क्या है पित्त विकार के कारण, लक्षण और इलाज ? What are the causes, symptoms and treatment of pitta?


शारीरिक गठन में पित्त दोष की प्रबलता को पित्त प्रकृति (पित्तज प्रकृति) या पित्त शारीरिक प्रकार कहा जाता है। इसे पित्त गठन के रूप में भी जाना जाता है।पित्त हमारे शरीर में पीले रंग का द्रव है जो पाचन में सहायक होता है तथा इसका संबंध शरीर की गर्मी से है। पित्त एक प्रकार का पाचक रस होता है । पित्तनलिका जिगर से निकलकर जहां पर आंत में मिलती है, वहां पर एक ढक्कन होता है। पित्त दोष शरीर में होने वाले किसी भी इन्फेक्शन से भी शरीर की रक्षा करती है । इस लेख में हम जानेंगे की पित्त प्रधान व्यक्ति के लक्षण और पित्त अगर असंतुलित हो जाये तो कौन-कौन सी बीमारियाँ पैदा हो सकती है उसके बारे में । इसके लिए “पित्त प्रधान व्यक्ति” और “पित्त असंतुलन” के बीच का फर्क समझना बहुत जरुरी है जो हमने पिछले लेख में बताया था अगर आपने वह लेख नहीं पढ़ा है तो, पहले उसे जरुर पढ़ ले। (आयुर्वेद के तीन दोष वात पित्त और कफ क्या हैं? What are the three doshas of Ayurveda Vata Pitta and Kapha?)


पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति के कारण, लक्षण और पहचान  :-

पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति के लक्षण :-


पित्त का मुख्य गुण दोष "गर्मी" है।

पित्त दोष के गुण आपकी शारीरिक और मानसिक विशेषताओं का निर्धारण करते हैं।जो कि इस प्रकार हैं:-

इशत स्निग्ध (थोड़ा चिपचिपा या तैलीय)
नरम त्वचा, नाजुक चेहरा, थोड़ी तैलीय त्वचा और थोड़े तैलीय बाल, जो आपकी त्वचा को पर्याप्त रूप से चिकना कर देते हैं, जोड़ों की निर्विघ्ऩ संचालन, बालों का झड़ना, मुँहासे, गंजापन।
ऊष्ण (गर्म)
मजबूत पाचन क्षमता, गर्म शरीर, लाल तालू, लाल होंठ, लाल जीभ, जलन, मुंह में छाले, अति अम्लता, क्रोध और चिड़चिड़ाहट।
तीक्ष्ण (तीव्र या गतिशील शक्ति)
तेज, प्रतिभाशाली, बुद्धिमान मस्तिष्क, बहुत अच्छी क्षुधा, बहुत अच्छा पाचन, तेज दृष्टि और दृष्टिकोण, तार्किक विचार, चित्त की दृढ़ता।
द्रव (तरल या द्रव)
पर्याप्त आमाशय रस, पित्त का पर्याप्त स्राव, अत्यधिक पसीना आना, और रक्तस्राव विकार।
अम्ल (खट्टा)
अच्छा पाचन, गैस्ट्रिक एसिड का उपयुक्त स्राव, जलन, मुँह का खट्टा स्वाद, अम्ल प्रतिवाह।
कटु (तीखा)
उच्च चयापचय दर और पाचक।

आम तौर पर संतुलित पित्त प्रकृति वाले लोगों में पाए जाने वाले शारीरिक लक्षण और मानसिक लक्षण इस प्रकार हैं:-

शारीरिक लक्षण | Physical symptoms
मानसिक लक्षण | Mental symptoms
मध्यम शारीरिक गठन
अच्छा अंतःकरण
मध्यम शारीरिक शक्ति
थोड़ा स्थिर मस्तिष्क
औसत रूप
मस्तिष्क पर मध्यम नियंत्रण
तीखी लेकिन स्पष्ट आवाज
मध्यम मजबूत मस्तिष्क
पीलापन या लालिमा लिए हुए गोरा रंग
जीवन में थोड़ा संतोष
औसत चलने की गति
थोड़ी सी मानसिक सहिष्णुता
माथा मध्यम
मानसिक तनाव के लिए थोड़ा प्रतिरोधी
छाती मध्यम
प्रतिभाशाली
मध्यम आँखें
अनुकूल स्मृति
पीले या गुलाबी रंग के साथ श्वेतपटल नेत्र
उचित सावधान
पलकें कम और पतली दिखाई देती है, लेकिन सूखी नहीं
उचित एकाग्रता
जीभ लाल दिखाई देती है
काफी स्थिर विचार
दन्त संरेक्ष्ण थोड़ा अनियमित दिखाई देता है
अच्छी समझने की शक्ति
चेहरा नाजुक और नरम दिखाई देता है
अल्पकालिक कार्यों में अच्छा
मुंह का स्वाद कड़वा या खट्टा हो सकता है
निडर
नसें काफी उन्नत नहीं होती हैं
साहसी
पेट मध्यम विकसित होता है
बहादुर
औसत शरीर का वजन
प्रशंसा से अत्यधिक प्रभावित होता है
त्वचा पतली, नरम, गर्म और नाजुक
बाल पतले और नरम

नाखून गुलाबी
अच्छी भूख लगती है

अधिक मात्रा में भोजन करना और बार बार खाना खाना
अत्यधिक प्यास महसूस करना, अधिक मात्रा में पानी पीना

मध्यम नींद
नाड़ी तेज और उष्ण

बार-बार मल त्याग करना और दस्त होना
अत्यधिक मासिक धर्म प्रवाह

मासिक धर्म का खून लाल और दुर्गन्धयुक्त



पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति का व्यवहार :-

  • थोड़ी शांति:- बार-बार होने वाला आक्रामक व्यवहार
  • थोड़ी सी रचनात्मकता
  • थोड़ी अहिंसा
  • थोड़ी क्षमा प्रवृत्ति

पित्त प्रकृति के सामाजिक लक्षण:-

  • कुछ मित्र (विश्वसनीय 5 से 10)
  • सार्वजनिक रूप से या मंच पर बोलने में उत्कृष्ट
  • अन्य लोगों द्वारा पसंद किए जाने की संभावना – कुछ लोग उन्हें पसंद करते हैं
  • थोड़ा विश्वसनीय
  • कुछ लंबे समय तक चलने वाले संबंध
  • थोड़ी धार्मिकता
  • थोड़ा अच्छा आचरण
  • थोड़ी दयालुता
  • थोड़ी मदद की प्रकृति
  • थोड़ा झगड़ालू
  • थोड़ी सत्यता
  • अक्सर आभारी
  • वाचाल

पित्त प्रकृति के भावनात्मक लक्षण :-

  • अति-उत्साहित
  • अति सक्रिय
  • जल्दी क्रोध आ जाता है अचानक तेज गुस्से के साथ (आपा खोना); क्रोध थोड़ी देर तक रहता है
  • जल्दी डर लगता है
  • जल्दी मन बदलना
  • प्रसन्न
  • शारीरिक संबंध बनाने की इच्छा पर मध्यम नियंत्रण

शारीरिक रूप से चयापचय (Metabolism):-


पित्त प्रधान वाले व्यक्ति पित्त दोषों तथा पाचन संबंधी विकारों से अधिक प्रभावित होते हैं। ये दोष जन्मजात होते हैं। अत: उन्हें परिवर्तित नहीं, केवल संतुलित किया जा सकता है। बढ़े हुए दोष को कम किया जा सकता है और घटे दोष को बढ़ाया जा सकता है।

आम तौर पर दोष बाधित और असंतुलित पित्त वाले लोगों के शारीरिक लक्षण और मानसिक लक्षणों में निम्नलिखित परिवर्तन देखा जाता है:-

शारीरिक लक्षण | Physical symptoms
व्यवहारिक लक्षण Behavioural symptoms
सूर्य के प्रति अतिसंवेदनशीलता
क्रोध 
सिर में चक्कर आना
अधीरता
सिर में हल्का भारीपन
ईर्ष्या
प्रकाश को सहन करने में असमर्थता
हावी होने की आदत
शरीर में जगह जगह सूजन
सनक / तीव्र इच्छा
अम्लता (एसिडिटी) के कारण हृदय में जलन
जल्दी गुस्सा आना (तुनक-मिजाज)
रक्त स्राव विकार
आत्मालोचन
उच्च रक्तचाप
अवसाद
अधिक मल त्याग (दस्त)
चिडचिड़ाहट
त्वचा में चकत्ते, फुंसी, मुहाँसे
बेचैनी
स्टोमेटाइटिस(Stomatitis), मुंह में अल्सर
आपा खो देना
झुर्रियाँ
हमेशा दूसरों की आलोचना करना
मस्से
बहस में पड़ना
बालों का जल्दी पकना (सफेद होना)

बालों का झड़ना

बालों का कम हो जाना

गंजापन

अत्यधिक पसीना आना

पसीने में दुर्गंध
अत्यधिक मासिक धर्म प्रवाह या अधिक माहवारी

समय पूर्व माहवारी आना
मासिक धर्म के साथ बदबूदार रक्तस्राव

अत्यधिक भोजन का सेवन
पेप्टिक अल्सर, गैस्ट्रिक, आँत का अल्सर

विटामिन ए की कमी के कारण आँखों की कमजोरी
तनाव के कारण हृदयाघात 

अत्यधिक प्यास लगना
मसूड़ों से रक्तस्राव

सीमित कामेच्छा
भोजन-नली में बेचैनी

शरीर में जलन

सिर में जलन

पैरों तथा हथेलियों में जलन
नाक से रक्त बहना

पेशाब में जलन
नाखून पीले होना

साँस में दुर्गध
 बवासीर

 लू लगना
हीट स्ट्रोक

लाल गरम आँखे

पित्त उत्तेजित होने का एक उदाहरण देखें :-


एक व्यक्ति को दिन में दस-बारह बार चाय-कॉफी पीने की आदत थी। वह मात्रा में कम और अनियमित अंतरालों पर भोजन किया करता था और अपने कार्य के दौरान तनाव में भी रहता था ।फलस्वरूप उन्हें गैस्ट्रिक अल्सर हो गया और डॉक्टरों ने उसे ऑपरेशन करवाने की सलाह दी। ऑपरेशन करवाने से पहले उस व्यक्ति ने आयुर्वेदिक उपचार को आजमाने के बारे में सोचा और आयुर्वेदिक चिकित्सक ने उस व्यक्ति को आराम करने को कहा, इसके साथ ही दूध-निर्मित आहार तथा पित्त को शांत करने वाले खाद्य पदाथों के सेवन की सलाह दी। उसे अनियमित भोजन करने की आदत छोड़ने, चाय-कॉफी तथा शराब से दूर रहने के साथ-साथ शारीरिक एवं मानसिक आराम करने का परामर्श दिया।परिणामस्वरूप उस व्यक्ति को आराम मिल गया और ऑपरेशन कराने की नौबत ही नहीं आई।

किस आधार पर व्यक्ति की प्रकृति को निर्धारित किया जा सकता हैं ?


सामान्यत: व्यक्ति से पूछताछ के आधार पर उसकी प्रकृति निर्धारित की जाती है, साथ ही यह शारीरिक जाँच पर भी निर्भर करती है। पूछताछ -भाग (अ) में बताई गई है। नंबर सभी प्रश्न के उत्तर पर निर्भर करते हैं। शारीरिक जाँच का जिक्र भाग (ब) में है। इसके लिए भी नंबर को उसी तरीके से किया जाता है।

पित्त प्रकृति के व्यक्तियों की आदतें अक्सर ये होती है :-

भाग अ :

  • किसी काम को कैसे करते हैं?- मध्यम गति से
  • उत्तेजित हो जाते हैं- मध्यम गति से
  • नई चीजों को ग्रहण करने की शक्ति- तेज
  • याददाश्त- मध्यम
  • भूख, पाचन- अच्छा
  • भोजन की मात्रा, जो आप ग्रहण करते हैं -अधिक
  • कैसा स्वाद पसंद करते हैं- मीठा, कड़वा, सख्त
  • प्यास कैसी लगती है – अधिक
  • किस प्रकार का भोजन पसंद करते हैं गरम या ठंडा- ठंडा
  • किस प्रकार का पेय पसंद करते हैं - ठंडा
  • मल त्याग नियमित है या अनियमित- दिन में दो बार
  • कब्ज की क्या स्थिति है- पतला मल
  • क्या पसीना आता है- आसानी से
  • यौन इच्छा- मध्यम
  • कितने बच्चे- दो या तीन
  • क्या अच्छी नींद आती है- कम, लेकिन अच्छी नींद
  • क्या रोज सपने देखते हैं- कभी-कभी, हिंसक, डरावने
  • बोलने की स्थिति- गुस्से में, चिड़चिड़ाहट के साथ बोलने की आदत
  • बातचीत का तरीका- तेज और स्पष्ट
  • चलने का तरीका- मध्यम गति से, जमीन पर दबाव डालते हुए
  • कार्य के दौरान पैरों, हाथों,भौंहों की हरकतें- साथ-साथ

पित्त प्रकृति के व्यक्तियों की सेहत अक्सर ये होती है :-

भाग ब :


  • चेहरा- सफेद, लालिमा लिये हुए, नाजुक
  • छाती की दृश्य पसलियाँ- मध्यम, परंतु वसायुक्त
  • पेट- मध्यम
  • आँखें - भेदक, तीखी पलकें, भूरी, ताँबे के रंग की
  • सफेद आँखों की पुतली का रंग- पीला, लालिमा लिये हुए
  • जीभ- ताँबे के रंग की
  • दाँत- औसत, लेकिन पीले
  • होंठ- ताँबे के रंग के
  • शारीरिक संरचना- मध्यम
  • शरीर का भार- मध्यम, सामान्य
  • शारीरिक बल- मजबूत, औसत
  • शरीर- मुलायम
  • शरीर पर बाल- ताप्रवर्ण के
  • शरीर की गंध- बगलों में अप्रिय गंध
  • शरीर की गति- सही तथा तेज
  • त्वचा का रंग- गोरा तथा लालिमा लिये हुए
  • त्वचा की प्रकृति- मुलायम, तिल तथा चकते
  • त्वचा की नमी- थोड़ी तैलीय
  • त्वचा का तापमान—कम, कभी-कभी माथा गरम
  • जोड़ -ढीले
  • पैरों के निशान- अनिश्चित
  • नाखून - कम तैलीय, ताम्रवर्णं के
  • हाथ- नम, ताँबे के रंग के
  • आँखें -गरम स्नान, धूप तथा क्रोध के कारण लालिमा लिये हुए
यह आवश्यक नहीं है कि इस आलेख में वर्णित सभी लक्षण आप में होंगे। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह शुद्ध पित्त गठन पर लागू होता है, जो बहुत दुर्लभ है। आप के शरीर में पित्त के साथ साथ कुछ अनुपात में अन्य दोष भी होंगे जो एक-दूसरे के प्रभाव को बदल सकते हैं या बेअसर कर सकते हैं। पित्त दोष में प्रबलता यह दर्शाती है कि आपके शरीर में अधिकतम पित्त शारीरिक प्रकार के लक्षण होंगे।

अल्सर की उत्पति मुख्यतः पित्त के उत्तेजित होने के कारण होती है। ऐसा अधिकतर मामलों में होता है। अल्सर को पित्त कम करने वाले आहार, पूरा आराम तथा दवाओं से ठीक किया जा सकता है। 

 पित्त दोषों के असंतुलन का कारण:-


आहार, शारीरिक गतिविधियों तथा परिवेश में परिवर्तन के कारण दोष असंतुलित हो जाते हैं।सबसे पहले होने वाला शक्तिशाली दोष वात है। यदि वात बढ़ जाए तो वह पित्त तथा कफ को भी उत्तेजित करके असंतुलित कर देता है।

जब पित्त संतुलित होता है तो व्यक्ति कोमल स्वभाव का, खुशमिजाज, जोशीला और अच्छे स्वास्थ्य का स्वामी होता है। पित्त और कुछ नहीं पाचक रस है। पित्त संतुलित व्यक्ति खूब खाता है और स्वस्थ रहता है। जब पित्त असंतुलित होता है तो चेहरे पर मुँहासे तथा बाल गिरने लगते हैं। चालीस वर्ष की उम्र में या उससे भी पहले गंजापन आने लगता है। अच्छी भूख तथा पाचन के कारण शरीर अनुपात से अधिक बढ़ता है, जिसके कारण गैस्ट्रिक अल्सर, छाती में जलन तथा हृदय संबंधी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। ये सब विकार तनाव या दबाव के कारण होते हैं। शोध से पता चला है कि वात असंतुलित होकर और पित्त से मिलकर अधिक समस्याएँ उत्पन्न करता है, जैसे-उच्च रक्तचाप, अर्ध पक्षाघात (हेमीप्लेजिया), चेहरे का पक्षाघात तथा साइटिका।

पित्त असंतुलित क्यों होता है ?


इन चीजों से पित्त प्रधान व्यक्तियों में पित्त असंतुलित हो सकता है:-

  1. तेज धूप में निकलना, 
  2. गरम भट्ठी के पास काम करना, 
  3. गरम जलवायु में रहना, 
  4. तनाव तथा दबाव में रहना, 
  5. तीखी मिर्च वाला, 
  6. गरम तथा मसालेदार भोजन करना, 
  7. अधिक नमक का प्रयोग, 
  8. खमीरवाले खाद्य पदार्थों का सेवन, 
  9. खट्टा भोजन,
  10. अधिक महत्वाकांक्षी होना,
  11. गुस्से से ,काम भावना से, ईर्ष्या की भावना से पित्त बढ़ता है।
किसी भी दोष में असंतुलन कई लक्षण उत्पन्न कर सकता है परंतु ये पित्त-असंतुलन के सामान्य संकेत तथा लक्षण हैं। 

पित्त नाशक आहार | Pitt  Balancing Diet :-


आयुर्वेद के अनुसार प्रत्येक रोग तीन दोषों पर निर्भर है-वात, पित्त और कफ। यदि इनका अनुपात शरीर में ठीक हो तो मनुष्य स्वस्थ रहेगा, कोई रोग उसे नहीं होगा। परन्तु ऐसे लोग बहुत कम होते हैं। कोई न कोई वस्तु प्रत्येक मनुष्य में आवश्यकता से अधिक होती है मतलब असंतुलित होती है। यही रोगों का मूल कारण है। माता-पिता की प्रकृति और उनके रोगों का प्रभाव बच्चे पर जन्म से ही होता है। यदि गर्भिणी माता का पित्त  बढ़ा हुआ था तो बच्चे की जन्म से ही पित्त-प्रकृति होगी। यदि यह बच्चा किसी समय भी पित्त बढ़ाने वाली चीज को खायेगा तो उसे पित्त के रोग जरुर घेर लेंगे। इसी प्रकार यदि कोई बच्चा माँ से कफ प्रकृति लेकर जन्मा है तो जरा-सी कफ वृद्धि से वह रोगी हो जायेगा। जो खुराक स्वास्थ्य की दशा में मनुष्य खाता है वह सब प्रकार की होती है। एक वस्तु वात नाशक होती है, तो दूसरी पित्त वर्द्धक और तीसरी कफ नाशक और वात वर्द्धक। ऐसी खुराक जिसमें तीनों दोष बराबर हों, न कोई खाता है और न खा सकता है क्योंकि हर एक चीज तोलकर तो खाई नहीं जा सकती है । कभी दाल अधिक खा ली तो कभी पेट में चना अधिक पहुँच गया। यदि रोटी से थक गये तो खिचड़ी खा ली।

साधारणतः हमारे भोजन में दाल, चावल और गेहूँ शामिल रहता हैं। चावल पित्त दोष नाशक है, गेहूँ वात नाशक है। मूंग कफ-पित नाशक पर वात बढ़ाने वाली है। इस प्रकार हर रोज ली जाने वाली खुराक एक नया प्रभाव शरीर पर करती है। एक दिन किसी चीज से वात बढ़ गया और दूसरे दिन, सम्भव है कि वात नाशक खुराक मिल गयी तो कुछ कष्ट नहीं होगा । इस प्रकार जो कुछ थोड़ी-सी हानि बिना जाने-बूझे हो गयी थी, वह स्वयं ही दूर हो गयी। मतलब यह है कि हमारा खाना ही हमारे अन्दर सभी रोग विकार उत्पन्न करता है। यदि इसका उपाय न किया जाये या इसकी रोकथाम का प्रबन्ध न किया जाये तो शरीर में नए नए रोग उभर कर सामने आते हैं।



पित्त नाशक आहार : पित्त दोष में क्या  खाना चाहिए?


  • सब्जियाँ, फलियाँ, स्टार्च युक्त भोजन, अन्न, कार्बोहाइड्रेट आदि लें; लेकिन गरम, नमकीन, भारी, तला भोजन, खट्टे तथा नमकीन स्वादवाले तैलीय फास्ट फूड से परहेज करें।


  • यदि चरबी और कोलेस्टरोल अधिक हो तो घी से परहेज करें।

  • अपने भोजन में जीरकादि चूर्ण तथा लहसुन का प्रयोग करें।

  • सामान्यतः पित्त-असंतुलन के शिकार लोग कलेजे की जलन, अत्यधिक प्यास, चिड़चिड़ापन तथा झगड़ालू स्वभाव के शिकार होते हैं। अतः गरमियों में ठंडा ताजा भोजन, दूध, आइसक्रीम, नींबू का रस, जड़ी-बूटीवाली चाय, पुदीना तथा मुलेठी की जड़ आदि लेना उत्तम रहता है ये सब पित्त नाशक आहार है ।

पित्त नाशक आहार : पित्त दोष में क्या नहीं खाना चाहिए?



  • सख्त खाद्य पदार्थ, अचार, खट्टी क्रीम तथा पनीर, कॉफी, लाल मांस, जो गरमी उत्पन्न करता है।


  • मसालेदार भोजन, रेडिमेड भोजन, जो खट्टे और नमकीन होते हैं उन्हें खाने से बचना चाहिए ।

  • बर्फयुक्त ठंडे खाद्य पदार्थ, गरम सूप, मसालेदार भोजन, पनीर तथा खट्टी क्रीम, नमक, नमकीन स्नैक्स के साथ कॉकटेल, मैदा, शराब, सूखा-नमकीन भोजन न लें। ये सभी पेट को उत्तेजित करते हैं।

  • पित्तवाले व्यक्ति के लिए हलका गरम या ठंडा, कड़वा, मीठा तथा सख्त स्वाद, मक्खन के बजाय घी का इस्तेमाल उत्तम रहता है। लेकिन भाप से बना गरम भोजन अनुपयुक्त है।

  • पित्तवाले व्यक्तियों का पाचन जन्म से ही अच्छा होता है। परंतु उन्हें कुछ-कुछ खाने की आदत होती है, जो कभी-कभी पाचन को बाधित तथा अस्त-व्यस्त कर देती है। इसलिए ऐसे व्यक्ति को काफी सचेत रहने की आवश्यकता है।

  • आवश्यकता से अधिक खाने की आदत के साथ-साथ नमक, खट्टा तथा मसालेदार भोजन का अधिक इस्तेमाल शरीर में पित्त की वृद्धि करता है।

  • पित्त के गुण गरम होते हैं, इसलिए ऐसे व्यक्ति को ठंडे भोजन तथा ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है। भोजन में कड़वे तथा तीखे स्वाद से परहेज करना बेहतर है।

पित्त नाशक आहार : नाश्ता



  • सेब का रस सबसे अच्छा होता है। ठंडे अनाज, दालचीनी तथा टोस्ट भी लें। परंतु नमक, तेल और मसाले, अचार, दही, खट्टा दही, खट्टी क्रीम, सिरका, खमीरवाले पदार्थ, अल्कोहलयुक्त पेय, कॉफी तथा नारंगी का रस बिलकुल न लें।

  • थोड़े घी के साथ मछली, चिकन ले सकते हैं; परंतु वसायुक्त मछली से परहेज करें। वैसे शाकाहारी भोजन अधिक अच्छा रहता है।

  • नारियल :- नारियल पित्त को शांत करता है। आयुर्वेद के मुताबिक नारियल का रस यानि पचाने से पहले का स्वाद और विपाक यानि पाचन के बाद का स्वाद दोनों ही मीठे होते हैं। यह शरीर को ठंडक देते हैं। यह अलग बात है कि ये भारी है और कमजोर पाचन वाले लोगों को इसका सेवन कम मात्रा में करना चाहिए। कार्बोनेटेड पेय के मुकाबले नारियल पानी ज्यादा सेहतमंद पेय है। इसके अंदर वसा,पोटैशियम और ज़रूरी इलेक्ट्रोलाइट होते हैं। गर्मियों में जब आपको पसीना बहुत आता है, आपका शरीर इलेक्ट्रोलाइट्स को खो देता है, उस समय नारियल पानी के सेवन से आप इलेक्ट्रोलाइट्स को वापस पा सकते हैं और शरीर को पानी की कमी से बचा सकते हैं। विरेचन यानि शुद्धता के पंचकर्म उपचार में नारियल पानी, पंचकर्म आहार का एक हिस्सा है।

  • तरबूज :- यह चमकदार गुलाबी और खीरे के परिवार से जुड़ा रसीला फल सिंधु घाटी सभ्यता के समय से उपजाया जा रहा है। तरबूज खाने से शरीर में ठंडक का अहसास होता है। आप इसका सेवन सीधे काटकर या फिर जूसर में इसका रस निकालकर कर सकते हैं। यह एंटी ऑक्सीडेंट्स का एक अच्छा स्रोत है, इसमें 90 प्रतिशत पानी होता है, इसके साथ ही इसमें इलेक्ट्रोलाइट्स भी होते हैं। तरबूज एक प्राकृतिक मूत्रवर्धक है, यह लीवर और किडनी को सेहतमंद रखता है।

  • खीरा :- आयुर्वेद में खीरे को कभी-कभी सुशीतला भी कहा गया है जिसका मतलब है प्राकृतिक रूप से ठंडा, यह उन मरीजों के लिए फायदेमंद है जिनको मूत्र संबंधित परेशानियाँ हैं या फिर ज्य़ादा प्यास लगती है। अपने आहार में खीरे को शामिल करने से आप गर्मियों में ठंडक का अहसास करेंगे। आप अपने लिए खीरे का एक स्वादिष्ट पेय भी तैयार कर सकते हैं, इसके रस में आप पुदीने की कुछ पत्तियां डाल लें। इस रस में आधा नींबू निचोड़कर चुटकीभर नमक डाल सकते हैं। एलोवेरा जूस की तासीर भी ठंडी है। खीरा और एलोवेरा दोनों ही पित्त दोष को संतुलित करने वाले माने जाते हैं।

  • नींबू :- गर्मियों में लोग नींबू पानी क्यों पीते हैं इसके पीछे बड़ी वजह है। यह प्राकृतिक रूप से पसीना लाने वाली औषधि है और यह त्वचा से पसीने को आसानी से खत्म भी करता जिससे आपके शरीर को ठंडक मिलती है। आयुर्वेद मानता है कि इसमें पाचन को बेहतर करने के गुण हैं साथ ही यह आम को कम करता है और मुंह को ताजगी देता है। यह कोलेस्ट्रॉल को कम करके हार्ट अटैक के जोखिम को कम करता है। शरीर से विषैले तत्वों को हटाने की आयुर्वेदिक शोधक प्रक्रिया में नींबू का इस्तेमाल किया जाता है।

  • अंकुरित मूँग दाल :- मूंग दाल को अंकुरित करके या फिर पकाकर खाया जा सकता है। दोनों के अंदर ठंडक देने वाला विपाक होता है और यह पित्त दोष को संतुलित करता है। पीली मूंग दाल पचने में आसान है और इसे रोज खाया जा सकता है। अंकुरित मूंग दाल भी गर्मियों में ठंडक देने वाला ऐसा नाश्ता है जिसमें भरपूर पोषण है।

  • छाछ:- छाछ की तासीर ठंडी है, यह पाचन को बेहतर बनाती है, आम को पचाने में मदद करती है, मल त्याग को आसान बनाती है और पित्त दोष को शांत करती है। छाछ को तैयार करने के लिए एक हिस्सा ताजा दही लें, अगर यह गाय के दूध से बना दही हो तो बेहतर रहेगा, अब इसमें तीन हिस्सा पानी मिलाएं। इसको एक मिक्सर में डालें और कुछ देर के लिए चलाएँ। अगर ऊपर मक्खन इकट्ठा हो जाए तो उसे निकाल लें। इसमें भुना हुआ जीरा, एक चुटकी काला नमक या साधारण नमक और थोड़ा सा धनिया पाउडर मिला लें। इसमें थोड़ा सा हरा धनिया या पुदीने का पेस्ट भी मिला सकते हैं। अगर आप छाछ में ये मसाले नहीं मिलाना चाहते तो इसे सादा भी पी सकते हैं।

  • अलसी के बीज:- अलसी के बीज की तासीर ठंडी होती है और गर्मियों में दिनों में किसी भी वक्त इसका सेवन किया जा सकता है। अलसी के बीज को पानी में कुछ देर के लिए भिगो लें फिर निगलने से पहले अच्छी तरह चबाएँ। अलसी के बीज को चबाने से पहले आप ग्राइंडर में इसे पीस भी सकते हैं। अलसी के बीज कब्ज़, मोटापे और हाई ब्लड प्रेशर की दिक्कतों में फायदा पहुँचाते हैं। महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान अलसी के बीज का सेवन नहीं करना चाहिए।

  • घी:- आयुर्वेद के मुताबिक घी की तासीर शरीर और दिमाग के लिए ठंडक देने वाली होती है। सही मात्रा में घी का सेवन पूरे शरीर को पोषण देता है। घी पित्त दोष को शांत करता है, इसलिए घी का सेवन भोजन से पहले या शुरुआती समय में ही कर लेना चाहिए। यह ध्यान रखें कि घी के सेवन के बाद कुछ भी ठंडा न खाएं न पिएं जैसे-आइसक्रीम या ठंडा पानी। भोजन के दौरान हल्का गर्म पानी पीने की सलाह दी जाती है।

  • पुदीना:- आयुर्वेद में पुदीने का इस्तेमाल साँस की दिक्कतों, मितली, सिरदर्द और पाचन तंत्र से जुड़ी परेशानियों को दूर करने में किया जाता है। इसका ज्यादातर इस्तेमाल गर्मियों के पेय में किया जाता है क्योंकि इसके अंदर ठंडक देने का प्राकृतिक गुण होता है जो पित्त दोष को संतुलित करता है। मुँह की परेशानियों में भी पुदीना फायदा पहुँचाता है। अपने ताजा फलों के जूस में पुदीना मिलाएं या फिर इसकी चटनी बनाकर खाएँ। शरीर से विषैले तत्वों को निकालने के लिए आयुर्वेद की शोधक प्रणाली में पुदीने की चाय पीने की सलाह दी जाती है।

  • नीम की पत्तियाँ:- पित्त दोष को संतुलित करने में ज्य़ादातर कसैली चीजों को फायदेमंद माना जाता है। नीम की पत्तियों में ठंडक देने वाले गुण होते हैं जो रक्त धातु और खून को साफ करते हैं। नीम की पत्तियां लीवर, पैनिक्रियास की कार्यप्रणाली को बेहतर बनाती हैं और रक्त शर्करा के स्तर को सामान्य करती हैं।

  • पित्त नाशक आहार के अनुसार फल :- सेब, नारंगी, चेरी, नारियल, अंजीर, आलूबुखारा, मीठे तथा पके अंगूर तथा आम 

  • पित्त प्रकृतिवालों के लिए वर्जित फल : केला, बेरी (रसभरी), खरबूज, खट्टी चेरी, अनन्नास, अंगूर, पपीता, खट्टे पदार्थ।

  • पित्त नाशक सब्जियाँ : शतावर, मशरूम, चोकी, गोभी, भिंडी, अंकुरित सब्जियाँ मटर, बंदगोभी, फूलगोभी, शकरकंद, ककड़ी, पत्तेदार सब्जियाँ, हरी फलियाँ,

  • पित्त प्रकृतिवालों के लिए वर्जित सब्जियाँ :- प्याज, मूली, टमाटर, लहसुन तथा गाजर।


मेडिटेशन या ध्‍यान पित्त को संतुलित करने का सबसे अच्‍छा तरीका माना जाता है। इसके अलावा जो भी काम आपको पसंद है वो करें और ज्‍यादा से ज्‍यादा खुश रहने की कोशिश करें। आप योग की मदद से भी पित्त दोष को संतुलित कर सकते है, जैसे मार्जरीआसन, शिशु आसन, चंद्र नमस्‍कार, उत्‍कतासन, भुजंगासन, विपरीत शलभासन, पश्चिमोत्तासन, अर्ध नौकासन, अर्ध सर्वांगासन, सेतु बंधासन और शवासन कर सकते हैं।

पित्त की वृद्धि को शांत करने वाली जड़ी बूटियों के विषय में हम आपको आगे प्रकाशित होने वाले लेख में बतायेंगे।

0/Write a Review/Reviews

Previous Post Next Post