Kamada Ekadashi 2020: हिन्दू नववर्ष की पहली एकादशी आज, जानें कामदा एकादशी व्रत एवं पूजा विधि, मुहूर्त, पारण समय और महत्व





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हिन्दू नववर्ष का प्रारंभ चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होता है। ऐसे में हिन्दू नव संवत्सर की पहली एकादशी चैत्र शुक्ल एकादशी को है, जो आज है। चैत्र शुक्ल एकादशी को कामदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। कामदा एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु की विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है और कामदा एकादशी की ​कथा सुनते हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कामदा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को भगवान विष्णु की कृपा से प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है। काम, क्रोध, लोभ और मोह जैसे पापों से मुक्ति के लिए चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत किया जाता है। कामदा एकादशी का व्रत बहुत ही फलदायी होती है, इसलिए इसे फलदा एकादशी में कहते हैं।इस एकादशी व्रत से एक दिन पूर्व यानि दशमी की दोपहर को जौ, गेहूं और मूंग आदि का एक बार भोजन करके भगवान का स्मरण करना चाहिए।कामदा एकादशी के व्रत का महात्म्य भगवान श्रीकृष्ण ने महाराज युधिष्ठिर को बतलाया था। इस साल यह व्रत 4 अप्रैल, शनिवार को है। इस व्रत का पारण द्वादशी तिथि को किया जाता है।आइए जानते हैं ​कि कामदा एकादशी व्रत एवं पूजा विधि, मुहूर्त, पारण का समय आदि क्या है?

कामदा एकादशी कब है?

हिन्‍दू पंचांग के अनुसार चैत्र महीने की शुक्‍ल पक्ष एकादशी को कामदा एकादशी मनाई जाती है। यह एकादशी चैत्र नवरात्र और रामनवमी के बाद आती है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह हर साल मार्च या अप्रैल महीने में मनाई जाती है। इस बार कामदा एकादशी 4 अप्रैल को है। 

कामदा एकादशी की तिथि और शुभ मुहूर्त :-

कामदा एकादशी की तिथि: 4 अप्रैल 2020 
एकादशी तिथि प्रारंभ: 4 अप्रैल 2020 को सुबह 12 बजकर 58 मिनट से 
एकादशी तिथि समाप्‍त: 4 अप्रैल 2020 को रात 10 बजकर 30 मिनट तक
कामदा एकादशी पारण मुहूर्त : सुबह 06:10 से 08:40 बजे 05 अप्रैल 2020
अवधि : 2 घंटे 31 मिनट



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एकादशी व्रत: ऐसे समझें :-

एकादशी हर महीने में २ बार आती हैं। जिस प्रकार हर व्रत का कोई न कोई अर्थ अवश्य होता है और उनका अपना ही विशेष महत्व है। एकादशी एक बार कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में आती हैं। हिन्दू-धर्म के अनुसार मन और तन दोनों ही मोक्षः से परे करने के लिए उपवास करने के नियम बनाए गए है। व्रत करने मानव का शरीर भी ठीक रहता हैं। मन और तन दोनों ठीक रहते है।

कामदा एकादशी का महत्‍व :-


हिन्‍दू धर्म में कामदा एकादशी का विशेष महत्‍व है। कहते हैं कि इस व्रत को करने से राक्षस योनि से तो छुटकारा मिलता ही है साथ ही व्‍यक्ति को सभी संकटों और पापों से मुक्ति मिल जाती है। यही नहीं यह एकादशी सर्वकार्य सिद्धि और सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करती है। मान्‍यता है कि सुहागिन महिलाएं अगर इस एकादशी का व्रत रखें तो उन्‍हें अखंड सौभाग्‍य का वरदान मिलता है। कुंवारी कन्‍याओं की विवाह में आ रही बाधा दूर होती है। घर में अगर उपद्रव और कलेश है तो वो भी इस एकादशी के व्रत के प्रभाव से दूर हो जाता है। इस व्रत को करने से घर में सुख-संपन्नता और प्रसन्‍नता आती है।माना जाता है कि इस व्रत को करने की शुरूवात श्री कृष्ण ने करवाई थी। जब पांडवों को मुक्ति और मोह से छुटकारा पपने की इच्छा हुई तब उन्होंने श्री कृष्ण से इस व्रत के बार में जाना और इस व्रत को किया। तभी से इस व्रत की शुरुवात हुई थी। इस व्रत को करने से शांति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

कामदा एकादशी की पूजा विधि :-

  • कामदा एकादशी के द‍िन भगवान व‍िष्‍णु की पूजा का व‍िधान है।
  •  इस द‍िन तड़के सुबह उठकर पव‍ित्र नद‍ियों या किसी तीर्थ स्‍थान में स्‍नान करना अच्‍छा माना जाता है। 
  •  अगर ऐसा करना संभव न हो तो घर पर ही नहाने के पानी में गंगा जल छ‍िड़क कर स्‍नान करना भी शुभ होता है। 
  • नहाने के बाद घर के मंदिर में श्री हरि विष्‍णु की प्रतिमा, फोटो या कैलेंडर के आगे दीपक जलाएं और व्रत का संकल्‍प लें। 
  • अब भगवान विष्णु का फल, फूल, दूध, पंचामृत और तिल से पूजन करें। 
  • श्री हरि विष्‍णु जी की पूजा में तुलसी दल अवश्‍य रखें। 
  • तत्‍पश्‍चात सत्‍य नारायण की कथा पढ़ें। 
  • अब भगवान विष्‍णु की आरती उतार उन्‍हें भोग लगाएं। 
  • कामदा एकादशी का व्रत रखने वाले भक्‍त को इस द‍िन अनाज ग्रहण नहीं करना चाहिए। 
  • अगले द‍िन यानी कि द्वादश को ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद व्रत का पारण करना चाहिए।


ये नहीं खाएं:-

इस व्रत में चावल पूरी तरह से निषेध माना गया है। जो व्यक्ति इस दिन भूल कर भी चावल खा लेता है उसे भी पाप का भागी माना जाता है। इस व्रत में मसूर की दाल, लहसुन, प्याज़ , मांस मदिरा का भूल कर भी सेवन नहीं करना चाहिए।

कामदा एकादशी व्रत कथा:-


पुराणों में इसके विषय में एक कथा मिलती है। प्राचीनकाल में भोगीपुर नामक एक नगर था। वहाँ पर अनेक ऐश्वर्यों से युक्त पुण्डरीक नाम का एक राजा राज्य करता था। भोगीपुर नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर तथा गन्धर्व वास करते थे। उनमें से एक जगह ललिता और ललित नाम के दो स्त्री-पुरुष अत्यंत वैभवशाली घर में निवास करते थे। उन दोनों में अत्यंत स्नेह था, यहाँ तक कि अलग-अलग हो जाने पर दोनों व्याकुल हो जाते थे। एक दिन गन्धर्व ललित दरबार में गान कर रहा था कि अचानक उसे अपनी पत्नी की याद आ गई। इससे उसका स्वर, लय एवं ताल बिगडने लगे। इस त्रुटि को कर्कट नामक नाग ने जान लिया और यह बात राजा को बता दी। राजा को ललित पर बड़ा क्रोध आया। राजा ने ललित को राक्षस होने का श्राप दे दिया। जब उसकी प्रियतमा ललिता को यह वृत्तान्त मालूम हुआ तो उसे अत्यंत खेद हुआ। ललित वर्षों वर्षों तक राक्षस योनि में घूमता रहा। उसकी पत्नी भी उसी का अनुकरण करती रही। अपने पति को इस हालत में देखकर वह बडी दुःखी होती थी। वह श्रृंगी ऋषि के आश्रम में जाकर विनीत भाव से प्रार्थना करने लगी। उसे देखकर श्रृंगी ऋषि बोले कि हे सुभगे! तुम कौन हो और यहाँ किस लिए आई हो? ‍ललिता बोली कि हे मुने! मेरा नाम ललिता है। मेरा पति राजा पुण्डरीक के श्राप से विशालकाय राक्षस हो गया है। इसका मुझको महान दुःख है। उसके उद्धार का कोई उपाय बतलाइए। श्रृंगी ऋषि बोले हे गंधर्व कन्या! अब चैत्र शुक्ल एकादशी आने वाली है, जिसका नाम कामदा एकादशी है। इसका व्रत करने से मनुष्य के सब कार्य सिद्ध होते हैं। यदि तू कामदा एकादशी का व्रत कर उसके पुण्य का फल अपने पति को दे तो वह शीघ्र ही राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा और राजा का श्राप भी अवश्यमेव शांत हो जाएगा। ललिता ने मुनि की आज्ञा का पालन किया और एकादशी का फल देते ही उसका पति राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त हुआ। फिर अनेक सुंदर वस्त्राभूषणों से युक्त होकर ललिता के साथ विहार करते हुए वे दोनों विमान में बैठकर स्वर्गलोक को प्राप्त हुए। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को विधिपूर्वक करने से समस्त पाप नाश हो जाते हैं तथा राक्षस आदि की योनि भी छूट जाती है। संसार में इसके बराबर कोई और दूसरा व्रत नहीं है। इसकी कथा पढ़ने या सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

2020 अप्रैल से पूरे साल की एकादशी के व्रत : 2020 kei poore saal ki Ekadashi kei vart


एकादशी व्रत : दिन : तारीख

पौष पुत्रदा एकादशी : शनिवार : 04 अप्रैल

वरुथिनी एकादशी : शनिवार : 18 अप्रैल

मोहिनी एकादशी : सोमवार : 04 मई

अपरा एकादशी : सोमवार : 18 मई

निर्जला एकादशी : मंगलवार : 02 जून

योगिनी एकादशी : बुधवार : 17 जून

देवशयनी एकादशी : बुधवार : 01 जुलाई

कामिका एकादशी : गुरुवार : 16 जुलाई

श्रावण पुत्रदा एकादशी : गुरुवार : 30 जुलाई

अजा एकादशी : शनिवार : 15 अगस्त

परिवर्तिनी एकादशी : शनिवार : 29 अगस्त

इन्दिरा एकादशी : रविवार : 13 सितंबर

पद्मिनी एकादशी : रविवार : 27 सितंबर

परम एकादशी : मंगलवार : 13 अक्टूबर

पापांकुशा एकादशी : मंगलवार : 27 अक्टूबर

रमा एकादशी : बुधवार : 11 नवंबर

देवुत्थान एकादशी : बुधवार : 25 नवंबर

उत्पन्ना एकादशी : शुक्रवार : 11 दिसंबर

मोक्षदा एकादशी : शुक्रवार : 25 दिसंबर


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