Kartik Purnima 2020 : 30 नवंबर को है कार्तिक पूर्णिमा, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व और व्रत कथा

 



कार्तिक पूर्णिमा सभी पूर्णिमाओं में श्रेष्‍ठ मानी जाती है।कार्तिक महीने की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमात्रिपुरी पूर्णिमा और गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है। मान्‍यता है कि इस दिन भगवान शिव ने देवलोक पर हाहाकार मचाने वाले त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का संहार किया था। उसके वध की खुशी में देवताओं ने इसी दिन दीपावली मनाई थी। हर साल लोग कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीपावली मनाते हैं और भगवान विष्णु ने शिव जी को त्रिपुरारी नाम दिया जो शिव के अनेक नामों में से एक है। इसलिए इसे 'त्रिपुरी पूर्णिमा' भी कहते हैं। हिन्‍दू मान्‍यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान विष्‍णु ने मत्‍स्‍यावतार लिया था।भगवान को यह अवतार वेदों की रक्षा, प्रलय के अंत तक सप्तऋषियों, अनाजों एवं राजा सत्यव्रत की रक्षा के लिए लेना पड़ा था। इससे सृष्टि का निर्माण कार्य फिर से आसान हुआ।  इस दिन गंगा समेत अन्‍य पवित्र नदियों में स्‍नान करना पुण्‍यकारी माना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर दीपदान करना भी विशेष फलदायी होता है। यही नहीं कार्तिक मास की पूर्णिमा को ही सिख धर्म के संस्‍थापक और पहले गुरु नानक देव का जन्‍म हुआ था। उनके जन्‍मोत्‍सव को गुरु नानक जयंती के रूप में मनाया जाता है।

कार्तिक पूर्णिमा कब है?

हिन्‍दू कैलेंडर में आठवें महीने का नाम कार्तिक है। कार्तिक महीने की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा हर साल नवंबर के महीने में आती है। इस बार कार्तिक पूर्णिमा 30 नवंबर 2020 को है।

कार्तिक पूर्णिमा की तिथि और शुभ मुहूर्त | Kartik Purnima Date, Time:-


कार्तिक पूर्णिमा की तिथि: 30 नवंबर 2020
पूर्णिमा तिथि आरंभ: 29 नवंबर 2020 को दोपहर 12 बजकर 47 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्‍त: 30 नवंबर 2020 को दोपहर 02 बजकर 59 मिनट तक

कार्तिक पूर्णिमा का महत्‍व | Kartik Purnima Significance:-


प्रत्येक वर्ष पंद्रह पूर्णिमाएं होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर सोलह हो जाती है। शास्त्रों में कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करने का बहुत महत्व बताया गया है।सृष्टि के आरंभ से ही यह तिथि बड़ी ही खास रही है। पुराणों में इस दिन स्नान, व्रत व तप की दृष्टि से मोक्ष प्रदान करने वाला बताया गया है। इसका महत्व सिर्फ वैष्णव भक्तों के लिए ही नहीं शैव भक्तों और सिख धर्म के लिए भी बहुत ज्यादा है।


  • विष्णु के भक्तों के लिए यह दिन इसलिए खास है क्योंकि भगवान विष्णु का पहला अवतार इसी दिन हुआ था। प्रथम अवतार में भगवान विष्णु मत्स्य यानी मछली के रूप में थे। भगवान को यह अवतार वेदों की रक्षा, प्रलय के अंत तक सप्तऋषियों, अनाजों एवं राजा सत्यव्रत की रक्षा के लिए लेना पड़ा था। इससे सृष्टि का निर्माण कार्य फिर से आसान हुआ।
  • शिव भक्तों के अनुसार इसी दिन भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का संहार कर दिया जिससे वह त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए। इससे देवगण बहुत प्रसन्न हुए और भगवान विष्णु ने शिव जी को त्रिपुरारी नाम दिया जो शिव के अनेक नामों में से एक है। इसलिए इसे 'त्रिपुरी पूर्णिमा' भी कहते हैं।देवताओं ने त्रिपुरासुर वध की खूशी में दीए जलाए।इसलिए इसे देव दीपावली भी कहते हैं । यही वजह है कि इस दिन मंदिरों और गंगा के घाटों में दीपक जलाए जाते हैं। 
  • सिख धर्म में कार्तिक पूर्णिमा के दिन को प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है। क्योंकि इसी दिन सिख सम्प्रदाय के संस्थापक गुरु नानक देव का जन्म हुआ था। इस दिन सिख सम्प्रदाय के अनुयायी सुबह स्नान कर गुरुद्वारों में जाकर गुरुवाणी सुनते हैं और नानक जी के बताए रास्ते पर चलने की सौगंध लेते हैं। इसे गुरु पर्व भी कहा जाता है।


  • कार्तिक पूर्णिमा उत्सव दीपावली की भांति दीप जलाकर सायंकाल में मनाया जाता है।यह दिन एक नहीं बल्कि कई वजहों से खास है। इस दिन गंगा-स्नान, दीप दान, अन्य दानों आदि का विशेष महत्व है। इस दिन क्षीरसागर दान का अनंत महत्व है, क्षीरसागर का दान 24 अंगुल के बर्तन में दूध भरकर उसमें स्वर्ण या रजत की मछली छोड़कर किया जाता है।
  • इस दिन चंद्र जब आकाश में उदित हो रहा हो उस समय शिवासंभूतिसंततिप्रीतिअनुसूया और क्षमा इन छह कृतिकाओं का पूजन करने से शिव जी की प्रसन्नता प्राप्त होती है। ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन कृतिका में शिवशंकर के दर्शन करने से सात जन्म तक व्यक्ति ज्ञानी और धनवान होता है। अत: कार्तिक पूर्णिमा का दिन कई मायनों में बहुत खास हैं।
  • कार्तिक मास को दामोदर के नाम से भी जाना जाता है और दामोदर भगवान विष्‍णु का ही एक नाम है। हिन्‍दू कैलेंडर के सभी 12 महीनों में से कार्तिक मास को सबसे पवित्र और शुभ माना जाता है। इस दौरान लोग पूरे महीने गंगा तथा अन्‍य पवित्र नदियों में स्‍नान करते हैं। कार्तिक मास के पवित्र स्‍नान की शुरुआत शरद पूर्णिमा से होती है और इसका समापन कार्तिक पूर्णिमा के दिन होता है। मान्‍यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों में स्‍नान करने से पुण्‍य प्राप्‍त होता है। शुभ और मांगलिक कार्यों की शुरुआत के लिए भी कार्तिक पूर्णिमा का दिन बेहद अच्‍छा माना जाता है।
  • कार्तिक पूर्णिमा से चार दिन पहले देवउठनी या प्रबोध‍िनी एकादशी के दिन से सभी मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है। कार्तिक पूर्णिमा से एक दिन पहले बैकुंड चतुर्दशी मनाई जाती है। मान्‍यता है कि इसी दिन भगवान विष्‍णु ने महादेव शिव की पूजा की थी और उन्‍हें एक हजार कमल पुष्‍प अर्पित किए थे। 

कार्तिक पूर्णिमा की पूजा विधि | Kartik Purnima Puja Vidhi:-


  • कार्तिक पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र नदी में स्‍नान करें। मान्‍यता है कि इस दिन पवित्र नदियों में स्‍नान करने से पुण्‍य की प्राप्‍ति होती है या अपने घर पर ही सभी तीर्थों, पवित्र नदियों का ध्यान करते हुए और नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें और स्नान के बाद सूर्य को जल चढ़ाएं। इसके लिए तांबे के लोटे का उपयोग करें। जल चढ़ाते समय " ऊँ सूर्याय नम: " मंत्र का जाप करें।
  • रात्रि के समय विधि-विधान से भगवान विष्‍णु और मां लक्ष्‍मी की पूजा करें। 
  • भगवान विष्‍णु और मां लक्ष्‍मी की आरती उतारने के बाद चंद्रमा को अर्घ्‍य दें।(कार्तिक पूर्णिमा के दिन शाम के समय जल में कच्चा दूध मिलाकर चंद्रमा को अर्घ्य देना चाहिए।)
  • घर के अंदर और बाहर दीपक जलाएं। 
  • घर के सभी सदस्‍यों में प्रसाद वितरण करें। 
  • इस दिन दान करना अत्‍यंत शुभ माना जाता है। किसी ब्राह्मण या निर्धन व्‍यक्ति को भोजन कराएं और यथाशक्ति दान और भेंट देकर विदा करें। 
  • कार्तिक पूर्णिमा के मौके पर दीपदान करना भी बेहद शुभ माना जाता है।
  • पूर्णिमा पर सूर्यास्त के बाद तुलसी के पास दीपक जलाएं। दीपक जलाकर परिक्रमा करें। ध्यान रखें शाम को तुलसी को स्पर्श नहीं करना चाहिए।
  • धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन  पीपल के पेड़ पर मां लक्ष्मी का वास रहता है। इस दिन जल में दूध, शहद मिलाकर पीपल के वृक्ष पर चढ़ाते हुए एक दीपक भी जलाना चाहिए।
  • कार्तिक पूर्णिमा की रात हनुमानजी के पास दीपक जलाकर हनुमान चालीसा का पाठ करें। आप चाहे तो सुंदरकांड का पाठ भी कर सकते हैं। ऐसा करने से मानसिक शांति मिलती है। एकाग्रता बढ़ती है।
  • कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीपदान का विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन किसी पवित्र नदी, तालाब में एक दीप अवश्य जलाएं। कहा जाता है कि ऐसा करने से व्यक्ति को पुण्य फल की प्राप्ति होती है।

कार्तिक पूर्णिमा का कथा | Kartik Purnima Katha:-


पौराणिक कथा के अनुसार तारकासुर नाम का एक राक्षस था। उसके तीन पुत्र थे - तारकक्षकमलाक्ष और विद्युन्माली। भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिक ने तारकासुर का वध किया। अपने पिता की हत्या की खबर सुन तीनों पुत्र बहुत दुखी हुए। तीनों ने मिलकर ब्रह्माजी से वरदान मांगने के लिए घोर तपस्या की। ब्रह्मजी तीनों की तपस्या से प्रसन्न हुए और बोले कि मांगों क्या वरदान मांगना चाहते हो। तीनों ने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्माजी ने उन्हें इसके अलावा कोई दूसरा वरदान मांगने को कहा।


तीनों ने मिलकर फिर सोचा और इस बार ब्रह्माजी से तीन अलग नगरों का निर्माण करवाने के लिए कहा, जिसमें सभी बैठकर सारी पृथ्वी और आकाश में घूमा जा सके। एक हज़ार साल बाद जब हम मिलें और हम तीनों के नगर मिलकर एक हो जाएं, और जो देवता तीनों नगरों को एक ही बाण से नष्ट करने की क्षमता रखता हो, वही हमारी मृत्यु का कारण हो। ब्रह्माजी ने उन्हें ये वरदान दे दिया।


तीनों वरदान पाकर बहुत खुश हुए। ब्रह्माजी के कहने पर मयदानव ने उनके लिए तीन नगरों का निर्माण किया। तारकक्ष के लिए सोने का, कमला के लिए चांदी का और विद्युन्माली के लिए लोहे का नगर बनाया गया। तीनों ने मिलकर तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया। इंद्र देवता इन तीनों राक्षसों से भयभीत हुए और भगवान शंकर की शरण में गए। इंद्र की बात सुन भगवान शिव ने इन दानवों का नाश करने के लिए एक दिव्य रथ का निर्माण किया।





इस दिव्य रथ की हर एक चीज़ देवताओं से बनीं। चंद्रमा और सूर्य से पहिए बने। इंद्र, वरुण, यम और कुबेर रथ के चाल घोड़े बनें। हिमालय धनुष बने और शेषनाग प्रत्यंचा बनें। भगवान शिव खुद बाण बनें और बाण की नोक बने अग्निदेव। इस दिव्य रथ पर सवार हुए खुद भगवान शिव। 


भगवानों से बनें इस रथ और तीनों भाइयों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। जैसे ही ये तीनों रथ एक सीध में आए, भगवान शिव ने बाण छोड़ तीनों का नाश कर दिया। इसी वध के बाद भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा जाने लगा। यह वध कार्तिक मास की पूर्णिमा को हुआ, इसीलिए इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा नाम से भी जाना जाने लगा।

कार्तिक स्नान पर गंगा स्नान क्यों ?



कार्तिक मास में सारे देवता जलाशयों में छिपे होते हैं।भगवान श्रीहरि भी पाताल में निवास करते हैं।इस तिथि पर गंगा स्नान से एक हजार अश्वमेघ यज्ञ और सौ वाजस्नेय यज्ञ के समान फल।सालभर के गंगास्नान और पूर्णिमा स्नान का फल मिलता है। माना जाता है कि गंगा में इस दिन स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलने के साथ-साथ काया भी निरोगी रहती है।


कार्तिक पूर्णिमा के दिन तुलसी की पूजा भी है जरूरी:-



बिना तुलसी के विष्णु जी की पूजा पूरी नहीं मानी जाती है। कार्तिक पूर्णिमा को ही तुलसी का अवतरण हुआ था। तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय हैं और यह मास भी विष्णु का माना जाता है। इसलिए इसदिन गंगा स्नान, दान खास फलदायी होती है। इस दिन तुलसी के समक्ष दीपक जरूर जलाना चाहिए। 


कार्तिक पूर्णिमा के दिन भीष्म पंचक का होगा समापन:-

कार्तिक पूर्णिमा पर भीष्म पंचक व्रत का समापन होगा। इस दिन कार्तिक मास स्नान का भी समापन होगा। कार्तिक मास का कल्पवास भी कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही संपन्न होता है। प्रयाग,काशी, सिमरिया में श्रद्धालु एक महीने तक गंगा तट पर ही रहते हैं। वहीं प्रात:काल गंगा में स्नान व ध्यान करते हैं।

कार्तिक पूर्णिमा के दिन क्या करें?

  • कार्तिक पूर्णिमा पर भगवान विष्णु को तुलसी माला और गुलाब का फूल चढ़ाने से मन की सारी मुरादें पूरी होंगी। वहीं महादेव को धतूरे का फल और भांग चढ़ाने से काल सर्प दोष से मुक्ति मिलेगी। 
  • धार्मिक शास्त्रों के जानकारों की मानें तो इस दिन चंद्रमा के 6 कृतिकाओं का पूजने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। 
  • शास्त्रों के अनुसार पूर्णिमा को स्नान अर्घ्य, तर्पण, जप-तप, पूजन, कीर्तन एवं दान-पुण्य करने से स्वयं भगवान विष्णु, प्राणियों को ब्रह्मघात और अन्य कृत्या-कृत्य पापों से मुक्त करके जीव को शुद्ध कर देते हैं।
  • पूर्णिमा के दिन स्नान के बाद श्री सत्यनारायण की कथा का श्रवण, गीता पाठ ,विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ व 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' का जप करने से प्राणी पापमुक्त-कर्जमुक्त होकर विष्णु की कृपा पाता है।
  • भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए इस दिन आसमान के नीचे सांयकाल घरों, मंदिरों, पीपल के वृक्षों तथा तुलसी के पौधों के पास दीप प्रज्वलित करने चाहिए, गंगा आदि पवित्र नदियों में दीप दान करना चाहिए।ऐसा करने से घर में सुख समृद्धि और वैभव का वास होता है। 
  • नारद पुराण के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा पर सम्पूर्ण सदगुणों की प्राप्ति एवं शत्रुओं पर विजय पाने के लिए कार्तिकेय जी के दर्शन करने का विधान है।
  • इस दिन अरवा चावल, जौ, काले तिल, मौसमी फल, लौकी में छिपाकर सिक्का दान करना चाहिए। ऐसा करना बेहद शुभ माना जाता है।
  • यदि आपकी कुंडली में पितृ दोष, चांडाल दोष, नदी दोष या शनि की साढ़ेसाती व अन्य समस्याएं है तो तिल के तेल से पूजा करनी चाहिए। 

कार्तिक पूर्णिमा के दिन भूलकर भी न करें ये काम:-

  • कार्तिक पूर्णिमा को बेहद शुभ दिन माना जाता है। इस दिन तामसिक भोजन का सेवन न करें।
  •  चंद्रमा के दुष्प्रभाव से बचना चाहते हैं तो कार्तिक पूर्णिमा के दिन शारीरीक संबंध न बनाएं। 
  •  कार्तिक पूर्णिमा के दिन घर पर किसी तरह का कलह करने से बचना चाहिए।
  •   कार्तिक पूर्णिमा के दिन गरीब और असहाय लोगों का अपमान नहीं करना चाहिए।
  • कार्तिक पूर्णिमा के दिन तुलसी के पौधे को न तो उखाडे़ं और न हीं तुलसी के पत्तों को तोड़ना चाहिए। 
  • इस दिन दीप जलाना न भूलें। 
  • कार्तिक पूर्णिमा के दिन बिना स्नान किए पूजा न करें। 
  • दान मांगने आये व्यक्ति को मना न करें। 


कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर चंद्रग्रहण के मायने


कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर ही साल का चौथा चंद्रग्रहण पड़ रहा है। हालांकि, यह चंद्र ग्रहण एशिया, ऑस्ट्रेलिया, प्रशांत महासागर और अमेरिका के कुछ हिस्सों में दिखाई दे सकता है। यह चंद्रग्रहण भारत में नहीं दिखाई देगा, क्योंकि यहां जब चंद्र ग्रहण लगेगा उस समय दोपहर रहेगा। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चंद्र ग्रहण तीन तरह के होते हैं। पूर्ण चंद्र ग्रहण, आंशिक और उपच्छाया। उपच्छाया चंद्र ग्रहण को वास्तविक चंद्र ग्रहण नहीं माना जाता है। हर चंद्र ग्रहण के शुरू होने से पहले चंद्रमा धरती की उपच्छाया में प्रवेश करता है, जिसे चंद्र मालिन्य कहा जाता है। उसके बाद ही चंद्रमा धरती की वास्तविक छाया में प्रवेश करता है, तभी उसे चंद्र ग्रहण कहते हैं। जब चंद्रमा धरती की वास्तविक छाया में प्रवेश किए बिना उसकी उपच्छाया में आकर ही बाहर निकल जाता है। तब उपच्छाया चंद्र ग्रहण लगता है। 

इस बार चंद्र ग्रहण वृषभ राशि में लगने जा रहा है। पंचांग के अनुसार इस दिन रोहिणी नक्षत्र रहेगा।उपछाया चंद्रग्रहण होने के कारण इसमें घबराने वाली कोई बात नहीं है इसका किसी राशि पर कोई अशुभ प्रभाव नहीं पड़ने वाला है। बस वृष राशि को थोड़ा संभल कर रहने की जरूरत है। उपछाया होने के कारण इस तिथि पर मंदिरों के पट भी बंद नहीं होंगे। पूजा-पाठ को लेकर भी कोई नियम आदि नहीं माना जाएगा। 

क्या है ग्रहण का मुहूर्त | Chandra Grahan Time

दोपहर 1 बजकर 04 मिनट पर एक छाया से पहला स्पर्श

दोपहर 3 बजकर 13 मिनट पर परमग्रास चंद्रग्रहण

शाम 5 बजकर 22 मिनट पर उपच्छाया से अंतिम स्पर्श


कार्तिक पूर्णिमा पर इस बार सर्वाथसिद्धि योग

इस बार कार्तिक पूर्णिमा पर सर्वार्थसिद्धि योग व वर्धमान योग बन रहे हैं। इस योग के कारण कार्तिक पूर्णिमा का महत्व और भी बढ़ जाता है। ऐसी मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा में या तुलसी के पास दीप जलाने से महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।

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