दिव्योर्वताम सः मनस्विता: संकलनाम ।
त्रयी शक्ति ते त्रिपुरे घोरा छिन्न्मस्तिके च।।
देवी, अप्सरा, यक्षिणी, डाकिनी, शाकिनी और पिशाचिनी आदि में सबसे सात्विक और धर्म का मार्ग है ‘देवी’ की पूजा, साधना और प्रार्थना करना। कैलाश पर्वत के ध्यानी की अर्धांगिनी सती ने दूसरा जन्म पार्वती के रूप में लिया था। इनके दो पुत्र हैं गणेश और कार्तिकेय। मां पार्वती अपने पूर्व जन्म में सती थीं। नौ दुर्गा भी पार्वती का ही रूप हैं। इस माता सती और पार्वती की पूजा-साधना करना सनातन धर्म का मार्ग है बाकि की पूजा आराधना सनातन धर्म का हिस्सा नहीं है।
जब-जब पापियों और अधर्मियों का अत्याचार बढ़ा है, त्रिगुणात्मक शक्ति ने अवतार लिया है। मां दुर्गा और उनकी दस महाविद्याएं ऐसी ही कष्ट निवारक और महाफलदायी हैं। देवी भगवती की दस महाविद्यायें उनके आध्यात्मिक स्वरूप में विद्यमान हैं। ब्रह्मा जी के पुत्र दत्तात्रेय ने तंत्र शास्त्र के ग्रंथों की रचना करते हुए महिषासुर मर्दिनी और सिद्धिदात्री देवी भगवती के अंदर समाहित इन दस महाविद्याओं का जिक्र किया है। कहते हैं, इन विद्याओं की साधना से ऋषि, मुनि और विद्वान इस संसार में चमत्कारी शक्तियों से युक्त हो जाते हैं। इससे संबंधित सभी जानकारियों का विवरण मार्कंडेय पुराण में दिया गया है। ये दस महाविद्याएं देवी की दस प्रकार की शक्तियों और गति, विस्तर, भरण -पोषण, जन्म-मरण, बंधन और मोक्ष की प्रतीक हैं। सृष्टि के क्रम में चारों युगों में ये दसों महाविद्यायें विराजमान रहती हैं।मार्कण्डेय पुराण में दस महाविद्याओं का और उनके मंत्रों का तथा यंत्रो का जो जिक्र है उसे संक्षेप में यहां प्रस्तुत किया जा रहा है।
दस महाविद्याओं का आविर्भाव क्यों और कैसे हुआ ?
दस महाविद्याओं का आविर्भाव क्यों और कैसे हुआ–इस सम्बन्ध में एक रोचक कथा देवीपुराण में मिलती है।
पूर्वकाल में प्रजापति दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें सभी देवता व ऋषिगण निमन्त्रित थे, किन्तु भगवान शिव से द्वेष हो जाने के कारण दक्ष ने न तो उन्हें निमन्त्रित किया और न ही अपनी पुत्री सती को बुलाया । सती ने भगवान शिव से पिता के यज्ञ में जाने की अनुमति मांगी परन्तु शिवजी ने वहां जाना अनुचित बताकर उन्हें जाने से रोका । सती पिता के घर जाने के अपने निश्चय पर अटल रहीं । उन्होंने भगवान शिव से कहा–’मैं प्रजापति के यज्ञ में अवश्य जाऊंगी और वहां या तो अपने पति देवाधिदेव शिव के लिए यज्ञ भाग प्राप्त करुंगी या यज्ञ को ही नष्ट कर दूंगी ।’
पिता द्वारा शिव के अपमान से त्रस्त होकर सती ने धारण किया काली रूप:-
यह कहते हुए सती ने अत्यन्त विकराल काली का रूप धारण कर लिया । क्रोधाग्नि से उनका रंग कृष्ण हो गया, होँठ फड़कने लगे, उनकी भयानक जिह्वा बाहर निकली हुई थी, अर्धचन्द्र व मुण्डमाला धारण किए हुए वे विकट हुंकार कर रही थीं । देवी के इस महाभयानक रूप को देखकर भगवान शिव डरकर भागने लगे ।
सती के अंग से दस दिशाओं में निकली दस महाविद्या:-
भागते हुए शिव को दसों दिशाओं में रोकने के लिए देवी ने दसों दिशाओं में अपने अंग से दस देवियों को प्रकट किया । शिवजी जिस-जिस दिशा में जाते, उस-उस दिशा में उन्हीं भयानक देवियों को खड़ा पाते थे । भगवान शिव ने सती से पूछा—‘ये कौन हैं ?’ इनके नाम क्या हैं और इनकी विशेषता क्या हैं ?
सती (पार्वती) के ही दस रूप और शक्तियां हैं दस महाविद्या :-
सती ने कहा—‘ये मेरे दस रूप हैं । अापके सामने कृष्णवर्णा और भयंकर नेत्रों वाली हैं वह ‘काली’ हैं । नीले रंग की ‘तारा’ आपके ऊर्ध्वभाग में विराजमान हैं । आपके दाहिनी ओर भयदायिनी मस्तकविहीन ‘छिन्नमस्ता’ हैं, बाएं ‘भुवनेश्वरी’, पीठ के पीछे शत्रुओं का नाश करने वाली ‘बगलामुखी’, अग्निकोण (पूर्व-दक्षिण) में विधवा का रूप धारण किए ‘धूमावती’ हैं, नैऋत्यकोण (दक्षिण-पश्चिम) में ‘त्रिपुरसुन्दरी’, वायव्यकोण (पश्चिम-उत्तर) में ‘मातंगी’, तथा ईशानकोण (उत्तर-पूर्व) में ‘षोडशी’ हैं । मैं खुद ‘भैरवी’ रूप में अभयदान देती हूँ ।’
इस प्रकार दस महाविद्याएं देवी सती के काली रूप की शक्तियां हैं । महाकाली के दस प्रधान रूपों को ही दस महाविद्या कहा जाता है।
नौ दुर्गा : 1.शैलपुत्री, 2.ब्रह्मचारिणी, 3.चंद्रघंटा, 4.कुष्मांडा, 5.स्कंदमाता, 6.कात्यायनी, 7.कालरात्रि, 8.महागौरी और 9.सिद्धिदात्री।
दस महाविद्याओं के नाम हैं: महाकाली, तारा, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, षोडषी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, और कमला।
प्रवृति के अनुसार दस महाविद्या के तीन समूह हैं।
पहला:- सौम्य कोटि (त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, मातंगी, कमला),
दूसरा:- उग्र कोटि (काली, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी),
तीसरा:- सौम्य-उग्र कोटि (तारा और त्रिपुर भैरवी)।
जैसे कि कहा गया है:
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता,नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।
देवी दुर्गा के आभामंडल में उपरोक्त दस महाविद्याएं दस प्रकार की शक्तियों के प्रतीक हैं। सृष्टि के क्रम में चारों युग में यह दस महाविद्याएं विराजमान रहती हैं। इनकी साधना कल्प वृक्ष के समान शीघ्र फलदायक और साधक की सभी कामनाओं को पूर्ण करने में सहायक होती हैं। नवरात्र में सिद्धि और तंत्र शास्त्र के मर्मज्ञ इनकी साधना करने के लिए हिमालय से लेकर पूर्वांचल बंगाल आदि प्रान्तों में अपने तप बल से साधनारत होकर इनके स्वरूप का मंत्र जाप करते हैं।
दस महाविद्याओं का वर्णन इस प्रकार से है | Ten Mahavidyas are described as follows :-
1. महाकाली:-
महाविनाशक महाकाली, जहां रक्तबीज का वध करती हैं, वहीं अपने साधकों को अपार शक्ति देकर मां भगवती की कृपा से सबल और सक्षम बनाती हैं। यह कज्जल पर्वत के समान शव पर आरूढ़ मुंडमाला धारण किए हुए एक हाथ में खड्ग दूसरे हाथ में त्रिशूल और तीसरे हाथ में कटे हुए सिर को लेकर भक्तों के समक्ष प्रकट हो जाती हैं। यह महाकाली एक प्रबल शत्रुहन्ता महिषासुर मर्दिनी और रक्तबीज का वध करने वाली शिव प्रिया चामुंडा का साक्षात स्वरूप है, जिसने देव दानव युद्ध में देवताओं को विजय दिलवाई है।
इनकी साधना करने के बाद पूरे विश्व में ऐसा कुछ नहीं जो प्राप्त न हो सके, वरन भक्त स्वयं ही भगवान बन जाता है। मुख्यतः इनकी आराधना बीमारी के नाश, शत्रुओं के नाश के लिए, दुष्ट आत्मा व दुष्ट ग्रह से बचाने के लिए, अकाल मृत्यु के भय से बचने के लिए, वाक सिद्धि के लिए, कवित्व शक्ति प्राप्त करने तथा राज्य प्राप्ति के लिए किया जाता है।इन्हें प्रसन्न करने के लिए निम्न मंत्र की कम से कम 9,11,21 माला का जप काले हकीक की माला से किया जाना चाहिए।
मंत्र निम्न प्रकार है-
“ॐ क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहाः”
2. तारा:-
शत्रुओं का नाश करने वाली सौन्दर्य और रूप ऐश्वर्य की देवी तारा आर्थिक उन्नति और भोग दान और मोक्ष की प्राप्ति के लिए जानी जाती हैं। भगवती तारा के तीन स्वरूप हैं। तारा, एकजटा और नील सरस्वती। चैत्र मास की नवमी तिथि और शुक्ल पक्ष के दिन तारा रूपी देवी की साधना करना तंत्र साधकों के लिए सर्वसिद्धिकारक माना गया है। तारा महाविद्या के फलस्वरूप व्यक्ति इस संसार में व्यापार रोजगार और ज्ञान-विज्ञान से परिपूर्ण विख्यात यश वाला प्राणी बन सकता है। इसे सिद्ध करने का यंत्र और मंत्र यहां दिया जा रहा है।
जिस पर इनकी कृपा हो जाएं वो न केवल समस्त कष्टों से वरन इस भवसागर से ही पार हो जाता है, इसी से इन्हें तारिणी भी कहा जाता है। इनकी आराधना से बुद्धि अत्यन्त प्रखर हो उठती हैं और वाक् सिद्धी भी प्राप्त होती हैं। परन्तु इनका मंत्र ऋषियों द्वारा शापित तथा अत्यन्त प्रबल हैं, अतः योग्य गुरु की देखरेख में ही इनकी साधना आरंभ करनी चाहिए। इनके मंत्र का जाप लाल मूंगा या स्फटिक की माला से किया जाता है। इन्हें प्रसन्न करने के लिए निम्न मंत्र का 11 माला जप करना चाहिए।
“ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट”
3. त्रिपुर सुन्दरी:-
शांत और उग्र दोनों की स्वरूपों में मां त्रिपुर सुन्दरी की साधना की जाती है। त्रिपुर सुन्दरी के अनेक रूप हैं। मसलन, सिद्धि भैरवी, रूद्र भैरवी, कामेश्वरी आदि। जीवन में काम, सौभाग्य और शारीरिक सुख के साथ वशीकरण आरोग्य सिद्धि के लिए इस देवी की आराधना की जाती है। कमल पुष्पों से होम करने से धन सम्पदा की प्राप्ति होती है। मनोवांछित वर या कन्या से विवाह होता है। वांछित सिद्धि और मनोअभिलाषापूर्ति सहित व्यक्ति दुख से रहित और सर्वत्र पूज्य होता है।
इनका साधक स्वयं ही शिवमय होता है और वह अपने इशारे मात्र से जो चाहे कर सकता है। इनकी उपासना से भौतिक सुखों के साथ-साथ मोक्ष की भी प्राप्ति होती हैं। इन्हें प्रसन्न करने के लिए रूद्राक्ष की माला से निम्न मंत्र का कम से कम 10 माला जप करना चाहिए।
“ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः"
4. भुवनेश्वरी:-
आदि शक्ति भुवनेश्वरी भगवान शिव की समस्त लीला विलास की सहचरी हैं। मां का स्वरूप सौम्य एवं अंग कांति अरूण हैं। भक्तों को अभय एवं सिद्धियां प्रदान करना इनका स्वभाविक गुण है। इस महाविद्या की आराधना से जहां साधक के अंदर सूर्य के समान तेज और ऊर्जा प्रकट होने लगती है, वहां वह संसार का सम्राट भी बन सकता है। इसको अभिमंत्रित करने से लक्ष्मी वर्षा होती है और संसार के सभी शक्ति स्वरूप महाबली उसका चरणस्पर्श करते हैं। इसको सिद्ध करने का यंत्र और मंत्र यहां दिया जा है ।
मां भुवनेश्वरी क्षण मात्र में प्रसन्न होने वाली देवी है जो उक्त की किसी भी इच्छा को पलक झपकते पूरा कर सकती है। परन्तु एक बार ये रूठ जाएं तो इन्हें मनाना अत्यन्त कठिन होता है, अतः इनके भक्तों को कभी किसी सज्जन, स्त्री अथवा जीव को नहीं सताना चाहिए। इन्हें प्रसन्न करने के लिए स्फटिक की माला से निम्न मंत्र का कम से कम ग्यारह या इक्कीस माला का जप कर मां भुवनेश्वरी की आराधना करनी चाहिए।
मंत्र निम्न प्रकार है-
“ॐ ऐं ह्रीं श्रीं नमः”
5. छिन्नमस्ता:-
विश्व की वृद्धि और उसका ह्रास सदैव होता रहता है। जब निर्गम अधिक और आगम कम होता है, तब छिन्नमस्ता का प्राधान्य होता है। माता का स्वरूप अतयंत गोपनीय है। चतुर्थ संध्याकाल में मां छिन्नमस्ता की उपासना से साधक को सरस्वती सिद्ध हो जाती है। कृष्ण और रक्त गुणों की देवियां इनकी सहचरी हैं। पलास और बेलपत्रों से छिन्नमस्ता महाविद्या की सिद्धि की जाती है। इससे प्राप्त सिद्धियां मिलने से लेखन और कवित्व शक्ति की वृद्धि होती है। शरीर रोग मुक्त होता है। शत्रु परास्त होते हैं। योग ध्यान और शास्त्रार्थ में साधक को संसार में ख्याति मिलती है। इसको सिद्ध करने का यंत्र और मंत्र यहां दिया जा है।
दस महाविद्याओं में सर्वाधिक उग्र साधना छिन्नमस्ता की मानी गई है। इनकी आराधना तुरंत फलदायी है। मां छिन्नमस्ता की आराधना शत्रु को परास्त करने के लिए, रोजगार में सफलता के लिए, नौकरी में पदोन्नति के लिए, कोर्ट केस में विजय के लिए तथा कुंडली जागरण के लिए की जाती है। इनकी साधना किसी योग्य व अनुभवी गुरु के दिशा-निर्देश में ही करनी चाहिए क्योंकि अत्यन्त उग्र होने के कारण जरा सी भी असावधानी साधक की मृत्यु का कारण बन सकती है। इनकी प्रसन्नता के लिए रूद्राक्ष या काले हकीक की माला से निम्न मंत्र का न्यूनतम 11 या 21 माला मंत्र जप करना चाहिए।
“श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट स्वाहा:”
6. षोडशी:-
सोलह अक्षरों के मंत्र वाली माता की अंग कांति उदीयमान सूर्य मंडल की आभा की भांति है। इनकी चार भुजाएं और तीन नेत्र हैं। षोडशी को श्री विद्या भी माना जाता है। यह साधक को युक्ति और मुक्ति दोनों ही प्रदान करती है। इसकी साधना से षोडश कला निपुण सन्तान की प्राप्ति होती है। जल, थल और नभ में उसका वर्चस्व कायम होता है। आजीविका और व्यापार में इतनी वृद्धि होती है कि व्यक्ति संसार भर में धन श्रेष्ठ यानि सर्वाधिक धनी बनकर सुख भोग करता है।
दस महाविद्याओं में त्रिपुर भैरवी महाविद्या को श्रीविद्या अथवा गुप्त गायत्री विद्या भी कहा जाता है। इनकी आराधना से भक्त स्वयं ही शक्ति स्वरूप बन जाता है और उसके इशारे मात्र से ही ब्रह्मांड की शक्तियां कार्य करने लगती हैं। इनकी साधना भी तुरंत फलदायी है और इनकी कृपा से बड़ी से बड़ी तांत्रिक शक्तियां भी साधक का कुछ नहीं बिगाड़ पाती हैं। मां त्रिपुरभैरवी को प्रसन्न करने के लिए मूंगे की माला से निम्न मंत्र का कम से कम 15 माला मंत्र जप करना चाहिए।
“ॐ ह्रीं भैरवी कलौं ह्रीं स्वाहा:”
7. धूमावती:-
मां धूमावती महाशक्ति स्वयं नियंत्रिका हैं। इनका स्वामी नहीं है। ऋग्वेद में रात्रिसूक्त में इन्हें 'सुतरा' कहा गया है। अर्थात ये सुखपूर्वक तारने योग्य हैं। इन्हें अभाव और संकट को दूर करने वाली मां कहा गया है। इस महाविद्या की सिद्धि के लिए तिल मिश्रित घी से होम किया जाता है। धूमावती महा विद्या के लिए यह भी जरूरी है कि व्यक्ति सात्विक और नियम संयम और सत्यनिष्ठा को पालन करने वाला लोभ लालच से रहित हो इस महाविद्या के फल से देवी धूमावती सूकरी के रूप में प्रत्यक्ष प्रकट होकर साधक के सभी रोग अरिष्ट और शत्रुओं का नाश कर देती है। प्रबल महाप्रतापी तथा सिद्ध पुरूष के रूप में उस साधक की ख्याति हो जाती है।
एक मात्र धूमावती महाविद्या ही ऐसी साधना है जो किसी मंदिर अथवा घर में नहीं की जाती वरन किसी श्मशान में की जाती हैं। इनका स्वरूप विधवा तथा अत्यन्त रौद्र है। इन्हें अलक्ष्मी भी कहा गया है। ये जीवन में आने वाले किसी भी संकट अथवा जादू-टोना, भूत-प्रेत, अन्य नकारात्मक शक्तियों को पलक झपकते खत्म कर देती है। मां धूमावती को प्रसन्न करने के लिए मोती की माला या काले हकीक की माला से निम्न मंत्र का कम से कम नौ माला जप करना चाहिए।
“ॐ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा:”
8. बगलामुखी:-
व्यक्ति रूप में शत्रुओं को नष्ट करने वाली समष्टि रूप में परमात्मा की संहार शक्ति ही बगला है। इनकी साधना शत्रु भय से मुक्ति और वाक् सिद्धि के लिए की जाती है। पीतांबरा माला पर विधि-विधान के साथ जाप करें- दस महावद्याओं में बगला मुखी सबसे अधिक प्रयोग में लाई जाने वाली महाविद्या है, जिसकी साधना सप्तऋषियों ने वैदिक काल में समय समय पर की है। इसकी साधना से जहां घोर शत्रु अपने ही विनाश बुद्धि से पराजित हो जाते हैं वहां साधक का जीवन निष्कंटक तथा लोकप्रिय बन जाता है।
वाकसिद्धी के लिए बगलामुखी महाविद्या से बढ़कर अन्य कोई साधना नहीं है। इनकी आराधना से प्रबल से प्रबल शत्रु भी जड़ सहित नष्ट हो जाता है। इन्हें ब्रह्मास्त्र भी कहा जाता है और यह भगवान विष्णु की संहारक शक्ति है। इनकी आराधना कोर्ट कचहरी में विजय, शत्रु का नाश, सरकारी अधिकारियों को अनुकूल बनाने तथा अन्य कहीं भी सफलता पाने के लिए की जाती है। इनके वरदान से व्यक्ति जो भी कह दें, वहीं सच होने लगता है। इन्हें प्रसन्न करने के लिए हल्दी की माला से निम्न मंत्र का कम से कम 16 या 21 माला मंत्र का जप करना चाहिए।
“ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै ह्लीं ॐ नम:”
9. मातंगी:-
मतंग शिव का नाम है। इनकी शक्ति मातंगी है । यह श्याम वर्ण और चन्द्रमा को मस्तक पर धारण करती हैं। यह पूर्णतया वाग्देवी की ही पूर्ति हैं। चार भुजाएं चार वेद हैं। मां मातंगी वैदिकों की सरस्वती हैं। पलास और मल्लिका पुष्पों से युक्त बेलपत्रों की पूजा करने से व्यक्ति के अंदर आकर्षण और स्तम्भन शक्ति का विकास होता है। ऐसा व्यक्ति जो मातंगी महाविद्या की सिद्धि प्राप्त करेगा, वह अपने क्रीड़ा कौशल से या कला संगीत से दुनिया को अपने वश में कर लेता है। वशीकरण में भी यह महाविद्या कारगर होती है।
गृहस्थ जीवन में आ रहे किसी भी संकट को दूर करने के लिए मां मातंगी महाविद्या की साधना अत्यन्त उपयोगी मानी गई है। इनकी कृपा से सभी बिगड़े काम अपने आप ही बनते चले जाते हैं। इनकी आराधना युवक-युवतियों के शीघ्र विवाह हेतु, पुत्र प्राप्ति के लिए, सौभाग्य प्राप्ति के लिए, अकस्मात आए संकट दूर करने आदि कार्यों के लिए की जाती है। इन्हें प्रसन्न करने के लिए स्फटिक की माला से निम्न मंत्र का कम से कम 12 माला मंत्र जप करना चाहिए।
“ॐ ह्रीं ऐं भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहा:”
10. कमला:-
कमला की कांति सुवर्ण के समान है। श्वेत वर्ण के चार हाथी सूंड में सुवर्ण कलश लेकर मां को स्नान करा रहे हैं। कमल पर आसीन कमल पुष्प धारण किए हुए मां सुशोभित होती हैं। समृद्धि की प्रतीक, स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति, नारी, पुत्रादि के लिए इनकी साधना की जाती है । इस प्रकार दस महामाताएं गति, विस्तर, भरण-पोषण, जन्म-मरण, बंधन और मोक्ष की प्रतीक हैं। इस महाविद्या की साधना नदी तालाब या समुद्र में गिरने वाले जल में आकंठ डूब कर की जाती है। इसकी पूजा करने से व्यक्ति साक्षात कुबेर के समान धनी और विद्यावान होता है। व्यक्ति का यश और व्यापार या प्रभुत्व संसांर भर में प्रचारित हो जाता है।
सभी दस महाविद्याओं में कमला महाविद्या सर्वाधिक सौम्य साधना है। दीवाली पर इन्हीं की आराधना की जाती है। साक्षात महालक्ष्मी का आव्हान करने के लिए ही मां कमला की पूजा करनी चाहिए। मां कमला की प्रसन्नता से ही इस विश्व का कार्य-व्यापार चल रहा है और इन्हीं की आराधना से व्यक्ति को समस्त प्रकार के सुख-सौभाग्य, रिद्धि-सिद्धी, अखंड धन भंडार की प्राप्ति होती है। इनकी उपासना के लिए साधक को कमलगट्टे की माला से निम्न मंत्र का कम से कम 10 अथवा 21 माला मंत्र जप करना चाहिए।
“ॐ हसौ: जगत प्रसुत्तयै स्वाहा:”
दस महाविद्या की संयुक्त उपासना का मन्त्र:-
नवरात्रि के नौ दिनों में मां की पूजा-श्रृंगार, अखण्ड दीपक व भजन आदि से आराधना करने पर साधक के सभी बिगड़े काम बन जाते हैं । साथ ही दस महाविद्याओं की प्रसन्नता के लिए नीचे दिए किसी भी श्लोक का पाठ कर लेना चाहिए ।
(1)
जय दुर्गे दुर्गतिनाशिनी जय ।
जय मा कालविनाशिनी जय जय ।।
जय काली जय तारा जय जय ।
जय जगजननि षोडशी जय जय ।।
जय भुवनेश्वरी माता जय जय ।
जयति छिन्नमस्ता मा जय जय ।।
जयति भैरवी देवी जय जय ।
जय जय धूमावती जयति जय ।
जय बगला मातंगी जय जय ।
जयति जयति मा कमला जय जय ।।
(2)
काली तारा महाविद्या षोडशी भुवनेश्वरी ।
बगला छिन्नमस्ता च विद्या धूमावती तथा ।।
मातंगी त्रिपुरा चैव विद्या च कमलात्मिका ।
एता दश महाविद्या: सिद्धविद्याः प्रकीर्तिता: ।
एषा विद्या प्रकथिता सर्वतन्त्रेषु गोपिता ।।
दस महाविद्याओं की उपासना दूर करती है हर संकट :-
- दस महाविद्याओं की उपासना से साधक को चारों पुरुषार्थ—धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्त होते हैं । ये महाविद्याएं सिद्ध होकर अनन्त सिद्धियां देने व परमात्मा का साक्षात्कार कराने में समर्थ हैं ।
- इनकी साधना से हर कार्य में विजय, धन-धान्य, ऐश्वर्य, यश, कीर्ति और पुत्र आदि की प्राप्ति के साथ ही मोक्ष की भी प्राप्ति होती है ।
- इन महाविद्याओं की आराधना अपने आन्तरिक गुणों और आन्तरिक शक्तियों के जागरण के लिए की जाती है ।
- इन्हीं की कृपा से मारण, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण, स्तम्भन आदि प्रयोग सिद्ध होते हैं ।
इस प्रकार नवरात्रि में जगदम्बा और उनकी दस महाविद्याओं के श्रद्धा-भक्तिपूर्वक पूजन से मानव सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्त होकर धन-धान्य, पुत्र व सम्पत्ति से सम्पन्न हो जाता है ।
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