Dhanteras 2019 Date and Muhurat: इस तारीख को है धनतेरस, जानें धनतेरस कथा, पूजा मुहूर्त,पूजा विधि,महत्व और किस मुहूर्त में करें खरीदारी ? | Know Dhanteras story, Puja Muhurta, Puja Vidhi, Importance and in which Muhurat to shop?



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धनतेरस के दिन सौभाग्य और सुख की वृद्धि के लिए देवी लक्ष्मी एवं धन्वंतरी देवता की पूजा की जाती हैं। यह पर्व दीपावली के दो दिन पहले मनाया जाता हैं। इस दिन देवताओं के वैद्य धनवन्तरि की पूजा का विधान है। इनकी पूजा से व्यक्ति को आरोग्य और निरोगी जीवन का आशीर्वाद प्राप्त होता है। धनवन्तरि को भगवान विष्णु का ही अवतार माना जाता है।इस दिन इनके साथ धन के देवता कुबेर एवं यमराज की पूजा की जाती हैं।  धनतेरस की शाम परिवार की मंगलकामना के लिए यम नाम का दीपक जलाया जाता है। धनतेरस के दिन चांदी एवं अन्य नये बर्तन खरीदने की प्रथा भी हैं, इन सब प्रथाओं के पीछे कई पौराणिक कथायें कही गई हैं।


धनतेरस कब मनाई जाती हैं ? Dhanteras 2019 Date  Muhurat:-


यह हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन मनाई जाती हैं। इस दिन कुबेर, लक्ष्मी, धन्वन्तरी एवम यमराज का पूजा की जाती हैं। यह दिन दीपावली के दो दिवस पूर्व मनाया जाता हैं। इसी दिन से दीपावली महापर्व की शुरुवात होती हैं।

वर्ष 2019 में धनतेरस 25 अक्टूबर, दिन शुक्रवार को मनाई जायेगी।


पूजा मुहूर्त18:20 से 20:17
प्रदोष काल17:42 से 20:17
वृषभ काल18:20 से 20:18


धनतेरस पूजा विधि:-


धनतेरस के दिन प्रदोषकाल में पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। अपने पूजा के स्थान पर उत्तर दिशा की तरफ भगवान कुबेर और धन्वन्तरि की मूर्ति स्थापना कर उनकी पूजा करनी चाहिए। इनके साथ ही माता लक्ष्मी और भगवान श्रीगणेश की पूजा करने का भी महत्व है। भगवान कुबेर को सफेद मिठाई, और  धनवंतरि को पीली मिठाई का भोग लगाना चाहिए।

आइये विस्तार में जानते हैं धनतेरस की पूजा विधि.....

  • धनतेरस के दिन आरोग्‍य के देवता और आयुर्वेद के जनक भगवान धन्‍वंतरि की पूजा की जाती है। मान्‍यता है कि इस दिन धन्‍वंतरि की पूजा करने से आरोग्‍य और दीर्घायु प्राप्‍त होती है। इस दिन भगवान धन्‍वंतर‍ि की प्रतिमा को धूप और दीपक दिखाएं। साथ ही फूल अर्पित कर सच्‍चे मन से पूजा करें। 


  • धनतेरस के दिन मृत्‍यु के देवता यमराज की पूजा भी की जाती है। इस दिन संध्‍या के समय घर के मुख्‍य दरवाजे के दोनों ओर अनाज के ढेर पर मिट्टी का बड़ा दीपक रखकर उसे जलाएं। दीपक का मुंह दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए। दीपक जलाते समय इस मंत्र का जाप करें: 

मृत्‍युना दंडपाशाभ्‍यां कालेन श्‍याम्‍या सह।
त्रयोदश्‍यां दीप दानात सूर्यज प्रीयतां मम ।।


  • धनतेरस के दिन धन के देवता कुबेर की पूजा की जाती है। मान्‍यता है कि उनकी पूजा करने से व्‍यक्ति को जीवन के हर भौतिक सुख की प्राप्‍ति होती है। इस दिन भगवान कुबेर की प्रतिमा या फोटो धूप-दीपक दिखाकर पुष्‍प अर्पित करें। फिर दक्षिण दिशा की ओर हाथ जोड़कर सच्‍चे मन से इस मंत्र का उच्‍चारण करें: 


ॐ  श्रीं, ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं क्‍लीं श्रीं क्‍लीं वित्तेश्वराय नम: 


  • धनतेरस के दिन मां लक्ष्‍मी की पूजा का विधान है। इस दिन मां लक्ष्‍मी के छोटे-छोट पद चिन्‍हों को पूरे घर में स्‍थापित करना शुभ माना जाता है। 


धनतेरस के दिन कैसे करें मां लक्ष्‍मी की पूजा?

धनतेरस के दिन प्रदोष काल में मां लक्ष्‍मी की पूजा करनी चाहिए। इस दिन मां लक्ष्‍मी के साथ महालक्ष्‍मी यंत्र की पूजा भी की जाती है। धनतेरस पर इस तरह करें मां लक्ष्‍मी की पूजा:


  • सबसे पहले एक लाल रंग का आसन बिछाएं और इसके बीचों बीच मुट्ठी भर अनाज रखें।
  • अनाज के ऊपर स्‍वर्ण, चांदी, तांबे या मिट्टी का कलश रखें। इस कलश में तीन चौथाई पानी भरें और थोड़ा गंगाजल मिलाएं। 
  • अब कलश में सुपारी, फूल, सिक्‍का और अक्षत डालें। इसके बाद इसमें आम के पांच पत्ते लगाएं। 
  • अब पत्तों के ऊपर धान से भरा हुआ किसी धातु का बर्तन रखें। 
  • धान पर हल्‍दी से कमल का फूल बनाएं और उसके ऊपर मां लक्ष्‍मी की प्रतिमा रखें। साथ ही कुछ सिक्‍के भी रखें।
  • कलश के सामने दाहिने ओर दक्षिण पूर्व दिशा में भगवान गणेश की प्रतिमा रखें। 
  • अगर आप कारोबारी हैं तो दवात, किताबें और अपने बिजनेस से संबंधित अन्‍य चीजें भी पूजा स्‍थान पर रखें। 
  • अब पूजा के लिए इस्‍तेमाल होने वाले पानी को हल्‍दी और कुमकुम अर्पित करें। 
  • इसके बाद इस मंत्र का उच्‍चारण करें 


ॐ  श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलिए प्रसीद प्रसीद । 
ॐ  श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मिये नम: ।।



  • अब हाथों में पुष्‍प लेकर आंख बंद करें और मां लक्ष्‍मी का ध्‍यान करें। फिर मां लक्ष्‍मी की प्रतिमा को फूल अर्पित करें। 
  • अब एक गहरे बर्तन में मां लक्ष्‍मी की प्रतिमा रखकर उन्‍हें पंचामृत (दही, दूध, शहद, घी और चीनी का मिश्रण) से स्‍नान कराएं। इसके बाद पानी में सोने का आभूषण या मोती डालकर स्‍नान कराएं। 
  • अब प्रतिमा को पोछकर वापस कलश के ऊपर रखे बर्तन में रख दें। आप चाहें तो सिर्फ पंचामृत और पानी छिड़ककर भी स्‍नान करा सकते हैं। 
  • अब मां लक्ष्‍मी की प्रतिमा को चंदन, केसर, इत्र, हल्‍दी, कुमकुम, अबीर और गुलाल अर्पित करें। 
  • अब मां की प्रतिमा पर हार चढ़ाएं। साथ ही उन्‍हें बेल पत्र और गेंदे का फूल अर्पित कर धूप जलाएं। 
  • अब मिठाई, नारियल, फल, खीले-बताशे अर्पित करें। 
  • इसके बाद प्रतिमा के ऊपर धनिया और जीरे के बीज छिड़कें। 
  • अब आप घर में जिस स्‍थान पर पैसे और जेवर रखते हैं वहां पूजा करें। 
  • इसके बाद माता लक्ष्‍मी की आरती उतारें।

धनतेरस का महत्व (Dhanteras Mahtava) / इस वजह से मनाते हैं धनतेरस :-


पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन के समय शरद पूर्णिमा को चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी को कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धनवन्तरि, चतुर्दशी को मां काली और अमावस्या को लक्ष्मी माता सागर से उत्पन्न हुई थीं। कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को धनवन्तरि का जन्म माना जाता है, इसलिए धनवन्तरि के जन्मदिवस के उपलक्ष में धनतेरस मनाया जाता है।


धनतेरस को हुआ आयुर्वेद का प्रादुर्भाव:-


कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय धनवन्तरि ने संसार को अमृत प्रदान किया था। उन्होंने ही धनतेरस के दिन आयुर्वेद का भी प्रादुर्भाव किया था, जिससे आज भी मानव जाति का कल्याण हो रहा है और वे निरोगी काया प्राप्त कर रहे हैं।

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धनतेरस के दिन बर्तन एवम चांदी खरीदने की प्रथा (Dhanteras Pratha):-



धन्वन्तरी जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरी कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस दिन बर्तन खरीदने की परंपरा है।माना जाता है की पीतल महर्षि धन्वंतरी का धातु है। इससे घर में आरोग्य, सौभाग्य और स्वास्थ्य लाभ होता है। 

खासतौर पर विशेषकर इस दिन पीतल और चांदी के बर्तन खरीदी जाती हैं।धनतेरस के दिन सोना खरीदना सबसे ज्यादा शुभ माना जाता है। इसके पीछे का मान्यता हैं कि इस दिन धन की देवी की पूजा की जाती हैं। यह पूजा धन प्राप्ति के उद्देश्य से की जाती हैं। कहते हैं धन देने से पहले मनुष्य को बुद्धिमता विकसित करना चाहिये। अपने तन मन को शीतल करना चाहिये। इसलिए इस दिन चन्द्रमा जो शीतलता देता हैं का प्रतीक कहे जाने वाली धातु चांदी खरीदी जाती हैं। इस प्रकार धनतेरस के दिन बर्तन एवम चांदी खरीदने की प्रथा हैं। इस प्रकार अब आधुनिक युग में इस दिन मनुष्य को जो भी खरीदना होता है, उसे लक्ष्मी पूजा के महत्व के रूप में खरीदते हैं। मान्यता है कि इस दिन जो कुछ भी खरीदा जाता है उसमें लाभ होता है। धनतेरस के दिन धन संपदा में वृद्धि होती है।

इस दिन धन्वंतरी देव का जन्म हुआ था, इसलिए इनकी पूजा का नियम हैं। इस दिन माता लक्ष्मी एवम मृत्यु के देवता यमराज की भी पूजा की जाती हैं। इसके पीछे कथा कही जाती हैं जो इस प्रकार हैं :-

धनतेरस  कथा (Dhanteras  Story):-


धन्वन्तरी जयंती या धनतेरस मनाये जाने के सन्दर्भ में ये घटना आती है कि, पूर्वकाल में देवराज इंद्र के अभद्र आचरण के परिणामस्वरूप महर्षि दुर्वासा ने तीनों लोकों को श्रीहीन होने का श्राप दे दिया था जिसके कारण अष्टलक्ष्मी पृथ्वी से अपने लोक चलीं गयीं। पुनः तीनोलोकों में श्री की स्थापना के लिए व्याकुल देवता त्रिदेवों के पास गए और इस संकट से उबरने का उपाय पूछा, महादेव ने देवों को समुद्रमंथन का सुझाव दिया जिसे देवताओं और दैत्यों ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। समुद्र मंथन की भूमिका में मंदराचल पर्वत को मथानी और नागों के राजा वासुकी को मथानी के लिए रस्सी बनाया गया।वासुकी के मुख की ओर दैत्य और पूंछ की ओर देवताओं को किया गया और समुद्र मंथन आरम्भ हुआ।

समुद्रमंथन से चौदह प्रमुख रत्नों की उत्पत्ति हुई जिनमें चौदहवें रत्न के रूप में स्वयं भगवान् धन्वन्तरि प्रकट हुए जो अपने हाथों में अमृत कलश लिए हुए थे। भगवान विष्णु ने इन्हें देवताओं का वैद्य एवं वनस्पतियों और औषधियों का स्वामी नियुक्त किया। इन्हीं के वरदान स्वरूप सभी वृक्षों-वनस्पतियों में रोगनाशक शक्ति का प्रादुर्भाव हुआ। 

आयुर्वेद के अनुसार भी धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति स्वस्थ शरीर और दीर्घायु से ही संभव है। शास्त्र भी कहते हैं कि 'शरीर माध्यम खलु धर्म साधनम्' अर्थात- धर्म का साधन भी निरोगी शरीर ही है, तभी आरोग्य रुपी धन के लिए ही भगवान् धन्वन्तरि की पूजा आराधना की जाती है। ऐसा माना जाता है की इस दिन की आराधना प्राणियों को वर्षपर्यंत निरोगी रखती है। समुंद मंथन की अवधि के मध्य शरद पूर्णिमा को चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी को कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धन्वंतरी और अमावस्या को महालक्ष्मी का प्रादुर्भाव हुआ। धन्वंतरी ने ही जनकल्याण के लिए अमृतमय औषधियों की खोज की थी। इन्हीं के वंश में शल्य चिकित्सा के जनक दिवोदास हुए महर्षि विश्वामित्र के पुत्र सुश्रुत उनके शिष्य हुए जिन्होंने आयुर्वेद का महानतम ग्रन्थ सुश्रुत संहिता की रचना की। 


धनतेरस के दिन लक्ष्मी पूजा का महत्व (Dhanteras Laxmi Puja Mahatva) :-



इस दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती हैं। इसके पीछे भी एक कथा हैं।एक भगवान विष्णु ने भूलोक के दर्शन करने की सोची। तब देवी लक्ष्मी ने भी साथ चलने की इच्छा ज़ाहिर की तह विष्णु जी ने उनसे कहा आप साथ आ सकती हैं, लेकिन मैं जैसा बोलूँगा आपको वैसा करना होगा, तब ही साथ चले। देवी को इससे कोई आपत्ति नहीं थी, उन्होंने शर्त मान ली। दोनों ही भूलोक दर्शन के लिए निकल पड़े। तब ही विष्णु जी ने दक्षिण दिशा की तरफ अपना रुख किया और देवी लक्ष्मी से कहा कि देवी आप मेरे पीछे न आये यहीं रहकर मेरा इंतजार करें। उनके जाने के बाद माता लक्ष्मी के मन में ख्याल आया कि आखिर क्यूँ उन्हें इंतजार करने को कहा उन्हें जाकर देखना चाहिये, ऐसा सोचकर वे विष्णु जी के पीछे- पीछे चली गई।लक्ष्मी जी दक्षिण की तरफ बढ़ने लगी, तब ही उन्हें हरे भरे खेत दिखे जिसमे कई फूल भी लगे थे, उन्होंने कुछ फूल तोड़ लिए आगे बड़ी तो गन्ने एवम भुट्टे के खेत थे, उन्होंने वे ही तोड़ लिए।

कुछ समय बाद उन्हें विष्णु जी मिल गये, उन्हें पीछे आटा देख वे क्रोधित हो गये और हाथ में रखे फुल एवम फलों के बारे में पूछा, कि यह किसने दिये तब लक्ष्मी जी ने कहा, ये तो मैंने स्वयं के लिए तोड़े है, तब विष्णु जी को क्रोध आया और उन्होंने कहा तुमने किसान के खेत से चोरी की है, तुम्हे पीछे आने को मना किया था, तुम नहीं मानी और पाप की भागी बनी। अब तुम्हे प्रयाश्चित के रूप में उस किसान के घर 12 वर्षो तक रहना होगा और उसकी सेवा करनी होगी। ऐसा बोल विष्णु जी उन्हें छोड़ कर चले गये।

बारह वर्षो तक लक्ष्मी जी ने किसान के घर के सभी काम किये लक्ष्मी के घर रहने के कारण किसान की संपत्ति कई गुना बढ़ गई, तब ही वह दिन आया जब 12 वर्ष पुरे होने पर विष्णु जी लक्ष्मी जी को लेने आये, पर किसान ने भेजने से ना बोल दिया। तब विष्णु जी ने कहा यह धन की देवी हैं ऐसे ही मनुष्य के घर में नहीं रह सकती, यह तो प्रायश्चित के कारण यहाँ थी। फिर भी किसान नहीं माना। तब लक्ष्मी जी ने कहा कि अगर मनुष्य जाति प्रति कार्तिक कृष्ण पक्ष की तेरस को घी के दीपक जलाकर अपने घर को स्वच्छ कर सायंकाल मेरी पूजा करेंगे, तो मैं अदृश्य रूप से पुरे वर्ष उनके घर में निवास करुँगी, तब ही से धनतेरस के दिन लक्ष्मी जी के पूजन का महत्व पुराणों में बताया गया हैं। 

धनतेरस के दिन यमराज पूजा का महत्व (Dhanteras yamraj Puja  Mahatva) :-



पौराणिक युग में हेम नाम के एक राजा थे, उनकी कोई सन्तान नहीं थी। बहुत मानता मानने के बाद देव गण की कृपा से उनको पुत्र की प्राप्ति हुई। जब उन्होंने पुत्र की कुंडली बनवाई तब ज्योतिष ने कहा इस बालक की शादी के दसवे दिन इसकी मृत्यु का योग हैं। यह सुनकर राजा हेम ने पुत्र की शादी ना करने का निश्चय किया और उसे एक ऐसी जगह भेज दिया जहाँ कोई स्त्री न हो। लेकिन तक़दीर के आगे किसी की नहीं चलती। घने जंगल में राजा के पुत्र को एक सुंदर कन्या मिली, जिससे उन्हें प्रेम हो गया और दोनों ने गंधर्व विवाह कर लिया। भविष्यवाणी के अनुसार पुत्र की दसवे दिन मृत्यु का समय आ गया। उसके प्राण लेने के लिए यमराज के दूत यमदूत पृथ्वीलोक पर आये। जब वे प्राण ले जा रहे थे तो मृतक की विधवा के रोने की आवाज सुन यमदूत के मन में भी दुःख का अनुभव हुआ, लेकिन वे अपने कर्तव्य के आगे विवश थे। यम दूत जब प्राण लेकर यमराज के पास पहुँचे, तो बेहद दुखी थे, तब यमराज ने कहा दुखी होना तो स्वाभाविक है, लेकिन हम इसके आगे विवश हैं। ऐसे में यमदूत ने यमराज से पूछा कि हे राजन क्या इस अकाल मृत्यु को रोकने का कोई उपाय नहीं हैं ? तब यमराज ने कहा कि अगर मनुष्य कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन कोई व्यक्ति संध्याकाल में अपने घर के द्वार पर एवम दक्षिण दिशा में दीप जलायेगा, तो उसके जीवन से अकाल मृत्यु का योग टल जायेगा। इसी कारण इस दिन यमराज की पूजा की जाती हैं।


100 साल बाद इस महासंयोग में धनतेरस:-

धनतेरस अबूझ मुहूर्त है। इसी दिन स्वास्थ्य के देवता भगवान धनवंतरि की जयंती भी है। धनतेरस के दिन शुक्रवार के दिन शुक्र प्रदोष भी रहेगा। जिस कारण से शुक्र प्रदोष और धन त्रयोदशी का महासंयोग बन रहा है। वही अगर इस दिन बने योगों की बात करें तो ब्रह्म व सिद्धि योग बन रहा है। ऐसा महासंयोग 100 साल के बाद दोबारा बन रहा है। इस दिन जो भी शुभ कार्य या खरीदी की जाए वह समृद्धिकारक होती है।


धनतेरस का यह त्यौहार आपके लिये धन-धान्य से परिपूर्ण और स्वास्थ्य वर्धन करने वाला हो इन्हीं शुभकामनाओं के साथ बिहारलोकगीत.कॉम  की ओर से आप सबको धनतेरस की हार्दिक बधाई।

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