Mahavir Jayanti 2020: कब है महावीर जयंती? जानिए कौन थे महावीर स्वामी और उनसे जुड़ी कुछ जरूरी बातें



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महावीर स्वामी जन्म और प्रारंभिक जीवन | Mahavir Swami Biography in Hindi:-





क्र. म.
बिंदु(Points)
जानकारी (Information)
1.
नाम(Name)     
महावीर
2.
वास्तविक नाम (Real Name)
वर्द्धमान
3. 
जन्म(Birth)
540 ईसा पूर्व
4.
जन्म स्थान (Birth Place)
कुण्डग्राम, वैशाली, बिहार
5.
पिता (Father Name)
राजा सिद्धार्थ (ज्ञातृक कुल के प्रधान)
6. 
माता का नाम(Mother Name)
त्रिशला (विदेहदत्ता) लिच्छवी गणराज्य के प्रधान चेतक की बहन)
7.
पत्नी का नाम (Wife Name)
यशोदा( कुण्डिन्य गोत्र की कन्या )
8.
वंश(Dynasty)
इक्ष्वाकु
9.
पुत्री (Daughter)
अणोज्जा या प्रियदर्शना 
10.
दामाद का नाम
जमालि
11.
मोक्षप्राप्ति(Death)
527 ईसा पूर्व
12.
मोक्षप्राप्ति स्थान(Death Place)
पावापुरी, जिला नालंदा, बिहार (में राजा हस्तिपाल के यहाँ )

जैन धर्म के 24वें तीर्थकर तथा वास्तविक संस्थापक भगवान महावीर स्वामी ने जीवन भर लोगों को सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने की शिक्षा दी एवं आपस में प्रेम भाव से मिलजुल कर रहने की सलाह दी साथ ही पशुबलि, जातिगत भेदभाव आदि की कड़ी निंदा की।महावीर स्वामी विश्व के उन महात्माओं में से एक थे जिन्होंने मानवता के कल्याण के लिये राजपाट को छोड़कर तप और त्याग का मार्ग अपनाया था।महावीर स्वामी का जीवन हर किसी के लिए प्रेरणादायक है। जिस तरह राजमहल में रहने वाले महावीर स्वामी ने अपने राजसुखों का त्याग कर सत्य की खोज की और परम ज्ञान की प्राप्ति की। वो काफी प्रशंसनीय है। तो आइए जानते हैं महावीर स्वामी जी के जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण एवं अहम बातों के बारे में:-



जैन धर्म के महान तीर्थकर महावीर स्वामी 599 ईसा पूर्व में वैशाली गणतंत्र के क्षत्रियकुंड नगर में इक्ष्वाकु वंश के राजा  सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के यहां चैत्र महीने की त्रयोदशी के दिन एक साधारण बालक के रुप में जन्में थे।महावीर स्वामी बचपन से ही काफी कुशाग्र बुद्धि के एवं तेज बालक थे। उन्होंने कठिन तप के बल पर अपने जीवन को महान बनाया।भगवान महावीर को सन्मति, महावीर श्रमण, वर्धमान आदि नाम से भी जाना जाता है।उनके अलग-अलग नामों के साथ कोई न कोई कथा जुड़ी हुई है।ऐसा कहा जाता है कि, महावीर स्वामी के जन्म के बाद उनके राज्य में खूब उन्नति और वृद्धि हुई थी, इसलिए उनका नाम "वर्धमान" रखा गया था।वहीं बचपन से उनके तेज, साहसी और बलशाली होने की वजह से वे "महावीर" कहलाए।महावीर स्वामी ने अपनी सभी इच्छाओं और इन्द्रियों पर काबू कर लिया था इसलिए उन्हें "जीतेन्द्र" कहा गया।

महावीर स्वामी की शादी | Wedding of Mahavir Swami:-



दिगम्बर परम्परा के अनुसार महावीर बाल ब्रह्मचारी थे। भगवान महावीर शादी नहीं करना चाहते थे क्योंकि ब्रह्मचर्य उनका प्रिय विषय था। भोगों में उनकी रूचि नहीं थी। परन्तु इनके माता-पिता शादी करवाना चाहते थे। दिगम्बर परम्परा के अनुसार उन्होंने इसके लिए मना कर दिया था।श्वेतांबर परम्परा के अनुसार इनका विवाह यशोदा नामक सुकन्या के साथ सम्पन्न हुआ था और कालांतर में प्रियदर्शिनी नाम की कन्या उत्पन्न हुई जिसका युवा होने पर राजकुमार जमाली के साथ विवाह हुआ।

महावीर स्वामी जी का संयासी जीवन | The Life Of Mahavir Swami Ji :-


महावीर स्वामी जी को शुरु से ही संसारिक सुखों से कोई लगाव नहीं था। अपने माता-पिता की मौत के बाद उनके मन में संयासी जीवन अपनाने की इच्छा जागृत हुई थी, लेकिन वे अपने भाई के कहने पर थोड़े दिनों के लिए रुक गए थे।फिर 30 साल की उम्र में महावीर स्वामी जी ने संसारिक मोह-माया को त्यागकर घर छोड़ने का फैसला लिया और वैरागी जीवन अपना लिया।इसके बाद उन्होंने लगातार 12 वर्षों तक कठोर तपस्या के पश्चात जृम्भिक गांव के समीप ऋजुपालिका नदी के तट पर  एक साल वृक्ष के नीचे वर्द्धमान को कैवल्य (ज्ञान) की प्राप्ति हुई।जिसके बाद महावीर "केवलिन" (ज्ञान का विजेता) कहलाए।सभी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने के कारण उन्हें "जिन" अर्थात विजेता कहा गया । तपस्या के रूप में अद्भुत पराक्रम दिखने के कारण उन्हें महावीर , "अर्ह" (योग्य), और "निर्ग्रंथ" (बंधन रहित) जैसी उपाधि मिलीं।ज्ञान प्राप्ति के बाद महावीर ने अपना प्रथम उपदेश राजगृह के निकट वितुलांचन पहाड़ी पर मेधकुमार को दिया ।कुण्डग्राम में ब्राम्हण ऋषभ तथा ब्राम्हणी देवनन्दा को दीक्षा दी । जमालि प्रथम शिष्य बना तथा चम्पा नरेश दधिवाहन की पुत्री चन्दना प्रथम भिक्षुणी बनी।इसके बाद उनके महान उपदेश और उनकी शिक्षाओं के चलते बड़े-बड़े राजा-महाराजा उनके अनुयायी बन गए।उन्होंने अपने उपदेशों के माध्यम से लोगों को जीवों पर दया करने, आपस में मिलजुल कर प्रेम भाव से रहने, सत्य, अहिंसा का मार्ग अपनाने के लिए प्रेरित किया।महावीर के संन्यासी जीवन का उल्लेख कल्पसूत्र में तथा उनकी तपस्या एवं कायाकलेश का वर्णन आचारांगसूत्र में किया गया हैं।



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महावीर जयंती पर्व तिथि व मुहूर्त 2020 | Mahavir Jayanti Parv Date and Muhurat 2020:-

जयंती तिथि :- सोमवार, 6 अप्रैल 2020
त्रयोदशी तिथि आरंभ :- 07:24 pm(5 अप्रैल 2020)
त्रयोदशी तिथि समाप्त :- 05:51pm (6 अप्रैल 2020)

कैसे मनाई जाती महावीर जयंती? | How Mahavir Jayanti is celebrated?:-


इस दिन, जैन धर्म के अनुयायी महावीर जी की मूर्ति को घर लाते हैं और इसे पारंपरिक रूप से अभिषेक के रूप में बुलाया जाता है। अनुयायियों द्वारा महावीर जी के जीवन पर झांकी दिखाने के लिए विशेष जुलूस निकाले जाते हैं। जैन मंदिर भगवान के भक्तों से भरे हुए होते हैं जो समृद्धि के लिए महावीर जी का आशीर्वाद चाहते हैं।

महावीर जयंती के दिन क्या करें? | What to do on the day of Mahavir Jayanti?:-


  • तपस्या बनाए रखें और पूरे दिन उपवास रखें।
  • अपने पूजा घर को फूलों से सजाएं।
  • जैन मंदिरों के दर्शन करें।
  • महावीर जी की मूर्ति को विधिपूर्वक स्नान कराएं।
  • महावीर जी की मूर्ति को दूध के साथ फूल, चावल और फल
  • चढ़ाएं।
  • मंदिर के शीर्ष पर ध्वज को ठीक करें।
  • भव्य जुलूस के लिए महावीर की मूर्ति तैयार करवाएं।
  • महावीर जयंती की प्रार्थना करें।
  • गरीबों को कपड़े, पैसा, खाना या कोई बुनियादी जरूरत की चीजें दान करें।
  • आध्यात्मिक स्वतंत्रता, मूल मूल्यों और महावीर की नैतिकता के दर्शन का प्रचार करें।
  • महावीर जयंती के शुभ दिन खीर तैयार करें और परोसें।


महावीर स्वामी की प्रसिद्ध एवं प्रेरक कथाएं | Mahavir Swami Story in Hindi:-


महावीर स्वामी के जीवन के कई ऐसे प्रसंग प्रचलित हैं, जिनमें सुखी और सफल जीवन के सूत्र छिपे हैं। यहां हम आपको उनकी कुछ प्रसिद्ध कथाओं के बारे में बता रहे हैं-

महावीर स्वामी और ग्वाले की कहानी:-



एक प्रसंग के अनुसार महावीर स्वामी एक दिन पेड़ के नीचे ध्यान में बैठे थे। तभी वहां एक ग्वाला आया और स्वामीजी से बोला कि हे मुनिश्री मैं गांव में दूध बेचकर आता हूं, मेरे लौटने तक मेरी गायों का ध्यान रखना। मुनिश्री ने कोई जवाब नहीं दिया, वह ग्वाला अपनी गायें वहीं छोड़कर गांव में चला गया।

कुछ देर बाद ग्वाला वापस आया तो उसने देखा कि मुनिश्री के आसपास उसकी गायें नहीं हैं। उसने महावीर स्वामी से पूछा कि मेरी गायें कहां हैं, लेकिन स्वामीजी ने कोई जवाब नहीं दिया। वह ग्वाला पास के जंगल में गायों को ढूंढने निकल पड़ा। बहुत कोशिश के बाद भी उसे गायें दिखाई नहीं दीं।

वह लौटकर महावीर स्वामी के पास आया तो देखा कि उसकी गायें स्वामीजी को घेरकर खड़ी हुई हैं। थके हुए ग्वाले को गुस्सा आ गया, वह सोचने लगा कि इस मुनि ने मुझे परेशान करने के लिए मेरी गायों को छिपा दिया था और अब सभी गायों को यहां लेकर आ गया है।

ऐसा सोचकर ग्वाले अपनी कमर में बंधी रस्सी खोली और महावीर स्वामी को मारने के लिए दौड़ पड़ा, तभी वहां एक दिव्य पुरुष प्रकट हुए और उन्होंने ग्वाले से कहा कि मूर्ख रुक जा, ये पाप न कर। तुने बिना स्वामीजी का उत्तर सुने ही अपनी गायें यहां छोड़ दी थीं। वे तो तब भी ध्यान में थे और अभी भी ध्यान में ही हैं। अब तुझे तेरी गायें मिल गई हैं, फिर किस बात का गुस्सा करता है। मूर्खता न कर, ये भावी तीर्थंकर हैं।
दिव्य पुरुष की ये बातें सुनकर ग्वाला महावीर स्वामी के चरणों में गिर पड़ा। उसे अपने किए का पछतावा होने लगा।

प्रसंग की सीख

इस प्रसंग की सीख यह है कि पूरी बात जाने बिना किसी पर क्रोध नहीं करना चाहिए। बिना वजह क्रोध करने पर बाद में पछताना पड़ता है।

महावीर स्वामी एवं चंडकौशिक सर्प से जुड़ी अन्य प्रसिद्ध कथा:-



सत्य और परम ज्ञान की प्राप्ति के लिए जब महावीर स्वामी श्वेताम्बरी नगरी के घनघोर जंगल में कठोर तप करने के लिए जा रहे थे, तभी वहां के कुछ गांव वालों ने उन्हें हमेशा क्रोध में रहने वाले एक चंदकौशिक सर्प के बारे में बताया और उन्हें उस जंगल में आगे जाने के लिए रोकने का प्रयास किया, लेकिन निडर महावीर स्वामी जंगल में चले गए।

वहीं कुछ देर चलने के बाद क्षीण और बंजर जंगल में महावीर अपने ध्यान करने के लिए बैठ गए, तभी क्रोधित चंदकौशिक सर्प वहां आया और अपने फैन फैलाकर महावीर की तरफ आगे बढ़ने लगा।

लेकिन इसके बाबजूद भी महावीर अपने ध्यान से विचलित नहीं हुए, जिसे देख चंडकौशिक जहरीले सर्प ने महावीर के अंगूठे में डस लिया।

वहीं इसके बाबजूद भी महावीर ध्यानमग्न रहे और उनका सर्प के जहर का कोई असर नहीं पड़ा।

वहीं इसके कुछ समय बाद महावीर स्वामी अपनी मधुर वाणी और स्नेह से सर्प से बोले कि सोचो तुम क्या कर रहे हो।

वहीं इसके बाद चंडकौशिक को अपने पिछले जन्म याद आने लगे और उसे अपनी गलती का पछाताव हुए एवं इससे उसका ह्रदय परिवर्तन हो गया एवं वो प्रेम एवं अहिंसा का पुजारी बन गया और उसकी भावनाओं पर नियंत्रण एवं आत्म संयम की वजह से उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई।





महावीर स्वामी और गौतम बुद्ध की खास बातें | Mahavira And Buddha:-


महावीर स्वामी और गौतम बुद्ध दोनों ही सुख-समृद्ध एवं राजपरिवार में जन्में थे और दोनों के पास सभी तरह के ऐश और आराम होते हुए भी दोनों ने कभी भोग-विलास की इच्छा नहीं की बल्कि सत्य की खोज में अपने राजमहल का त्याग कर दिया और घनघोर जंगल में दोनों ही ने कठोर तप किया साथ ही लोगों को समान उपदेश दिए।

इसके अलावा महावीर स्वामी और गौतम बुद्ध में एक अन्य यह भी समानता रही कि दोनों की विचारधारा अंहिसा पर आधारित थी।

महावीर स्वामी का दर्शन स्यादवाद,अनेकांतवाद, त्रिरत्न, पंच महाव्रत में सिमटा हुआ है, तो बौद्ध दर्शन के मुख्य तत्व आष्टांगिक मार्ग, प्रतीत्यसमुत्पाद, बुद्ध कथाएं, अनात्मवाद, आव्याकृत प्रश्नों पर बुद्ध का मौन और निर्वाण है।

इस तरह बौद्ध और जैन दोनों ही धर्मों में यह समानता है कि दोनों ही धर्म सत्य, अपरिग्रह, अस्तेय, सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, ब्रह्राचर्य, अहिंसा, सम्यक चरित्र, अनिश्वरवाद, तप और ध्यान आदि विद्यमान है। अर्थात दोनों ही धर्म लोगों को सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने का संदेश देता है।

इस तरह गौतम बुद्ध एवं महावीर स्वामी दोनों के ही जिंदगी में साल वृक्ष, तप, अहिंसा, क्षत्रिय एवं बिहार की समानता रही है। एवं दोनों की ही कर्मभूमि बिहार ही रही है।

महावीर स्वामी जी की शिक्षाएं | Teachings of Mahavir Swami Ji :-


जैन धर्म के 24वें तीर्थकर महावीर स्वामी जी ने अपनी शिक्षाओं और उपदेशों के माध्यम से न सिर्फ लोगों को जीवन जीने की कला सिखाई, बल्कि सत्य एवं अहिंसा के मार्ग पर चलने की भी शिक्षा दी है।

महावीर स्वामी द्धारा दी गई शिक्षाएं हीं जैन धर्म के मुख्य पंचशील सिद्धांत बने। इन सिद्धांतों में सत्य, अपरिग्रह, अस्तेय, अहिंसा और ब्रह्रमचर्य शामिल है।

पशुबलि एवं हिन्दू समाज में व्याप्त जाति व्यवस्था का विरोध करने वाले महावीर स्वामी जी के इन सिद्धान्तों और शिक्षाओं को अपनाकर कोई भी मनुष्य एक सच्चा जैन अनुयायी बन सकता है।

महावीर स्वामी जी द्वारा बताए गए पंचशील सिद्धान्त इस प्रकार हैं | Mahavir Swami Panchshil Siddhant:-


पहला सिद्धांत- सत्य:-

जैन धर्म के प्रमुख तीर्थकर महावीर स्वामी जी ने अपने पंचशील सिद्धांतों में सबसे पहले ‘सत्य’ को महत्व दिया है। उन्होंने सत्य को दुनिया में सबसे अधिक शक्तिशाली और महान बताया है। उन्होंने लोगों को हमेशा सच्चाई का अनुसरण करने और सच का साथ देने के लिए प्रेरित किया है।

द्धितीय सिद्धांत- अहिंसा:-

जियो और जीने दो के सिद्धान्त पर जोर देने वाले महान तीर्थकर महावीर स्वामी जी ने अहिंसा को सबसे बड़ा धर्म बताया है और लोगों को अहिंसा का पालन करने और आपस में मिलजुल कर प्रेम से रहने की शिक्षा दी है।

तृतीय सिद्धांत- अस्तेय:-

लोगों को दया-करुणा एवं मानवता का पाठ पढ़ाने वाले महान जैन तीर्थकर महावीर स्वामी जी ने लोगों को अस्तेय की भी शिक्षा दी है, जिसका मतलब है, चोरी न करना। अर्थात लोगों को खुद की वस्तुओं में खुश एवं संतुष्ट रहने की सलाह दी है।

चतुर्थ सिद्धांत-ब्रह्मचर्य:-

महावीर जी द्धारा दिए गए प्रमुख सिद्धांतों में ब्रहाचर्य भी प्रमुख है, जिसका पालन एक सच्चा एवं दृढ़निश्चयी अनुयायी ही कर सकता है। ब्रह्राचर्य का पालन जो भी मनुष्य करता है, वह जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है।

पंचम सिद्धांत-अपरिग्रह:-

महावीर स्वामी के द्धारा दिए गए पंचशील सिद्धांतों में अपरिग्रह भी मुख्य है, जिसका मतलब है कि किसी भी अतिरिक्त वस्तु का संचय न करना।

महावीर जी का यह सिद्धान्त लोगों को यह बोध करवाता है कि संसारिक मोह-माया ही मनुष्य के दुखों का प्रमुख कारण है।

महावीर जयंती | Mahavir Jayanti:-



जैन धर्म के प्रमुख तीर्थकर भगवान महावीर स्वामी जी की जयंती हिन्दू धर्म के कैलेंडर के मुताबिक चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदसी को मनाई जाती है।

दरअसल, महावीर स्वामी जी का जन्म 599 ईसा पूर्व में चैत्र मास की 13वें दिन ही बिहार के वैशली में कुण्डलपुर गांव में हुआ था।

इसलिए उनके जन्मदिन को जैन धर्म के लोगों द्धारा महावीर जयंती एवं जैन महापर्व के रुप में मनाया जाता है। महावीर जयंती अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक मार्च माह के आखिरी एवं अप्रैल माह की शुरुआत में पड़ती है।

महावीर जयंती पर जैन मंदिरों को बेहद आर्कषक तरीकों से सजाया जाता है, इसके साथ ही इस दौरान जैन समुदाय के लोगों द्धारा भव्य शोभायात्राएं भी निकाली जाती हैं।

महावीर जयंती पर जैन धर्म के अनुयायी महावीर स्वामी द्धारा दी गई शिक्षाओं को अमल करने का प्रण लेते हैं एवं उनके द्धारा कहे गए उपदेशों और वचनों को याद करते हैं।

महावीर जयंती पर भारत सरकार की तरफ से अधिकारिक छुट्टी भी घोषित की गई है। इस दौरान देश के सभी स्कूल, कॉलेज, ऑफिस, कोर्ट, बैंक समेत सरकारी संस्थान बंद रहते हैं।

महावीर स्वामी के मुख्य कार्य | Mahavir Sami Main Work:-


अहिंसा पर सर्वोच्च अधिकार इस नाते महावीर का सभी आदर करते है। सभी परिस्थितियों में उन्होंने अहिंसा का ही समर्थन किया और उनकी इसी शिक्षा का महात्मा गांधी और रविंद्रनाथ टागोर जैसे महान व्यक्तियों पर भी काफ़ी प्रभाव रहा है।

जिस समय में महावीर रहते थे वो एक अशांत काल था। उस समय ब्राह्मणों का वर्चस्व था। वे स्वयं को अन्य जातियों की तुलना में सर्वश्रेष्ट समझते थे। ब्राह्मणों के संस्कार और प्रथावो का क्षत्रिय भी विरोध करते थे। जैसे की जानवरों को मारकर उनका बलिदान(यज्ञ) देना। महावीर एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अहिंसा का समर्थन किया और निष्पाप प्राणियों की हत्या का विरोध किया।

उन्होंने संपूर्ण भारत भर प्रवास किया और अपने दर्शन की सिख दी जो आठ विश्वास के तत्वों पर, तीन अध्यात्मिक तत्त्वों पर और पाँच नैतिक तत्त्वों पर आधारित थी। “अहिंसा” यानि हिंसा ना करना, “सत्य” यानि सच बोलना, “अस्तेय” यानि चोरी ना करना, “ब्रह्मचर्य” यानि शुद्ध आचरण और “अपरिग्रह “ यानि संपत्ति जमा ना करना।

महावीर जी का निर्वाण प्राप्त करना | Mahavir Ji Nirvan:-



लोगों को सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने का उपदेश देने वाले महान जैन तीर्थकर महावीर स्वामी जी ने 527 ईसा पूर्व में हिन्दी कैलेंडर की कार्तिक महीने की अमावस्या के दिन बिहार के पावापुरी में अपने नश्वर शरीर त्याग दिया था और वे निर्वाण को प्राप्त हुए थे।

इस स्थल को जैन धर्म के प्रमुख एवं पवित्र स्थल के रुप में पूजा जाता है। इसके साथ ही उनके निर्वाण दिवस पर लोग दीप जलाते हैं।

भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण प्राप्त करने के करीब 200 सालों बाद जैन धर्म दिगम्बर और श्वेताम्बर, दो अलग-अलग संप्रदायों में बंट गया था।

आपको बता दें कि दिगंबर संप्रदाय के जैन संत अपने वस्त्रों का त्याग कर देते हैं , जबकि श्वेतांबर संप्रदाय के संत सफेद वस्त्र धारण करते हैं।

महावीर स्वामी जी के अनमोल कथन | Mahavir Quotes:-


महावीर स्वामी जी ने अपने शिक्षाओं और उपदेशों के माध्यम से लोगों को अपने जीवन में सफलता हासिल करने का मंत्र बताया है। महावीर स्वामी जी के कुछ प्रेरणादायक एवं अनमोल कथन इस प्रकार है-

  • मनुष्य को ”जिओ और जीने दो के संदेश” पर कायम रहना चाहिए, किसी को भी दुख नहीं पहुंचाना चाहिए, सभी का जीवन उनके लिए अनमोल होता है। – महावीर स्वामी

  • “खुद पर जीत हासिल करना लाखों शत्रुओं पर जीत हासिल करने से बेहतर है।“- महावीर स्वामी

  • “सभी के प्रति दया रखो, नफरत एवं घृणा करने से सर्वनाश होता है।“- भगवान महावीर स्वामी

  • “आत्मा अजर-अमर है जो कि अकेली ही आती है एवं अकेले ही जाती है उसका न कोई साथ देता है और न ही कोई दोस्त बनता है।“

  • “क्रोध हमेशा ही अधिक क्रोध को जन्म देता है, जबकि क्षमा एवं प्रेम हमेशा अधिक क्षमा और प्रेम को जन्म देते हैं।“



महावीर स्वामी जी के स्तवन (जैन स्तवन भजन) – Mahavir Swami Stavan:-

स्तवन 1 – Mahavir Stavan

श्री शुभविजय सुगुरु नमी, नमी पद्धावती माय,

भव सत्तावीश वर्णवुं, सुणतां समकित थाय,

समकित पामे जीवने, भव गणिती अे गणाय

जो वली संसारे भमे, तो पण मुगते जाय,

वीर जिनेश्वर साहिबो भमियो काल अनंत.

पण समकित पाम्या पछी, अंते थया अरिहंत …।।

स्तवन 2 – Mahavir Stavan:-


नयर माहणकुंडमां वसे रे, महाऋद्धि, ऋषभत्त नाम,

देवानंद द्धिज श्राविका रे, पेट लीधो प्रभु विसराम रे,पेट लीधो प्रभु विसराम…

बयासी दिवसने अंतरे रे, सुर हरिणमेषी आय,

सिद्धारथ राजा घरे रे, त्रिशला कुखे छटकाय रे….

नव मासांतरे जनमीया रे, देव देवीये ओच्छव कीध,

परणी यशोदा जोबने रे, नामे महावीर प्रसिद्ध रे…

भगवान महावीर के प्रमुख ग्यारह गणधर:-


  1. श्री इंद्र्भूती जी
  2. श्री अग्निभूति जी
  3. श्री वायुभूति जी
  4. श्री व्यक्त स्वामीजी
  5. श्री सुधर्मा स्वामीजी
  6. श्री मंडितपुत्रजी
  7. श्री मौर्यपुत्र जी
  8. श्री अकम्पित जी
  9. श्री अचलभ्राता जी
  10. श्री मोतार्यजी
  11. श्री प्रभासजी


जैन धर्म के प्रमुख पर्व | Major Festivals of Jainism  :-


पर्व
तिथी
1
वर्षीतप प्रारंभ दिवस
चैत्र कृष्ण 8
2
भगवान महावीर का जन्म दिवस
चैत्र शुक्ल 13
3
अक्षय तृतीया
वैशाख शुक्ल 3
4
भगवान महावीर केवलज्ञान दिवस
वैशाख शुक्ल 10
5
भगवान महावीर च्यवन दिवस
वैशाख शुक्ल 10
6
पर्युषन पर्व प्रारंभ दिवस
आषाढ़ कृष्ण 12/13
7
संवत्सरी महापर्व
भद्रपद शुक्ल 4/5
8
भगवान महावीर निर्वाण दिवस
कार्तिक कृष्ण 30 (दीपावली)
9
भगवान महावीर दीक्षा दिवस
मार्गशीर्ष कृष्ण 10
10
भगवान पार्श्वनाथ जन्म दिवस
पौष कृष्ण 10

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