बिहार मे कैसे सच हुआ भोजपुरी फिल्में बनाने का सपना, जानिए


जब भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद 1950 के दशक में मुंबई में नजीर हुसैन से मिले, तो उन्होंने कहा कि वह चाहते हैं कि तमिल, मराठी, गुजराती जैसी फिल्में भी भोजपुरी में बनाई जाएं। नजीर हुसैन ने डॉ राजेंद्र प्रसाद के इस सपने को ‘गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो’ बनाकर पूरा किया। नजीर हुसैन एक रेलवे कर्मचारी के बेटे थे और खुद भी रेलवे में फायरमैन रह चुके थे । वह पहले ब्रिटिश सेना में शामिल हुए और बाद में सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज में शामिल हुए। उन्होंने न्यू थिएटर में सिनेमा में अपनी शुरुआत की, जहां वे बिमल राय के सहायक बन गए।
 
अभिनेता नासिर हुसैन
 अभिनेता नासिर हुसैन
हुसैनाबाद के आखिरी नवाब की बेटी कुमकुम को गुरु दत्त ने 1954 में ‘आरपार’ के एक गाने ‘कभी आर कभी पार लागा तीरे नजर…’ गाने के साथ लिया था। वास्तव में कोई अन्य नायिका इस लघु गीत में अभिनय करने के लिए तैयार नहीं थी और यह एक पुरुष अभिनेता पर फिल्माया जाने वाला था। यह गीत खूब चला और कुमकुम सुर्खियों में आई।1957 में रिलीज हुई तीन फिल्मों, ‘नया दौर’, ‘मदर इंडिया’ और ‘प्यासा’ की सफलता से कुमकुम को भी फायदा हुआ था।

कुमकुम (22 अप्रैल, 1934 – 28 जुलाई, 2020)
कुमकुम (22 अप्रैल, 1934 – 28 जुलाई, 2020)

1960 में दिलीप कुमार मीना कुमारी की फिल्म ‘कोहेनूर’ के गाने ‘मधुबन में राधिका नाचे रे…’ गाने के लिए दिलीप कुमार को तो सितार बजाना सीखना पड़ा था, मगर कुमकुम को उसके लिए डांस नहीं सीखना पड़ा क्योंकि वह पहले ही शंभु महाराज से कथक सीख चुकी थीं। बाद में गुरु दत्त की तरह ‘रामायण’ बनाने वाले रामानंद सागर भी कुमकुम की प्रतिभा से प्रभावित हुए। जिन रामानंद सागर ने 1968 की सुपर हिट फिल्म ‘आंखें’ में कुमकुम को धर्मेंद्र की बहन की भूमिका दी थी, उन्होंने 1972 में उसी कुमकुम को धर्मेंद्र की हीरोइन बना दिया ‘ललकार’ में। सागर ने अपनी फिल्म ‘जलते बदन’ में भी कुमकुम को किरण कुमार की हीरोइन बनाया। सौ से ज्यादा फिल्मों में काम कर चुकी कुमकुम कभी चोटी की हीरोइनों में शुमार नहीं रहीं लेकिन उन्हें छिटपुट भूमिकाएं मिलती रहीं।

"गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो" ने कुमकुम को भोजपुरी सिनेमा इतिहास की पहली नायिका के रूप में दर्ज किया। नजीर हुसैन ने बिमल राय से विधवा विवाह पर एक पटकथा लिखी। जब बिमल राय को हरी झंडी मिली, तो आरा (बिहार) के एक व्यापारी विश्वनाथ प्रसाद शाहबादी ने इसमें निवेश करने का फैसला किया। शाहबादी के पास धनबाद और गिरिडीह में थिएटर और मुंबई में एक स्टूडियो भी था। इसके निर्देशक बनारस के कुंदन कुमार थे, जिन्होंने संगीतकार आनंद-मिलिंद के पिता चित्रगुप्त को इसका संगीतकार चुना था। चित्रगुप्त को शैलेंद्र को गाने लिखने के लिए मिला, जो अच्छी तरह से चला गया।

22 फरवरी,1963 को आखिरकार डॉ राजेंद्र प्रसाद का सपना पूरा हो गया। भोजपुरी की पहली फिल्म के रूप में ‘गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो’ पटना के वीणा सिनेमाघर में रिलीज हुई। डॉ राजेंद्र प्रसाद, जो 12 साल राष्ट्रपति रहने के बाद 1962 में पटना आ चुके थे, के लिए एक खास शो रखा गया। बड़ी धूमधाम से फिल्म रिलीज हुई, मगर डॉ राजेंद्र प्रसाद इसकी सफलता और लोकप्रियता नहीं देख पाए। 28 फरवरी, 1963 को उनका निधन हो गया। लाल बहादुर शास्त्री का निधन 11 जनवरी, 1966 को गया था और वह ‘जय जवान जय किसान’ नारे पर बनी ‘उपकार’ नहीं देख पाए थे, क्योंकि ‘उपकार’ 11 अगस्त 1967 को रिलीज हुई थी।‘उपकार’ फिल्म का ‘मेरे देश की धरती...’ गीत आज भी 15 अगस्त और 26 जनवरी पर खूब बजता है। 

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