Ganesh Chaturthi 2022 : गौरी पुत्र गणेश कब विराजेंगे ? जानें गणेश चतुर्थी की डेट, शुभ मुहूर्त और क्यों 10 दिन तक मनाते हैं गणेश उत्सव


गणेश चतुर्थी हिन्दुओं का लोकप्रिय त्यौहार है जो भगवान गणेश के महत्व को दर्शाता है। विघ्नहर्ता गणेश गणों के अधिपति एवं प्रथम पूज्य हैं, अर्थात सर्वप्रथम इनकी पूजा की जाती है, उनके बाद ही अन्य देवी-देवताओं  का पूजन किया जाता है। किसी भी धार्मिक एवं मांगलिक कर्मकांड में श्रीगणेश का पूजन सबसे पहले करने का विधान है क्योंकि गणेश जी आने वाले सभी विघ्नों व कष्टों को दूर करने वाले हैं।

हिन्दू पंचांग के अनुसार, हर साल भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि भगवान गणेश का जन्म भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मध्याह्न काल में सोमवार के दिन स्वाति नक्षत्र तथा सिंह लग्न में हुआ था। यही वजह है कि गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी भी कहते है। यह कलंक चतुर्थी के नाम से भी प्रसिद्ध है और लोक परम्पराओं के अनुसार इसे डण्डा चौथ भी कहा जाता है।गणेश चतुर्थी के दिन से लेकर अगले 9 दिनों तक घर और पांडालों में भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करके विधि-विधान से पूजा अर्चना की जाती है। लेकिन कुछ लोग 9 दिनों से कम दिन के लिए भी गणेश जी की मूर्ति स्थापित करते हैं। इसके बाद विधिवत तरीके से बप्पा को विसर्जित कर देते हैं। आइए जानते हैं कि गणेश चतुर्थी का शुभ मुहूर्त और महत्व क्या है।

गणेश चतुर्थी 2022 की तिथि एवं मुहूर्त 

गणेश चतुर्थी - 31 अगस्त 2022
मध्याह्न गणेश पूजा मुहूर्त - सुबह 11:04:43 से दोपहर 13:37:56 तक।
विजय मुहूर्त : दोपहर 02:05 से दोपहर 02:55 तक।
गोधूलि मुहूर्त : शाम को 06:06 से शाम 06:30 तक।
अमृत काल मुहूर्त : शाम को 05:42 से शाम 07:20 तक।
रवि योग : प्रात: 05:38 से दोपहर 12:12 मिनट  तक। इस दिन शुक्ल योग भी रहेगा।
गणेश प्रतिमा विसर्जन : (अनंत चतुदर्शी) - 9 सितंबर, 2022।
एक दिन पूर्व, वर्जित चन्द्रदर्शन का समय - दोपहर 03:33 से रात 08:47 तक , अगस्त 30 
वर्जित चन्द्रदर्शन का समय - 09:29 सुबह से रात 09:21 तक 
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ - अगस्त 30, 2022 को 03:33 पी एम बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त - अगस्त 31, 2022 को दोपहर 03:22 मिनट बजे तक।

गणेश चतुर्थी व्रत की पूजा विधि

  • गणेश चतुर्थी पर व्रती को प्रातःकाल स्नानादि कार्यों से निवृत होने के बाद सर्वप्रथम भगवान गणेश की प्रतिमा लेनी चाहिए।
  • एक साफ़ कलश में जल भरें और उसके मुंह पर कोरा वस्त्र बांधकर उसके ऊपर श्रीगणेश की मूर्ति को स्थापित करें।वास्तु शास्त्र के अनुसार भगवान गणेश की मूर्ति घर के उत्तर-पूर्व कोने यानी कि ईशान कोण में रखना सबसे अच्छा होता है।
  • अब भगवान गणेश को सिंदूर और दूर्वा चढ़ाने के बाद उन्हें 21 लडडुओं का प्रसाद के रूप में भोग लगाएं। इनमें से 5 लड्डू श्रीगणेश को अर्पित करें और शेष लड्डू गरीबों या ब्राह्मणों को दें।
  • संध्याकाल में भगवान गणेश की पूजा एवं उपासना करनी चाहिए। इसके पश्चात गणेश चतुर्थी व्रत की कथा, गणेश चालीसा तथा आरती के बाद अपनी नज़रें नीचे रखते हुए चंद्र देव को अर्घ्य दें।
  • गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश के सिद्धिविनायक रूप का पूजन एवं व्रत करना चाहिए।

कार्यों की सिद्धि के लिए करें ये उपाय

यदि आपके नौकरी कारोबार या किसी कार्य में बार-बार रुकावट आ रही है तो गणेश चतुर्थी के दिन 'त्रयीमयायाखिलबुद्धिदात्रे बुद्धिप्रदीपाय सुराधिपाय !  नित्याय सत्याय च नित्यबुद्धि नित्यं निरीहाय नमोस्तु नित्यं!!' का 108 बार जाप करें। ऐसे करने से आपके कार्यों में आ रही बाधा समाप्त हो जाएगी और आप हर कार्यों में आसानी से सफलता पा लेंगे। 

मनोकामना पूर्ति के लिए


ॐ ग्लौम गौरी पुत्र, वक्रतुंड, गणपति गुरु गणेश
ग्लौम गणपति, ऋदि्ध पति। मेरे दूर करो क्लेश।।

इस मंत्र का जप हर बुधवार को करने के साथ गणेश चतुर्थी पर जरूर करना चाहिए। इस मंत्र का जप 108 बार करने से जपने वाली की हर मनोकामना पूरी होती है। माना जाता है कि इस मंत्र के माध्‍यम से गणेशजी व्‍यक्ति के मन की बातें जान लेते हैं।

धन प्राप्ति के लिए

ॐ नमो गणपतये कुबेर येकद्रिको फट् स्वाहा

इस मंत्र का जप उन लोगों के लिए विशेष फलदायी होता है जो पैसों की कमी का सामना कर रहे हैं। शुभ लाभ की प्राप्‍ति के लिए गणेश चतुर्थी पर इस मंत्र का 7 माला जप करना चाहिए। जप पूर्ण होने के बाद आपको कुछ दान भी करना चाहिए। ऐसा करने से गणेशजी जल्‍द ही आपके भंडार धन से भर देते हैं।

सुख समृद्धि में वृद्धि के लिए

ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो बुदि्ध प्रचोदयात।।

अगर आपके घर में सुख शांति का अभाव है और परिवार के लोग आपस एक-दूसरे से ठीक से बात नहीं करते हैं तो गणेश चतुर्थी के दिन से 11 दिन तक आपको हर रोज पूजा के बाद 108 बार इस मंत्र का जप करना चाहिए। ऐसा करने से आपके घर की सुख समृद्धि और शांति में वृद्धि होती है।

कलह निवारण मंत्र

गं क्षिप्रप्रसादनाय नम:

गणेशजी का यह मंत्र पति और पत्‍नी के बीच हर प्रकार की कलह दूर करने के लिए होता है। अगर आपके घर में आपस में लड़ाई होती है और दांपत्‍य जीवन में शांति का अभाव है तो इस मंत्र का जप गणेश चतुर्थी के दिन जरूर करें।

गणेश चतुर्थी पर रखें विशेष बातों का ध्यान 

  • पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन चंद्रमा का दर्शन नहीं करना चाहिए वरना कलंक का भागी होना पड़ता है। अगर भूल से चन्द्र दर्शन हो जाए तो इस दोष के निवारण के लिए नीचे लिखे मन्त्र का 28, 54 या 108 बार जाप करें। श्रीमद्भागवत के दसवें स्कन्द के 57वें अध्याय का पाठ करने से भी चन्द्र दर्शन का दोष समाप्त हो जाता है।
  • चन्द्र दर्शन दोष निवारण मन्त्र:
    सिंहःप्रसेनमवधीत् , सिंहो जाम्बवता हतः।
    सुकुमारक मा रोदीस्तव, ह्येष स्यमन्तकः।।
  • इस दिन गणेश जी की पूजा करते समय आपको ध्यान रखना होगा कि तुलसी के पत्ते का प्रयोग गणेश पूजा में नहीं हों। भगवान गणेश को तुलसी छोड़कर अन्य सभी पत्र-पुष्प अतिप्रिय हैं।
  • गणेश पूजा में श्रीगणेश की एक परिक्रमा करने की परंपरा है, लेकिन मतान्तर से भगवान गणेश की तीन परिक्रमाएं भी की जाती है।

गणेश चतुर्थी का महत्व

सनातन धर्म में भगवान गणेश को विद्या, बुद्धि, रिद्धि-सिद्धि के प्रदाता, मंगलकारी, दुखों एवं कष्टों के विनाशक, सुख-समृद्धि, शक्ति और सम्मान के प्रदायक माना जाता है। प्रत्येक माह के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि को “संकष्टी गणेश चतुर्थी”, और शुक्लपक्ष की चतुर्थी को “वैनायकी गणेश चतुर्थी” के रूप में मनाया जाता है, लेकिन भाद्रपद की गणेश चतुर्थी को भगवान गणेश का जन्म दिवस होने की वजह से समस्त भक्तों द्वारा इस तिथि पर विशेष पूजा से पुण्य की प्राप्ति की जाती हैं। अगर गणेश चतुर्थी मंगलवार के दिन हो तो उसे अंगारक चतुर्थी कहा जाता हैं और इस दिन पूजा एवं व्रत करने से सभी पापों का नाश होता है। इसी प्रकार यह चतुर्थी रविवार को पड़ जाए तो शुभ एवं फलदायी मानी गई है।

महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी को गणेशोत्सव के रूप में मनाया जाता है जो निरंतर दस दिनों तक चलता है। इस पर्व की समाप्ति अनंत चतुर्दशी अर्थात गणेश विसर्जन पर होती है। गणेश चतुर्थी के दिन भक्तजन भगवान गणेश को अपने घर लेकर आते है, उनकी सेवा करते है। वहीँ, इस उत्सव के अंतिम दिन विघ्नहर्ता गणेश का ढोल-नगाड़ों के साथ धूमधाम से जल में विसर्जित किया जाता है। इन्ही सब वजहों से ही गणेश चतुर्थी अत्यंत पवित्र एवं फलदायी होती है। 


गणेश जी से जुड़ी कथाएँ

पौराणिक मतों के अनुसार गणेश जी से जुड़ी कुछ प्रचलित कथाएँ इस प्रकार हैं:

1.  एक बार पार्वती जी स्नान करने के लिए जा रही थीं। उन्होंने अपने शरीर के मैल से एक पुतला निर्मित कर उसमें प्राण फूंके और गृहरक्षा (घर की रक्षा) के लिए उसे द्वारपाल के रूप में नियुक्त किया। ये द्वारपाल गणेश जी थे। गृह में प्रवेश के लिए आने वाले शिवजी को उन्होंने रोका तो शंकरजी ने रुष्ट होकर युद्ध में उनका मस्तक काट दिया। जब पार्वती जी को इसका पता चला तो वह दुःख के मारे विलाप करने लगीं। उनको प्रसन्न करने के लिए शिवजी ने गज(हाथी) का सर काटकर गणेश जी के धड़ पर जोड़ दिया। गज का सिर जुड़ने के कारण ही उनका नाम गजानन पड़ा।

2.  एक अन्य कथा के अनुसार विवाह के बहुत दिनों बाद तक संतान न होने के कारण पार्वती जी ने श्रीकृष्ण के व्रत से गणेश जी को उत्पन्न किया। शनि ग्रह बालक गणेश को देखने आए और उनकी दृष्टि पड़ने से गणेश जी का सिर कटकर गिर गया। फिर विष्णु जी ने दुबारा उनके हाथी का सिर जोड़ दिया।

3.  मान्यता है कि एक बार परशुराम जी शिव-पार्वती जी के दर्शन के लिए कैलाश पर्वत गए। उस समय शिव-पार्वती निद्रा में थे और गणेश जी बाहर पहरा दे रहे थे। उन्होंने परशुराम जी को रोका। इस पर विवाद हुआ और अंततः परशुराम जी ने अपने परशु से उनका एक दाँत काट डाला। इसलिए गणेश जी ‘एकदन्त’ के नाम से प्रसिद्ध हुए।

गणेश जी से जुड़े तथ्य

1.  किसी भी देव की आराधना के आरम्भ में किसी भी सत्कर्म व अनुष्ठान में, उत्तम-से-उत्तम और साधारण-से-साधारण कार्य में भी भगवान गणपति का स्मरण, उनका विधिवत पूजन किया जाता है। इनकी पूजा के बिना कोई भी मांगलिक कार्य को शुरु नहीं किया जाता है। यहाँ तक की किसी भी कार्यारम्भ के लिए ‘श्री गणेश’ एक मुहावरा बन गया है। शास्त्रों में इनकी पूजा सबसे पहले करने का स्पष्ट आदेश है। 

2.  गणेश जी की पूजा वैदिक और अति प्राचीन काल से की जाती रही है। गणेश जी वैदिक देवता हैं क्योंकि ऋग्वेद-यजुर्वेद आदि में गणपति जी के मन्त्रों का स्पष्ट उल्लेख मिलता है।

3.  शिवजी, विष्णुजी, दुर्गाजी, सूर्यदेव के साथ-साथ गणेश जी का नाम हिन्दू धर्म के पाँच प्रमुख देवों (पंच-देव) में शामिल है। जिससे गणपति जी की महत्ता साफ़ पता चलती है।

4.  ‘गण’ का अर्थ है - वर्ग, समूह, समुदाय और ‘ईश’ का अर्थ है - स्वामी। शिवगणों और देवगणों के स्वामी होने के कारण इन्हें ‘गणेश’ कहते हैं।

5.  शिवजी को गणेश जी का पिता, पार्वती जी को माता, कार्तिकेय (षडानन) को भ्राता, ऋद्धि-सिद्धि (प्रजापति विश्वकर्मा की कन्याएँ) को पत्नियाँ, क्षेम व लाभ को गणेश जी का पुत्र माना गया है।

6.  श्री गणेश जी के बारह प्रसिद्ध नाम शास्त्रों में बताए गए हैं; जो इस प्रकार हैं: 1. सुमुख, 2. एकदंत, 3. कपिल, 4. गजकर्ण, 5. लम्बोदर, 6. विकट, 7. विघ्नविनाशन, 8. विनायक, 9. धूम्रकेतु, 10. गणाध्यक्ष, 11. भालचंद्र, 12. गजानन।

7.  गणेश जी ने महाभारत का लेखन-कार्य भी किया था। भगवान वेदव्यास जब महाभारत की रचना का विचार कर चुके तो उन्हें उसे लिखवाने की चिंता हुई। ब्रह्माजी ने उनसे कहा था कि यह कार्य गणेश जी से करवाया जाए  कहते हैं गणेश चतुर्थी के दिन ही व्यास जी ने श्लोक बोलना और गणपति जी ने महाभारत को लिपिबद्ध करना शुरू किया था। 10 दिन तक बिना रूके गणपति ने लेखन कार्य किया। इस दौरान गणेश जी पर धूल मिट्‌टी की परत जम गई। 10 दिन बाद यानी की अनंत चतुर्दशी पर बप्पा ने सरस्वती नदी में कर खुद को स्वच्छ किया। तब से ही हर साल 10 दिन तक गणेश उत्सव मनाया जाता है।

8.  पौराणिक ग्रंथों के अनुसार ‘ॐ’ को साक्षात गणेश जी का स्वरुप माना गया है। जिस प्रकार प्रत्येक मंगल कार्य से पहले गणेश-पूजन होता है, उसी प्रकार प्रत्येक मन्त्र से पहले ‘ॐ’ लगाने से उस मन्त्र का प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।

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