसें, गाएँ, चिल्लाएँ और शोर करें। तो राक्षसी मर जाएगी। पुरोहित की सलाह का पालन किया गया और जब ढुंढी इतने सारे बच्चों को देखकर अग्नि के समीप आई तो बच्चों ने एक समूह बनाकर नगाड़े बजाते हुए ढुंढी को घेरा, धूल और कीचड़ फेंकते हुए उसको शोरगुल करते हुए नगर के बाहर खदेड़ दिया। कहते हैं कि इसी परंपरा का पालन करते हुए आज भी होली पर बच्चे शोरगुल और गाना बजाना करते हैं।

कैसे  मनाते हैं होली  ?


होली का त्यौहार पुरे भारत में मनाया जाता है, लेकिन बिहार और उत्तर भारत में इसे अधिक उत्साह से मनाया जाता है। होली का त्यौहार देखने के लिए लोग ब्रज, वृन्दावन, गोकुल जैसे स्थानों पर जाते है। इन जगहों पर यह त्यौहार कई दिनों तक मनाया जाता हैं।

ब्रज में ऐसी प्रथा है, जिसमे पुरुष महिलाओं पर रंग डालते है और महिलाए उन्हें डंडे से मारती है, यह एक बहुत ही प्रसिद्ध प्रथा है, जिसे देखने लोग उत्तर भारत जाते है।

कई स्थानों पर फूलों की होली भी मनाई जाती है और गाने बजाने के साथ सभी एक दुसरे से मिलते है और खुशियाँ मनाया  करते है।  

मध्य भारत एवं  महाराष्ट्र में रंग पञ्चमी का अधिक महत्त्व है, लोग टोली बनाकर रंग, गुलाल लेकर एक दुसरे के घर जाते है और एक दुसरे को रंग लगाते है और कहते है “बुरा न मानों होली है ”। मध्य भारत के इंदौर शहर में होली की कुछ अलग ही धूम होती है, इसे रंग पञ्चमी की “गैर” कहा जाता है, जिसमे पूरा इंदौर शहर एक साथ निकलता है और नाचते गाते त्यौहार का आनंद लिया जाता। इस तरह के आयोजन के लिए 15 दिन पहले से ही तैयारिया की जाती है।

रंगो के इस त्यौहार को “फाल्गुन महोत्सव” भी कहा जाता है, इसमें पुराने गीतों को ब्रज की भाषा में गाया जाता। भांग का पान भी होली का एक विशेष भाग है। नशे के मदमस्त होकर सभी एक दुसरे से गले लगते सारे गिले शिक्वे भुलाकर सभी एक दुसरे के साथ नाचते गाते है।

होली पर घरों में कई पकवान बनाये जाते है। स्वाद से भरे हमारे देश में हर त्यौहार में विशेष पकवान बनाये जाते है।

आपने ये तो जान लिया की भारत देश  में होली कैसे मनाई जाती हैं लेकिन अब हम आपको बताने जा रहे हैं बिहार में होली कैसे मनाई जाती हैं|  होली जैसे बड़े पर्व को लेकर बड़ी आबादी अभी से उत्‍साहित है। लोगों का मन अभी से होलियाने लगा है। वैसे तो ज्‍यादातर जगहों पर होली खेलने के तौर-तरीके अमूमन एक जैसे ही होते हैं, लेकिन बिहार की कुर्ताफाड़ होली अपने-आप में बेहद खास है।

मनहुआ तो फागुन हुआ देही बनी गुलाल

रतनारी आंखें बने। रस रंगों के जाल 

हिलमिल होली खेलीए  मन का आपा खोय 

कल की किसको क्या पता कोन कहा पर होय

बिहार की होली की खास-खास बातों पर डालिए एक नजर:-

शहरों की होली की क्या हैं  खासियत :-

  • सुबह-सुबह पक्‍के रंगों से होली खेली जाती है |
  • धूल-मिट्टी का इस्‍तेमाल इच्‍छा या उपलब्‍धता के आधार पर किया जाता हैं |
  • आम तौर पर परिचितों को ही रंग लगाए जाते हैं |
  • अनजान राहगीरों को बख्‍शने का चलन, पर इसकी गारंटी नहीं हैं |
  • 'कुर्ताफाड़' होली सिर्फ शाम ढलने तक ही खेली जाती हैं |
  • नए कपड़े फाड़ने पर रोक, कपड़े बदलकर आने का पूरा टाइम दिया जाता है |

शाम के वक्‍त क्‍या हैं खास ?

  • शाम को एक-दूसरे को अबीर लगाने का हैं चलन |
  • बड़ों के पैर पर अबीर डालकर आशीर्वाद लिए जाते हैं |
  • बच्‍चों और समान उम्र के लोगों को चेहरे पर अबीर लगाए जाते हैं |
  • परिचित महिलाओं को आदर भाव के साथ लिमिट में रहकर अबीर लगाए जा सकते हैं |


गांवों की होली की खासियत

  • गांवों में ज्‍यादातर सुबह से लेकर दोपहर तक धूल-मिट्टी, गोबर आदि एक-दूसरे लगाए जाते हैं |
  • दोपहर में स्‍नान के बाद भी रंग और अबीर साथ-साथ लगाए जाते हैं |
  • नए कपड़ों पर भी पक्‍के रंग होली खेलने का चलन हैं |
  • फगुआ यानी होली के परंपरागत गानों की धूम मची होती हैं  |


गाने-बजाने में क्‍या-क्‍या ?

  • होली खेलने निकली टोलियों में ढोल-झाल पर गीत-संगीत और बिहार लोकगीत |
  • भक्‍त‍िभाव वाले गीतों में:
                  -  होली खेले रघुबीरा


खाने में क्‍या-क्‍या होता हैं  खास ?

  • होलिका दहन की रात में बने चावल-कढ़ी, पुआ, गुलगुला आदि होली के सुबह भी खाने का भी चलन |
  • मान्‍यता है कि ये खाने से सालोंभर मन-मिजाज में तरावट बनी रहती है |
  • सुबह से लेकर रात तक यानि नाश्ते में रंग- बिरंगी सब्जी (कटहल की सब्जी, आलू गोभी मटर इत्यादि ), विभिन्न प्रकार के पूआ, पूड़ी, मटन, पुलाव, दही-बड़े, छोले आदि व्‍यंजन पकाये जाते हैं |
  • दहीबड़े पर इमली की चटनी के साथ काले नमक का विशेष इस्‍तेमाल  किया जाता हैं |


पीने में क्‍या-क्‍या होता हैं  खास ?

  • कुछ जगहों में भांग से बनी ठंढई की ज्‍यादा डिमांड होता हैं |
  • चाय-कॉफी, कोल्‍डड्रिंक, ठंडा पानी, और क्‍या... ;)
  • वैधानिक चेतावनी: बिहार में शराब पूरी तरह बैन है |

तो प्रेम से बोलिए, बुरा न मानो होली है...

होली में इन चीज़ों में रखे सावधानी :-


  • होली रंग का त्यौहार है पर सावधानी से मनाया जाना जरुरी है। आजकल रंग में मिलावट होने के कारण कई नुकसान का सामना करना पड़ता है इसलिए गुलाल से होली मानना ही सही होता है।
  • साथ ही भांग में भी अन्य नशीले पदार्थो का मिलना भी आम है इसलिए इस तरह की चीजों से बचना बहुत जरुरी है।
  • गलत रंग के उपयोग से आँखों की बीमारी होने का खतरा भी बड़ रहा है।इसलिए रसायन मिश्रित वाले रंग के प्रयोग से बचे।
  • घर से बाहर बनी कोई भी वस्तु खाने से पहले सोचें मिलावट का खतरा त्यौहार में और अधिक बड़ जाता है।
  • सावधानी से एक दुसरे को रंग लगाये, अगर कोई ना चाहे तो जबरदस्ती ना करे। होली जैसे त्योहारों पर लड़ाई झगड़ा भी बढ़ने लगा है।                                       


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