Vasant Panchami 2021 बसंत पंचमी : जानें किस तरह हुआ मां सरस्वती का प्राकट्य, पूजा विधि, महत्व, नियम, कथा और अन्य सभी जानकारी


जब खेतों में सरसों फूली हो, आम की डाली बौर से झूली हों, जब पतंगें आसमां में लहराती हैं, मौसम में मादकता छा जाती है, तो रुत प्यार की आ जाती है, जो बसंत ऋतु कहलाती है। सिर्फ खुशगवार मौसम, खेतों में लहराती फसलें व पेड़-पौधों में फूटती नई कोपलें ही बसंत ऋतु की विशेषता नहीं हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति के उल्लास का, प्रेम के चरमोत्कर्ष का, ज्ञान के पदार्पण का, विद्या व संगीत की देवी के प्रति समर्पण का त्यौहार भी बसंत ऋतु में मनाया जाता है। आप बिल्कुल सही सोच रहे हैं, बसंत पंचमी ही वो त्यौहार है, जिसकी खूबियां हम आपको बता रहे हैं। माना जाता है कि इसी दिन जगत की नीरसता को खत्म करने व समस्त प्राणियों में विद्या व संगीत का संचार करने के लिए देवी सरस्वती पैदा हुई। इसलिए इस दिन शैक्षणिक व सांस्कृतिक संस्थानों में मां सरस्वती की विशेष रुप से पूजा की जाती है। देवी से प्रार्थना की जाती है कि वे अज्ञानता का अंधेरा दूर कर ज्ञान का प्रकाश प्रदान करें। इनके अनुग्रह से मनुष्य ज्ञानी, विज्ञानी, मेधावी, महर्षि और ब्रह्मर्षि हो जाता है।

क्या है बसंत पंचमी

हिंदू पंचांग में माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी को बसंत पंचमी कहा जाता है। माना जाता है कि विद्या, बुद्धि व ज्ञान की देवी सरस्वती का आविर्भाव इसी दिन हुआ था। इसलिए यह तिथि वागीश्वरी जयंती व श्री पंचमी के नाम से भी प्रसिद्ध है। ऋग्वेद के 10/125 सूक्त में सरस्वती देवी के असीम प्रभाव व महिमा का वर्णन किया गया है। हिन्दुओं के पौराणिक ग्रंथों में भी इस दिन को बहुत ही शुभ माना गया है व हर नए काम की शुरुआत के लिए यह बहुत ही मंगलकारी माना जाता है। 

वसंत पंचमी 2021 में कब हैं ? | Vasant Panchami 2021 Date and Timing:-

वसंत पंचमी हिंदी पंचांग के अनुसार माघ महीने की पंचमी तिथि को मनाया जाता हैं, इस दिन से वसंत ऋतु का प्रारम्भ होता हैं। प्राकृतिक रूप से भी बदलाव महसूस होता हैं। इस दिन पतझड़ का मौसम खत्म होकर हरियाली का प्रारम्भ होता हैं।अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह दिवस जनवरी - फरवरी माह में मनाया जाता हैं।

बसंत पंचमी 2021 - पूजा का शुभ मुहूर्त

 

बसंत पंचमी - 16 फरवरी 2021, दिन मंगलवार 

पूजा का समय - सुबह 06 बजकर 59 मिनट से दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक

पंचमी तिथि का आरंभ - फरवरी 16, 2021 को प्रातः 03 बजकर 36 मिनट से

पंचमी तिथि समाप्त - फरवरी 17, 2021 को सुबह 05 बजकर 46 मिनट तक 


भारत में कई त्यौहार मनाये जाते हैं, जो न केवल एक उत्साह होते हैं ,बल्कि पर्यावरण में आने वाले बदलाव के सूचक भी होते हैं, हिंदी पंचांग की तिथियाँ अपने साथ मौसमी बदलाव का भी संकेत देती हैं जो पूर्णतः प्राकृतिक होते हैं ।उन्हीं त्यौहारों में एक त्यौहार हैं वसंत पंचमी ।इस वर्ष बसंत पंचमी पर दो विशेष योग का निर्माण हो रहा है। पंचांग के अनुसार इस दिन अमृत सिद्धि योग और रवि योग का संयोग बनने जा रहा है। बसंत पंचमी पर पूरे दिन रवि योग रहेगा। जिससे इस पर्व का महत्व और भी अधिक बढ़ जाएगा। ज्योतिष के अनुसार इस बार बसंत पंचमी पर रेवती नक्षत्र रहेगा। इसे बुध का नक्षत्र माना जाता है और ज्योतिष शास्त्र में बुध ग्रह को बुद्धि, चातुर्य और वाकपटुता यानि वाणी का कारक माना गया है। इसलिए इस दिन मां सरस्वती की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होगी।

वसंत ऋतू पंचमी महत्व | Vasant Panchami Importance:-




वसंत पंचमी माघ के महीने में आती हैं, इस दिन वसंत ऋतु का प्रारम्भ होता हैं, वसंत को ऋतु राज माना जाता हैं यह पूरा माह बहुत शांत एवं संतुलित होता हैं इन दिनों  मुख्य पांच तत्त्व ( जल, वायु, आकाश, अग्नि एवं धरती ) संतुलित अवस्था में होते हैं और इनका ऐसा व्यवहार प्रकृति को सुन्दर एवं मनमोहक बनाता हैं अर्थात इस दिनों न बारिश होती हैं, ना बहुत ठंडक और ना ही गर्मी का मौसम  होता हैं, इसलिए इसे सुहानी ऋतू माना जाता हैं ।


वसंत में सभी जगह हरियाली का दृश्य दिखाई पड़ता हैं।पतझड़ खत्म होते ही पेड़ों पर नई शाखायें जन्म लेती हैं ,जो प्राकृतिक सुंदरता को और अधिक मनमोहक कर देती हैं।


वसंत पंचमी में सरस्वती पूजा का महत्व | Vasant Panchmi Saraswati Pooja Mahatav:-


माघ की पंचमी जिस दिन से वसंत का आरम्भ होता हैं, उसे ज्ञान की देवी सरस्वती के जयंती के रूप में मनाया जाता हैं। मुख्यतः बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, मध्य भारत एवं पंजाब प्रान्त के साथ-साथ नेपाल तथा पश्चिमोत्तर बांग्लादेश में मनाई जाती हैं। सरस्वती पूजन कर विधि विधान से सरस्वती वंदना के साथ वसंत पंचमी का उत्सव पूरा किया जाता हैं।

ग्रंथों के मुताबिक भगवान श्री श्रीमन्नारायण ने वाल्मीकि को सरस्वती का मंत्र बतलाया था, जिसके जप से उनमें कवित्व शक्ति उत्पन्न हुई थी। महर्षि वाल्मीकि, व्यास, वशिष्ठ, विश्वामित्र तथा शौनक जैसे ऋषि इनकी ही साधना से कृतार्थ हुए। भगवती सरस्वती को प्रसन्न करके उनसे अभिलषित वर प्राप्त करने के लिए विश्व विजय नामक सरस्वती कवच का वर्णन भी प्राप्त होता है। भगवती सरस्वती के इस अद्भुत विश्व विजय कवच को धारण करके ही व्यास, ऋष्यश्रृंग, भरद्वाज, देवल और जैगीषव्य आदि ऋषियों ने सिद्धि पाई थी। मां सरस्वती की उपासना (काली के रूप में) करके ही कवि कुलगुरु कालिदास ने ख्याति पाई। गोस्वामी जी कहते हैं कि देवी गंगा और सरस्वती दोनों एक समान ही पवित्र हैं। एक पाप हारिणी और एक अविवेक हारिणी हैं। विद्या को सभी धनों में प्रधान धन कहा गया है।

बसंत पंचमी पूजा साम्रगी

स्तुतिगान के अलावा सांगीतिक आराधना भी यथासंभव करके भगवती को निवेदित गन्ध पुष्प्म, मिष्ठान आदि का प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। पुस्तक और लेखनी (कलम) में भी देवी सरस्वती का निवास स्थान माना जाता है तथा उसकी पूजा की जाती है। माघ शुक्ल पंचमी को अनध्याय भी कहा गया है। मां सरस्वती की आराधना एवं पूजा में प्रयुक्त होने वाली उपचार सामग्रियों में अधिकांश श्वेत वर्ण की होती है। जैसे- दूध दही मक्खन धान का लावा, सफेद तिल का लड्डू, गन्ना, एवं गन्ने का रस, पका हुआ गुड़, मधु, श्वेद चंदन, श्वेत पुष्प, श्वेत परिधान, श्वेत अलंकार, खोवे का श्वेत मिष्टान, अदरक, मूली, शर्करा, सफेद धान के अक्षत, तण्डुल, शुक्ल मोदक, धृत, सैन्धवयुक्त हविष्यान्न, यवचूर्ण या गोधूमचूर्णका धृतसंयुक्त पिष्टक, पके हुए केले की फली का पिष्टक, नारियल, नारियल का जल, श्रीफल, बदरीफल, ऋतुकालोभ्दव पुष्प फल आदि।

बसंत पंचमी पूजा विधि

  • प्रात:काल स्नानादि कर पीले वस्त्र धारण करें।
  • भगवती सरस्वती के पूजन प्रक्रिया में सर्वप्रथम आचमन, प्राणायाम आदि के द्वारा अपनी बाह्याभ्यन्तर शुचिता संपन्न करें।
  • फिर सरस्वती पूजन का संकल्प ग्रहण करें। इसमें देशकाल आदि का संकीर्तन करते हुए अंत में- ‘यथोपलब्धपूजनसामग्रीभिः भगवत्याः सरस्वत्याः पूजनमहं करिष्ये’ पढ़कर संकल्प जल छोड़ दें। 
  • इसके बाद श्रीगणेश की आदि पूजा करके कलश स्थापित कर उसमें देवी सरस्वती का सादर आह्वान करके वैदिक या पौराणिक मंत्रों का उच्चारण करते हुए सामग्रियां भगवती को सादर समर्पित करें।
  • पूजा के समय ‘श्री हृ्रीं सरस्वत्यै स्वाहा’ इस अष्टाक्षर मंत्र से प्रत्येक वस्तु क्रमशः श्रीसरस्वती को समर्पण करें।
  • अन्त में देवी सरस्वती को आरती करके उनकी स्तुति करें।

  • सरस्वती पूजन के समय निम्नलिखित श्लोकों से भगवती का ध्यान करें-


सरस्वतीं शुक्लवर्णा सस्मितां सुमनोहराम्।।

कोटिचन्द्रप्रभामुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम्।

वह्निशुद्धां शुकाधानां वीणापुस्तकधारिणीम्।।

रत्नसारेन्द्रनिर्माणनवभूषणभूषिमात्।

सुपूजितां सुरणैब्र्रह्मविष्णुशिवादिभः।।

वन्दे भक्त्या वन्दितां च मुनीन्द्रमनुमानवैः।। (देवीभागवत 1/4/45-46)

  • सरस्वती मंत्र


1. सरस्वती नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणी, विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु में सदा।


हे सबकी कामना पूर्ण करने वाली माता सरस्वती, आपको नमस्कार करता हूँ।

मैं अपनी विद्या ग्रहण करना आरम्भ कर रहा हूँ , मुझे इस कार्य में सिद्धि मिले।


2. या देवी सर्वभूतेषु विद्यारूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥


  • इसके अतिरिक्त भगवती सरस्वती की स्तुति एवं ध्यान करने के लिए निम्नलिखित सरस्वती वंदना मंत्र भी विख्यात हैं-



या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता


या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।


या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता


सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥1॥


जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की है और जो श्वेत वस्त्र धारण करती है, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली सरस्वती हमारी रक्षा करें ॥1॥


शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं


वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌।


हस्ते स्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌


वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌॥2॥


शुक्लवर्ण वाली,संपूर्ण चराचर जगत्‌ में व्याप्त, आदिशक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं चिंतन के सार रूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली, सभी भयों से भयदान देने वाली, अज्ञान के अंधेरे को मिटाने वाली, हाथों में वीणा, पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली और पद्मासन पर विराजमान्‌ बुद्धि प्रदान करने वाली, सर्वोच्च ऐश्वर्य से अलंकृत, भगवती शारदा (सरस्वती देवी) की मैं वंदना करता हूं ॥2॥





मां सरस्वती के व्रतोपासकों के लिए नियम

  • वेद, पुराण, रामायण, गीता आदि ग्रन्थों का आदर करना चाहिए। उन्हें देवी की वचाडमयी मूर्ति मानते हुए पवित्र स्थान पर रखना चाहिए, अपवित्र स्थान पर नहीं रखना चाहिए। अपवित्र अवस्था में स्पर्श नहीं करना चाहिए तथा अनादर से फेंकना नहीं चाहिए।
  • काष्ठफलक आदि पर ही रखना चाहिए। नियम पूर्वक प्रातःकाल उठकर देवी सरस्वती का ध्यान करना चाहिए।
  • विद्यार्थियों को तो विशेष रूप से सारस्वत व्रत का अवश्य ही पालन करना चाहिए।


वसंत पंचमी पौराणिक एवम ऐतिहासिक कथा | Vasant Panchami Story


ब्रम्हाण्ड की संरचना शुरू करते समय ब्रह्मा जी ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की, अपनी रचना से वे संतुष्ट नहीं थे, उनके मन में दुविधा थी उन्हें चारों तरफ सन्नाटा सा महसूस हुआ, तब उन्होंने भगवान विष्णु से अनुमति ले कर अपने कमंडल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ, जो उनकी मानस पुत्री कहलाई, जिन्हें सरस्वती देवी के रूप में जानते हैं, इस देवी के प्राकट्य होने पर इनके एक हाथ में वीणा, दूसरी में पुस्तक और अन्य में माला थी। ब्रह्मा जी ने देवी से वीणा वादन को कहा, तब देवी सरस्वती ने जैसे ही स्वर को बिखेरा वैसे ही धरती में कंपन हुआ और मनुष्य को वाणी मिली और धरती का सन्नाटा खत्म हो गया। धरती पर पनपते हर जीव-जंतु, वनस्पति एवं जल धारा में एक आवाज शुरू हो गई और सब में चेतना का संचार होने लगा। इसलिए इस दिवस को सरस्वती जयंती के रूप में मनाया जाता हैं। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ऋग्वेद में माँ सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है :-


प्रणों  देवी  सरस्वती  वाजेभिर  वाजिनीवति  धीनां  वित्र्यवतु ।।


अर्थात यह परम चेतना है माँ सरस्वती के रूप में यही हमारी बुद्धि ,प्रज्ञा तथा मनोवृतियों की संरक्षिका है ।


हमारे जो आचरण और हमारी जो मेघा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही है । इनकी समृद्धि  और स्वरूप का वैभव अद्भुत है |


रामायण काल के पौराणिक कथानुसार जब रावण ने माता सीता का अपहरण किया, तब माता सीता ने अपने आभुषणों को धरती पर फेंका था, जिससे उनके अपहरण मार्ग की जानकारी प्रभु श्री राम को मिल सके। उन्हीं एक-एक आभूषण के जरिये प्रभु श्री राम से माता सीता को तलाश करना शुरू किया।उसी खोज के दौरान भगवान राम दंडकारण्य पहुंचे, जहाँ वे शबरी से मिले। वहां उन्होंने शबरी के जूठे बेर खाकर शबरी के जीवन का उद्धार किया। कहा जाता हैं वह दिन वसंत पंचमी का दिन था, इसलिए आज भी इस स्थानों पर शबरी माता के मंदिर में वसंत उत्सव मनाया जाता हैं।


ऐतिहासिक कथानुसार इतिहास वीरों के बलिदानोँ से भरा पड़ा हैं। ऐसी ही एक कथा पृथ्वीराज चौहान की हैं जो वसंत पंचमी से जुड़ी हुई हैं। उन्होंने मोहम्मद गोरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद गोरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ अफगानिस्तान ले गया। जहां उसने उनकी आंखें फोड़ दीं। इसके बाद की घटना तो जग जाहिर है। मोहम्मद गोरी ने मृत्युदंड देने से पूर्व चौहान के शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा। इस अवसर का लाभ उठाकर कवि चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को संदेश दिया। 

चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।

ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान ॥

पृथ्वीराज चौहान ने इस बार भूल नहीं की। उन्होंने चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगाकर जो बाण मारा, वह मोहम्मद गोरी के सीने में जा धंसा। इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने एक दूसरे के पेट में छुरा भोंककर आत्मबलिदान दे दिया। 1192 ई.वी. की यह घटना बसंत पंचमी के दिन ही घटी थी। 


भारत देश में वसंत पंचमी  कैसे मनाई जाती हैं ? | how vasant Panchmi is celebrated?




वसंत पंचमी को एक मौसमी त्यौहार के रूप में भिन्न-भिन्न प्रांतीय मान्यता के अनुसार मनाया जाता हैं ।कई पौराणिक कथाओं के महत्व को धयान में रखते हुए भी इस त्यौहार को मनाया जाता हैं


  • बिहार में बसंत पंचमी के दिन सरस्‍वती पूजा का व‍िशेष महत्‍व है, न सिर्फ घरों में बल्‍कि श‍िक्षण संस्‍थाओं में भी इस दिन सरस्‍वती पूजा का आयोजन किया जाता है, इस दिन बड़े-बड़े पंडाल लगाए जाते हैं जिसमें माँ सरस्वती के प्रतिमा स्थापित की जाती हैं एवं विद्या की देवी सरस्‍वती की पूजा कर उन्हें कमल पुष्प ,अबीर-गुलाल, फल अर्पित किये जाये हैं तथा वाद्य यंत्रों और किताबों की भी पूजा की जाती है । इस दिन छोटे बच्चों को पहली बार अक्षर ज्ञान कराया जाता है। उन्‍हें किताबें भी भेंट की जाती हैं, पीले रंग के कपड़े पहनना शुभ माना जाता है, पीले चावल या पीले रंग का भोजन किया जाता है। जिसमें प्रसाद में बेर, बुनिया और खिचड़ी चढ़ाया और ग्रहण किया जाता है। खेत खलियानों  में भी हरियाली का मौसम होता हैं ,यह उत्सव किसानों के लिए भी बहुत महत्पूर्ण हैं इस समय खेतों में पीली सरसों लहराती हैं किसान भाई भी फसल आने की खुशी में यह त्योहार मानते हैं ।

  • दान का भी बहुत महत्व होता हैं वसंत पंचमी के समय अन्न दान, वस्त्र दान का महत्व होता हैं आजकल सरस्वती जयंती को ध्यान में रखते हुए गरीब बच्चों  को शिक्षा के लिए दान दिया जाता हैं।इस दान का सवरूप धन अथवा अध्ययन में काम आने वाली वस्तुओं जैसे किताबें, पुस्तक, कलम आदि होता हैं ।

  • पश्चिम बंगाल में भी इस उत्सव की धूम होती हैं यहाँ संगीत कला को बहुत अधिक पूजा जाता हैं इसलिए वसंत पंचमी पर कई बड़े-बड़े आयोजन किये जाते हैं जिसमें भजन ,नृत्य आदि होते हैं, कामदेव और देवी रति की पौराणिक कथा का भी महत्व वसंत पंचमी से जुड़ा हुआ हैं इसलिए इस दिन कई रासलीला उत्सव भी किये जाते हैं ।

  • गुजरात प्रान्त में गरबा करके माँ सरस्वती की पूजन किया जाता हैं यह खासकर किसान भाई मनाते हैं ।

  • पंजाब में पतंग बाजी कर के वसंत पंचमी मनायी जाती हैं जिसे महाराणा रंजीत सिंह ने शुरू किया था । इस दिन बच्चे दिन-भर रंग बिरंगी पतंग उड़ाते हैं और कई जगह प्रतियोगिता के रूप में पतंगबाजी की जाती हैं ।

  • वसंत ऋतु में पवित्र स्थानों ,तीर्थ स्थानों  के दर्शन का महत्व होता हैं साथ ही नदियों पर वसंत शाही स्नान का महत्व होता हैं। प्रयाग त्रिवेणी संगम पर भी भक्त जन स्नान के लिए जाते हैं।

  • वसंत के उत्सवों में कई स्थान पर मेला लगता हैं पवित्र नदियों के तट, तीर्थ स्थानों एवं पवित्र स्थानों पर वसंत मेला लगता हैं जहाँ देशभर के भक्त जन एकत्र  होते हैं।

  • वसंत ऋतु का महत्व अधिक होता हैं यह ऋतुराज माना जाता हैं, इन दिनों प्राकृतिक बदलाव होते हैं जो मनमोहक एवं सुहावने होते हैं ।इस ऋतु  में कई त्यौहार मनाये जाते हैं ।जिनमें वसंत पंचमी के दिन इस ऋतु में होने वाले बदलाव को महसूस किया जाता हैं।अतः इस दिन को उत्सव के रूप में मनाया जाता हैं ।


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