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मार्गशीर्ष अमावस्या : व्रत रखकर इस काम से प्रसन्न हो जाते हैं पूर्वज पितृ |
हिन्दू कैलेंडर में अमावस्या का विशेष महत्व होता है। इस दिन कई प्रकार के धार्मिक कार्य किए जाते हैं।मार्गशीर्ष माह के संदर्भ में कहा गया है कि इस माह का संबंध मृगशिरा नक्षत्र से होता है। ज्योतिष के अनुसार इस माह की पूर्णिमा मृगशिरा नक्षत्र से युक्त होती है, जिस कारण से इस मास को मार्गशीर्ष मास कहा जाता है।मार्गशीर्ष माह के बारे में स्वयं श्री कृष्ण कहते हैं कि ‘‘महीनों में वह मार्गशीर्ष हैं’’ इससे महत्व और अधिक बढ़ जाता है। जिस गीता को हिंदूओं में जीवन का दर्शन माना जाता है उस गीता का ज्ञान मान्यतानुसार भगवान श्री कृष्ण ने इसी माह में दिया था। अत: इस माह की अमावस्या तिथि भी बहुत ही पुण्य फलदायी मानी जाती है।इसके अतिरिक्त इस महीने को ‘मगसर’, ‘अगहन’ या ‘अग्रहायण’ माह भी कहा जाता है। यही कारण है कि मार्गशीर्ष अमावस्या को 'अगहन अमावस्या' भी कहा जाता है।जिस प्रकार कार्तिक मास की अमावस्या को लक्ष्मी का पूजन कर दीपावली मनाई जाती है, उसी प्रकार इस दिन भी देवी लक्ष्मी का पूजन करना शुभ होता है। वैसे तो प्रत्येक अमावस्या का अपना खास महत्व होता है और अमावस्या तिथि स्नान-दान-तर्पण आदि के लिये जानी जाती है। चूंकि इस वर्ष मार्गशीर्ष मास की अमावस्या तिथि 14 दिसंबर दिन सोमवार को है, सोमवार दिन होने के कारण यह सोमवती अमावस्या है। इसके साथ ही इसे दर्श अमावस्या भी कहते हैं। सोमवती अमावस्या के दिन स्नान, दान, पुण्य आदि का बड़ा महत्व है। इस दिन पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण और पिंडदान भी किया जाता है।
सोमवती अमावस्या का महत्व | Somvati Amavasya Ka Mahatva
शास्त्रों में कहा गया है कि देवताओं से पहले अपने पूर्वज़ों-पितरों को प्रसन्न करना चाहिये। अक्सर अपने पितरों को प्रसन्न करने के प्रयास करते भी हैं।जिस प्रकार श्राद्ध पक्ष की अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या मनाई जाती है उसी प्रकार अगहन अमावस्या यानि मार्गशीर्ष अमावस्या को व्रत रखने से भी पितर प्रसन्न किये जा सकते हैं। जिन जातकों की कुंडली में पितृ दोष हों, जिनकी कुंडली के योगों में संतान प्राप्ति के लक्षण ही न दिखाई देते हों, या फिर भाग्य स्थान में राहू नीच के हों इस प्रकार के पीड़ित योग वाले जातकों को इस अमावस्या का उपवास अवश्य करना चाहिये। मान्यता है कि इसके रखने से उपासक को मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं। 'विष्णुपुराण' के अनुसार श्रद्धा भाव से अमावस्या का उपवास रखने से न केवल पितृगण अपितु ब्रह्मा, इंद्र, रूद्र, अश्विनीकुमार, सूर्य, अग्नि, पशु-पक्षियों सहित समस्त भूत-प्राणियों की तृप्ति होती है।
मार्गशीर्ष अमावस्या 2020 में कब है?
मार्गशीर्ष अमावस्या मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि होती है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार साल 2020 में यह तिथि 14 दिसंबर को सोमवार के दिन है।पंचांग और ज्योतिष गणना के अनुसार 14 दिसंबर को पंचग्रही योग का निर्माण हो रहा है। इसलिए इस वार की सोमवती अमावस्या दान और पुण्य के लिए अत्यंत ही शुभ मानी जा रही है।सूर्य ग्रहण भी इसी दिन लग रहा है। इस ग्रहण को साल का आखिरी सूर्य ग्रहण कहा जा रहा है। पंचांग के अनुसार ग्रहण के बाद सूर्य अपनी राशि को बदलेंगे। इस दिन सूर्य वृश्चिक राशि से निकल कर धनु राशि में आ जाएंगे। इस परिवर्तन को धनु संक्रांति कहा जाता है।
मार्गशीर्ष अमावस्या तिथि – 14 दिसंबर 2020
मार्गशीर्ष अमावस्या आरंभ – रात्रि 12 बजकर 44 मिनट (14 दिसंबर 2020) से
मार्गशीर्ष अमावस्या समाप्त – रात्रि 21 बजकर 46 मिनट (14 दिसंबर 2020) तक
सोमवती अमावस्या की पूजा विधि | Somvati Amavasya Puja Ki Vidhi
जिस प्रकार कार्तिक, माघ, वैशाख आदि महीने गंगा में स्नान के लिए अति शुभ एवं उत्तम माने गए हैं, उसी प्रकार मार्गशीर्ष अमावस्या के अवसर पर भी यमुना नदी में स्नान करना विशेषकर पुण्य फलदायी माना जाता है। मार्गशीर्ष माह की अमावस का आध्यात्मिक महत्व खूब रहा है। इस दिन व्रत रखने के साथ साथ श्री सत्यनारायाण भगवान की पूजा व कथा करनी चाहिये। ऐसी मान्यता है जो जातक विधि विधान से यह पूजा करता है उसके लिये यह उपवास अमोघ फलदायी होता है।मार्गशीर्ष मास में शंख पूजा का भी विशेष महत्व बताया गया है। इस दिन नदियों या सरोवरों में स्नान करने तथा सामर्थ्य के अनुसार दान करने से सभी पाप क्षय हो जाते हैं तथा पुण्य कि प्राप्ति होती है।
- सोमवती अमावस्या के दिन ब्रह्ममुहूर्त में किसी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए और उसके बाद साफ वस्त्र धारण करने चाहिए।
- इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा करना बहुत ही शुभ माना जाता है। इसलिए एक साफ चौकी पर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें।
- इसके बाद उन्हें चंदन का तिलक लगाएं और उन्हें पीले फूलों की माला, पीले फूल और ऋतुफल आदि अर्पित करके उनकी विधिवत पूजा करें।
- भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करने के सोमवती अमावस्या की कथा पढ़े या सुनें और भगवान विष्णु की धूप व दीप से आरती उतारें।
- इसके बाद भगवान विष्णु को पीली मिठाई का भोग लगाएं और अपने पितरों का तर्पण भी करें। इसके साथ ही उनके नाम से दान दक्षिणा भी दें।
श्रीकृष्ण का कथन
समस्त महीनों में मार्गशीर्ष श्रीकृष्ण का ही स्वरूप है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में स्वयं कहा है कि, ‘महीनों में मैं मार्गशीर्ष माह हूं।’ भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों को मार्गशीर्ष माह की महत्ता बताई थी तथा उन्होंने कहा था कि, ‘मार्गशीर्ष के महीने में यमुना नदी में स्नान से मैं सहज ही प्राप्त हो जाता हूं।’ अतः इस माह में नदी स्नान का विशेष महत्त्व माना गया है। स्नान के समय ‘नमो नारायणाय’ या ‘गायत्री मंत्र’ का उच्चारण करना फलदायी होता है।सतयुग में देवों ने मार्गशीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही वर्ष का प्रारंभ किया था। मार्गशीर्ष माह में पूरे महीने प्रातःकाल समय में भजन मंडलियां भजन-कीर्तन करती हुई निकलती हैं। मार्गशीर्ष के महीने में स्नान एवं दान का विशेष महत्त्व होता है।
सुहागिनों के लिए क्यों जरूरी है सोमवती अमावस्या व्रत
सोमवती अमावस्या का व्रत विवाहित स्त्रियां अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना के लिए करती हैं। इस दिन सुहागिनें व्रत रखकर पीपल के वृक्ष की दूध, पुष्प, अक्षत, चन्दन एवं अगरबत्ती से पूजा-अर्चना करती हैं और उसके चारों ओर 108 बार धागा लपेटकर परिक्रमा करती हैं तथा भगवान शिव से पति की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती है।
सोमवती अमावस्या की कथा | Somvati Amavasya Ki Katha
सोमवती अमावस्या से सम्बंधित अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। परंपरा है कि सोमवती अमावस्या के दिन इन कथाओं को विधिपूर्वक सुना जाता है।
एक गरीब ब्राह्मण परिवार था। उस परिवार में पति-पत्नी के अलावा एक पुत्री भी थी। वह पुत्री धीरे-धीरे बड़ी होने लगी। उस पुत्री में समय और बढ़ती उम्र के साथ सभी स्त्रियोचित गुणों का विकास हो रहा था। वह लड़की सुंदर, संस्कारवान एवं गुणवान थी। किंतु गरीब होने के कारण उसका विवाह नहीं हो पा रहा था।
एक दिन उस ब्राह्मण के घर एक साधु महाराज पधारें। वो उस कन्या के सेवाभाव से काफी प्रसन्न हुए। कन्या को लंबी आयु का आशीर्वाद देते हुए साधु ने कहा कि इस कन्या के हथेली में विवाह योग्य रेखा नहीं है।
तब ब्राह्मण दम्पति ने साधु से उपाय पूछा, कि कन्या ऐसा क्या करें कि उसके हाथ में विवाह योग बन जाए। साधु ने कुछ देर विचार करने के बाद अपनी अंतर्दृष्टि से ध्यान करके बताया कि कुछ दूरी पर एक गांव में सोना नाम की धोबिन जाति की एक महिला अपने बेटे और बहू के साथ रहती है, जो बहुत ही आचार-विचार और संस्कार संपन्न तथा पति परायण है।
यदि यह कन्या उसकी सेवा करे और वह महिला इसकी शादी में अपने मांग का सिंदूर लगा दें, उसके बाद इस कन्या का विवाह हो तो इस कन्या का वैधव्य योग मिट सकता है। साधु ने यह भी बताया कि वह महिला कहीं आती-जाती नहीं है।
यह बात सुनकर ब्राह्मणी ने अपनी बेटी से धोबिन की सेवा करने की बात कही। अगल दिन कन्या प्रात: काल ही उठ कर सोना धोबिन के घर जाकर, साफ-सफाई और अन्य सारे करके अपने घर वापस आ जाती।
एक दिन सोना धोबिन अपनी बहू से पूछती है कि- तुम तो सुबह ही उठकर सारे काम कर लेती हो और पता भी नहीं चलता। बहू ने कहा- मां जी, मैंने तो सोचा कि आप ही सुबह उठकर सारे काम खुद ही खत्म कर लेती हैं। मैं तो देर से उठती हूं। इस पर दोनों सास-बहू निगरानी करने लगी कि कौन है जो सुबह ही घर का सारा काम करके चला जाता है।
कई दिनों के बाद धोबिन ने देखा कि एक कन्या मुंह अंधेरे घर में आती है और सारे काम करने के बाद चली जाती है। जब वह जाने लगी तो सोना धोबिन उसके पैरों पर गिर पड़ी, पूछने लगी कि आप कौन है और इस तरह छुपकर मेरे घर की चाकरी क्यों करती हैं?
तब कन्या ने साधु द्बारा कही गई सारी बात बताई। सोना धोबिन पति परायण थी, उसमें तेज था। वह तैयार हो गई। सोना धोबिन के पति थोड़ा अस्वस्थ थे। उसने अपनी बहू से अपने लौट आने तक घर पर ही रहने को कहा।
सोना धोबिन ने जैसे ही अपने मांग का सिन्दूर उस कन्या की मांग में लगाया, उसका पति मर गया। उसे इस बात का पता चल गया। वह घर से निराजल ही चली थी, यह सोचकर की रास्ते में कहीं पीपल का पेड़ मिलेगा तो उसे भंवरी देकर और उसकी परिक्रमा करके ही जल ग्रहण करेगी।
उस दिन सोमवती अमावस्या थी। ब्राह्मण के घर मिले पूए-पकवान की जगह उसने ईंट के टुकड़ों से 108 बार भंवरी देकर 108 बार पीपल के पेड़ की परिक्रमा की और उसके बाद जल ग्रहण किया। ऐसा करते ही उसके पति के मुर्दा शरीर में वापस जान आ गई। धोबिन का पति वापस जीवित हो उठा।
इसीलिए सोमवती अमावस्या के दिन से शुरू करके जो व्यक्ति हर अमावस्या के दिन भंवरी देता है, उसके सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। पीपल के पेड़ में सभी देवों का वास होता है। अतः जो व्यक्ति हर अमावस्या को न कर सके, वह सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या के दिन 108 वस्तुओं कि भंवरी देकर सोना धोबिन और गौरी-गणेश का पूजन करता है, उसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
ऐसी प्रचलित परंपरा है कि पहली सोमवती अमावस्या के दिन धान, पान, हल्दी, सिंदूर और सुपाड़ी की भंवरी दी जाती है। उसके बाद की सोमवती अमावस्या को अपने सामर्थ्य के हिसाब से फल, मिठाई, सुहाग सामग्री, खाने की सामग्री इत्यादि की भंवरी दी जाती है और फिर भंवरी पर चढाया गया सामान किसी सुपात्र ब्राह्मण, ननंद या भांजे को दिया जा सकता है।
अमावस्या के दिन बरतें सावधानी
- भूलकर भी अमावस्या की रात को किसी सुनसान जगह पर जाने से बचना चाहिए खासतौर पर श्मशान की तरफ तो कभी नहीं जाना चाहिए। माना जाता है कि भूत-प्रेम, पितृ, पिशाच, निशाचर, जीव-जंतु और दैत्य ज्यादा सक्रिय रहते हैं।
- यदि आपको देर तक सोने की आदत है तो अमावस्या के दिन सुबह जल्दी उठे। इस दिन सुबह जल्दी उठना चाहिए और स्नान करने के बाद सूर्य देवता को जल चढ़ाए।
- अमावस्या के दिन पारिवारिक कलह से बचना चाहिए। अगर आप घऱ में अमावस्या के दिन विवाद करते हैं तो आपके पितर नाराज हो जाते हैं और कृपा नहीं बरसाते हैं। इस दिन घर में शांति का वातावरण बनाए रखना चाहिए।
- अमावस्या पर तामसिक चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए साथ ही इस दिन किसी भी प्रकार का नशा भी नहीं करना चाहिए।
- अमावस्या के दिन संबंध बनाने से बचना चाहिए। गरुण पुराण के अनुसार इस दिन संबंध बनाने से पैदा हुई संतान का जीवन कष्टकारी बना रहता है।
खरमास कब से शुरू हो रहे हैं ?
पंचांग के अनुसार खरमास का आरंभ 16 दिसंबर से होगा। खरमास का समापन 15 जनवरी 2021 को होगा। पौराणिक मान्यता के अनुसार खरमास में किसी भी तरह के मांगलिक और शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। इसलिए जिन लोगों को शुभ कार्य करने हैं वे 16 दिसंबर से पहले पहले कर लें। ज्योतिष गणना के मुताबिक जब सूर्य धनु राशि में आ जाते हैं तो खरमास शुरू हो जाता है। दक्षिणायन का आखिरी महीना ही खरमास होता है। मकर संक्रांति से देवताओं का दिन शुरू हो जाता है। इसी दिन खरमास समाप्त हो जाता है।
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