जानें क्या है बाबा बैजनाथ धाम की कथा...

हिंदू धर्म में बारह ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का बड़ा महत्व है. इन सभी से शिव की रोचक कथाएं जुड़ी हुई हैं. देवघर के वैद्यनाथ धाम में स्थापित 'कामना लिंग' भी रावण की भक्ति का प्रतीक है.



बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक पवित्र वैद्यनाथ शिवलिंग झारखंड के देवघर में स्थित है। इस जगह को लोग बाबा बैजनाथ धाम, बाबा धाम  के नाम से भी जानते हैं।कहते हैं भोलेनाथ यहां आने वाले की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। इसलिए इस शिवलिंग को 'कामना लिंग' भी कहते हैं।

12 ज्योतिर्लिंगों के लिए कहा जाता है कि जहां-जहां महादेव साक्षत प्रकट हुए वहां ये स्थापित की गईं। इसी तरह पुराणों में वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की भी कथा है जो लंकापति रावण से जुड़ी है।

बाबा बैजनाथ धाम की कथा:-

यह बात स्वयं भगवान शिव ने कही थी कि रावण बहुत बड़ा शिवभक्त है..

भगवान शिव के भक्त रावण और बाबा बैजनाथ की कहानी बड़ी निराली है। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार दशानन रावण भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर घोर तपस्या कर रहा था ।उसने अपना एक-एक सिर काट कर शिवलिंग पर चढ़ाना शुरू कर दिया। उसने अपने नौ सिर चढ़ा दिए। जैसे ही वह अपना दसवां सिर काटने जा रहा था, तो  भगवान शंकर प्रसन्न होकर प्रकट हो गए और उन्होंने रावण के दसों सिरों को पहले जैसा ही कर दिया और रावण से वरदान मांगने को कहा। 



तब रावण ने 'कामना लिंग' को ही लंका ले जाने का वरदान मांग लिया। रावण के पास सोने की लंका के अलावा तीनों लोकों में शासन करने की शक्ति तो थी ही साथ ही उसने कई देवता, यक्ष और गंधर्वो को कैद कर के भी लंका में रखा हुआ था। इस वजह से रावण ने ये इच्छा जताई कि भगवान शिव कैलाश को छोड़ लंका में रहें। महादेव ने उसकी इस मनोकामना को पूरा तो किया पर साथ ही एक शर्त भी रखी। उन्होंने कहा कि अगर तुमने शिवलिंग को रास्ते में कही भी रखा तो मैं फिर वहीं रह जाऊंगा और नहीं उठूंगा। रावण ने शर्त मान ली।


रावण शिवलिंग लेकर चल दिया। सभी देवताओं को चिंता हो गई कि अगर रावण ने लंका में शिवलिंग स्थापित कर दिया तो वह अजेय हो जाएगा। सब देवता सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु के पास पहुंच गए।तब श्री हरि ने लीला रची। भगवान विष्णु ने तीन पवित्र नदियों- गंगा, यमुना और सरस्वती से कहा कि वे रावण के पेट में प्रवेश कर जाएं। इसलिए जब रावण आचमन करके शिवलिंग को लेकर श्रीलंका की ओर चला तो देवघर के पास तीनों नदियों के पेट में प्रवेश करते ही रावण को बड़ी तेज लघुशंका लगी ।मगर शर्त थी कि शिवलिंग को जमीन पर रखना नहीं है और शिवलिंग को लेकर लघुशंका की नहीं जा सकती थी।





तभी वहां भगवान विष्णु स्वयं ग्वाले का रूप धर कर उपस्थित हो गए।इस  वजह से भी यह तीर्थ स्थान बैजनाथ धाम और रावणेश्वर धाम दोनों नामों से विख्यात है। रावण ने  बैजू नामक ग्वाले से कहा कि वह थोड़ी देर के लिए शिवलिंग पकड़ ले, उसे लघुशंका के लिए जाना है। ग्वाले ने कहा- ‘जल्दी आना, वरना मैं शिवलिंग भूमि पर रख दूंगा।’ रावण बोला- ‘ठीक है।’ उधर तीनों नदियों के पेट में प्रवेश कर जाने से रावण की लघुशंका समाप्त ही नहीं हो रही थी इधर बहुत ज्यादा देर होते देख ग्वाले ने शिवलिंग को भूमि पर रख दिया। वह लिंग वहीं स्थिर हो गया। 





जब रावण लौट कर आया तो उसने अपनी सारी शक्ति लगा कर उसे उठाना चाहा, लेकिन वह शिवलिंग उठा नहीं सका। गुस्से में उसने शिवलिंग पर मुक्के से प्रहार किया, जिससे वह जमीन में धंस गया। बस उसका अंगूठे जितना भाग ही ऊपर रहा। अंत में रावण निराश होकर खाली हाथ लंका चला गया।उसके बाद ब्रह्मा, विष्णु आदि देवताओं ने आकर उस शिवलिंग की पूजा की। शिवजी का दर्शन होते ही सभी देवी देवताओं ने शिवलिंग की उसी स्थान पर स्थापना कर दी और शिव-स्तुति करके वापस स्वर्ग को चले गए। तभी से महादेव 'कामना लिंग' के रूप में देवघर में विराजते हैं।

'कामना लिंग' वैद्यनाथ धाम

कहते हैं कि जिस जगह लिंग स्थापित हुआ था, वहीं वर्तमान मंदिर है और शिवलिंग आज भी अंगूठे के आकार का ही है। यह भी मान्यता है कि रावण की लघुशंका से एक सरोवर का निर्माण हो गया था, जिसे शिवगंगा कहते हैं। देवघर पहुंचने के बाद कांवड़िये पहले शिवगंगा में स्नान करते हैं, फिर शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं।

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