Anant Chaturdashi 2022 : ऐसे रखें अनंत चतुर्दशी का व्रत, जानिए पूजा विधि, महत्त्व और कथा

 



अनंत चतुर्दशी भगवान विष्णु के अनंत रूप की आराधना के लिए मनाई जाती है। प्रभु अनंत हैं, वह कण कण में व्याप्त हैं, और अनंत चतुर्दशी इन्हीं प्रभु की अनंतता का बोध कराती है। यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है और वर्ष में केवल एक ही बार आता है।इस वर्ष अनंत चतुर्दशी का पावन पर्व 9 सितंबर 2022 को है। इस समय चातुर्मास चल रहे हैं। चातुर्मास में भगवान विष्णु की पूजा विशेष महत्व रखती है। इस दिन अनंत यानि भगवान श्री हरि यानि भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। साथ ही सूत या रेशम के धागे को चौदह गांठे लगाकर लाल कुमकुम से रंग कर पूरे विधि विधान से पूजा कर अपनी कलाई पर बांधा जाता है। इस धागे को अनंत कहा जाता है जिसे भगवान विष्णु का स्वरूप भी माना जाता है। मान्यता है कि यह अनंत रक्षासूत्र का काम करता है। भगवान श्री हरि अनंत चतुर्दशी का उपवास करने वाले उपासक के दुखों को दूर करते हैं और उसके घर में धन धान्य से संपन्नता लाकर उसकी विपन्नता को समाप्त कर देते हैं। आइये जानते हैं अनंत चतुर्दशी की व्रत कथा, पूजा विधि व इसके महत्व के बारे में......

अनंत चतुर्दशी व्रत का महत्व | Importance of Anant Chaturdashi fast :-


जैसा कि लेख में पहले ही जिक्र किया गया है कि इस व्रत के रखने से व्रती के समस्त कष्ट मिट जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यदि अनंत चतुर्दशी का व्रत लगातार 14 वर्षों तक किया जाए तो उस व्यक्ति को विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।भगवान विष्णु के सेवक भगवान शेषनाग का नाम अनंत है। अग्नि पुराण में अनंत चतुर्दशी व्रत के महत्व का वर्णन मिलता है।लेकिन इसका महत्व सिर्फ इतना भर नहीं है बल्कि भगवान श्री गणेश को दस दिनों तक अपने घर में रखकर उनका आज ही के दिन विसर्जन भी किया जाता है। हिंदू ही नहीं जैन धर्म के अनुयायियों के लिये भी इस दिन का खास महत्व होता है। जैन धर्म के दशलक्षण पर्व का समापन भी शोभायात्राएं निकालकर भगवान का जलाभिषेक कर इसी दिन किया जाता है।


अनंत चतुर्दशी 2022 तिथि

हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि 08 सितंबर 2022, गुरुवार को रात 09 बजकर 02 मिनट पर शुरू हो रही है जो 09 सितंबर 2022, शुक्रवार को शाम 06 बजकर 07 मिनट पर समाप्त होगी। इसलिए उदया तिथि के आधार पर अनंत चतुर्दशी इस साल 09 सितंबर को मनाई जाएगी।

अनंत चतुर्दशी शुभ मुहूर्त | Anant Chaturdashi 2020 Shubh Muhurat / Anant Chaturdashi Puja Ka Muhurat:-


पंचांग के अनुसार, इस साल अनंत चतुर्दशी के दिन पूजा के लिए सुबह 06 बजकर 03 मिनट से शाम 06 बजकर 07 मिनट तक समय है।

भाद्रपद चतुर्दशी तिथि प्रारंभ- गुरुवार 08 सितंबर रात 09 बजकर 02 मिनट 

भाद्रपद चतुर्दशी तिथि समाप्त- शुक्रवार 09 सितंबर शाम 06 बजकर 07 मिनट तक 

रवि योग- सुबह 06 बजकर 03 मिनट से शुरू होकर सुबह 11 बजकर 35 मिनट तक

सुकर्मा योग- सुबह से लेकर शाम 06 बजकर 12 मिनट तक

अनंत चतुर्दशी पर गणेश विसर्जन का शुभ चौघड़िया मुहूर्त

प्रातः मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत) - सुबह 06 बजकर 03 मिनट से सुबह 10 बजकर 44 मिनट तक

अपराह्न मुहूर्त (चर) - शाम 05 बजे से शाम 06 बजकर 34 मिनट तक

अपराह्न मुहूर्त (शुभ) - दोपहर 12 बजकर 18 मिनट से 01 बजकर 52 मिनट तक

रात्रि मुहूर्त (लाभ) रात- 09 बजकर 26 मिनट से 10 बजकर 52 मिनट तक

रात्रि मुहूर्त (शुभ, अमृत, चर) - देर रात 12 बजकर 18 मिनट से 10 सितंबर सुबह 04 बजकर 37 मिनट तक


अनंत चतुर्दशी पूजा विधि | Anant Chaturdashi Puja Vidhi / Anant Chaturdashi Pujan Vidhi :-


  • चतुर्दशी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत हो जाएं। इसके पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करें। 


  • हाथ में जल लेकर अनंत चतुर्दशी व्रत एवं पूजा का संकल्प करें। 


  • व्रत का संकल्प लेने के लिए इस मंत्र 'ममाखिलपापक्षयपूर्वकशुभफलवृद्धये श्रीमदनन्तप्रीतिकामनया अनन्तव्रतमहं करिष्ये' का उच्चारण करें।


  • इसके पश्चात पूजा स्थान को साफ कर लें।


  • अब ए​क चौकी पर पर पीला कपड़ा बिछाएं और भगवान विष्णु की मूर्ति या कुश से बनी सात फणों वाली शेष स्वरुप भगवान अनन्त की मूर्ति स्थापित करें। 


  • इस व्रत में यमुना नदी, भगवान शेषनाग और भगवान श्री हरि की पूजा करने का विधान बताया जाता है। 


  • इस दिन कलश स्थापना करके उस पर सुंदर लोटे में कुश रखना चाहिए। यदि कुश उपलब्ध न हो तो दूब रख सकते हैं। ( कलश को मां यमुना का स्वरूप मानते हुए उसकी स्थापना की जाती है साथ ही शेषनाग के रूप में दुर्वा रखी जाती है) अनंत चतुर्दशी पर भगवान श्री गणेश का आह्वान कर उनकी पूजा भी अवश्य करनी चाहिये।


  • अब मूर्ति के समक्ष अनंत सूत्र, जिसमें 14 गांठें लगी हों, उसे रखें। कच्चे सूत को हल्दी लगाकर अनंत सूत्र तैयार किया जाता है।यह डोरा भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाला तथा अनंत फल देने वाला माना गया है। भगवान विष्णु के 14 नामों से इन गांठों की पूजा की जाती है। हर गांठ पर अलग-अलग नामों से भगवान विष्णु का आवाहन किया जाता है। ये 14 नाम हैं - अनंत, पुरुषोत्तमऋषिकेशपद्मनाभमाधवबैकुंठश्रीधरत्रिविक्रममधुसूदनवामनकेशवनारायणदामोदर और गोविद। 


  • अब आप आम पत्र, नैवेद्य, गंध, पुष्प, धूप, दीप आदि भगवान अनंत की पूजा करें। प्रतिमा पर पीले फूल और तुलसी का पत्ता अर्पित करें। इन चीजों को भगवान को समर्पित करते हुए ‘ॐ अनंताय नमः’ मंत्र का जाप करें। 


  • भगवान विष्णु को पंचामृत, पंजीरी, केला और पीली मिठाई  का भोग लगाएं। 


  • पूजा के समय इस मंत्र को पढ़ें।


नमस्ते देव देवेश नमस्ते धरणीधर। नमस्ते सर्वनागेन्द्र नमस्ते पुरुषोत्तम।

  • इसके बाद भगवान विष्णु की कृपा के लिए श्री सत्यनारायण की कथा एवं अनंत चतुर्दशी की कथा सुनें। 




  • पूजा के अंत में एक बर्तन में दूध, सुपारी और अनंत सूत्र डालकर क्षीर मंथन होता है।




  • पूजा के बाद अनंत देव का ध्यान करके अनंत सूत्र को बांधें।अनंत सूत्र को पुरुष दाहिने और महिलाओं को अपने बाएं हाथ में इसे बांधना चाहिए।


  • इसके बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं और स्वयं प्रसाद ग्रहण करें।


नोट :- 
  1. इस पूजा में 14 प्रकार के फल, पकवान, मधु आदि भगवान को समर्पित किए जाते हैं।
  2. व्रत करने वाले व्यक्ति को बिना नमक वाले भोज्य पादार्थों का ही सेवन करना होता है।


अनंत सूत्र बांधने का मंत्र इस तरह है :-


अनंत संसार महासुमद्रे मग्रं समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्रानंतसूत्राय नमो नमस्ते।।

अनंत सूत्र बांधने का नियम:-


अनंत चतुर्दशी पर अनंत सूत्र को बांधने का विशेष नियम है। इसलिए इस नियम का सदैव ध्यान रखना चाहिए।अनंत सूत्र को पहने से पहले ये जान लेना चाहिए कि अनंत सूत्र में 14 गांठें होनी चाहिए। क्योंकि 14 गांठों को 14 लोकों से जोड़कर देखा जाता है। मान्यता है कि भौतिक जगत में 14 लोक बनाए जिनमें भूर्लोकभुवर्लोकस्वर्लोकमहर्लोक, जनलोक, तपोलोक, ब्रह्मलोक, अतल, वितल, सतल, रसातल, तलातल, महातल और पाताल लोक शामिल है।अनंत सूत्र में लगने वाली प्रत्येक गांठ एक लोक का प्रतिनिधित्व करती है। मान्यता है कि अनंत सूत्र को पुरुष दाहिने और महिलाओं को अपने बाएं हाथ में इसे बांधना चाहिए। इस दिन व्रत रखने का भी विधान है। इस दिन व्रत रखने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और उनका आर्शीवाद प्राप्त होता है। इस व्रत को करने से लक्ष्मी जी भी प्रसन्न होती हैं।


अनंत चतुर्दशी की कथा:-

अनंत चतुर्दशी की व्रत कथा किस्मत बदल देती है...

इस व्रत का जिक्र पुराणों में भी मिलता है। जब पांडव जुए में अपना सारा राजपाट हारकर वन में कष्ट भोग रहे थे तब भगवान श्रीकृष्ण ने अनंत चतुर्दशी व्रत करने की सलाह दी थी। श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि अगर वह विधिपूर्वक अनंत भगवान का व्रत करेंगे तो इससे उनका सारा संकट दूर हो जाएगा और खोया राज्य फिर से प्राप्त हो जाएगा।

श्रीकृष्ण ने इस व्रत की महत्ता समझाने के लिए एक कथा सुनाई, जो इस प्रकार है-

प्राचीन काल में सुमंत नामक एक तपस्वी ब्राह्मण थे। उसकी पत्नी का नाम दीक्षा था। दोनों की एक परम सुंदरी धर्मपरायण तथा ज्योतिर्मयी कन्या थी, जिसका नाम सुशीला था। सुशीला बड़ी हुई तो उसकी माता दीक्षा की मृत्यु हो गई। पत्नी की मृत्यु के उपरांत सुमंत ने कर्कशा नामक स्त्री से दूसरा विवाह कर लिया। वह अपने नाम की तरह ही स्वभाव से भी कर्कश थी।जैसे तैसे प्रभु कृपा से सुशीला बड़ी होने लगी और वह दिन भी आया जब ऋषि सुमंत को उसके विवाह की चिंता सताने लगी। काफी प्रयासों के पश्चात ब्राह्मण सुमंत ने कौण्डिन्य ऋषि से सुशीला का विवाह संपन्न हुआ।

विदाई के समय कर्कशा ने दामाद को कुछ ईंटें और पत्थरों के टुकड़े बांध कर दे दिए। कौंडिन्य ऋषि अपनी पत्नी को लेकर अपने आश्रम की ओर निकल पड़े। रास्त में ही शाम ढलने लग गई और ऋषि नदी के किनारे संध्या वंदन करने लगे। इसी दौरान सुशीला ने देखा कि बहुत सारी महिलाएं किसी देवता की पूजा कर रही थीं। सुशीला ने महिलाओं से पूछा कि वे किसकी प्रार्थना कर रही हैं, इस पर उन लोगों ने उन्हें भगवान अनंत की पूजा करने और इस दिन उनका व्रत रखने के महत्व के बारे में बताया। व्रत के महत्व के बारे में सुनने के बाद सुशीला ने वहीं उस व्रत का अनुष्ठान किया और चौदह गांठों वाला डोरा हाथ में बांध कर ऋषि कौंडिन्य के पास आ गई।

कौंडिन्य ने सुशीला से डोरे के बारे में पूछा तो उन्होंने सारी बात बता दी। कौंडिन्य ने यह सब कुछ मानने से मना कर दिया और पवित्र धागे को निकालकर अग्नि में डाल दिया। इसके बाद उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई और वह दुखी रहने लगे। इस दरिद्रता का उन्होंने अपनी पत्नी से कारण पूछा तो सुशीला ने अनंत भगवान का डोरा जलाने की बात कही। पश्चाताप करते हुए ऋषि कौंडिन्य अनंत डोरे की प्राप्ति के लिए वन में चले गए। वन में कई दिनों तक भटकते-भटकते निराश होकर एक दिन भूमि पर गिर पड़े।

तब अनंत भगवान प्रकट होकर बोले, "हे कौंडिन्य! तुमने मेरा तिरस्कार किया था, उसी से तुम्हें इतना कष्ट भोगना पड़ा। तुम दुखी हुए। अब तुमने पश्चाताप किया है। मैं तुमसे प्रसन्न हूं। अब तुम घर जाकर विधिपूर्वक अनंत व्रत करो। 14 वर्षों तक व्रत करने से तुम्हारा दुख दूर हो जाएगा। तुम धन-धान्य से संपन्न हो जाओगे। कौंडिन्य ने वैसा ही किया और उन्हें सारे क्लेशों से मुक्ति मिल गई।"

श्रीकृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर ने भी अनंत भगवान का 14 वर्षों तक विधिपूर्वक व्रत किया और इसके प्रभाव से पांडव महाभारत के युद्ध में विजयी हुए व चिरकाल तक राज्य करते रहे। इसके बाद ही अनंत चतुर्दशी का व्रत प्रचलन में आया।

यहीं नहीं सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के दिन भी इस व्रत के पश्चात बहुरे थे।


अनंत चतुर्दशी की पूजा से लाभ :-

  • यह पूजा ग्रहों की अशुभता को भी दूर करती है।
  • कुंडली में काल सर्प दोष होने पर इस दिन पूजा करने से लाभ मिलता है।
  • अनंत चतुर्दशी की पूजा जीवन में आने वाली परेशानियों को दूर करती है।
  • अनंत चतुर्दशी की पूजा जीवन में धन-धान्य, सुख-संपदा और संतान आदि की कामना पूर्ण करती हैं। 


बिहार लोकगीत के सभी पाठकों को अनंत चतुर्दशी व्रत की शुभकामनाएं ! हम आशा करते हैं कि भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा आप पर सदैव बनी रहे अनंत चतुर्दशी व्रत एवं पूजा विधि पर यह आर्टिकल आपको कैसा लगा कमेंट करें ।

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