कृष्ण जन्माष्टमी पूजा विधि, भोग, व्रत एवं महत्व । Krishna Janmashtami, Dahi Handi (Gokulashtami) Pooja Vidhi, vrat, mahtva in Hindi

Krishna Janmashtami 2019: हिन्‍दू पंचांग के अनुसार कृष्ण जन्माष्टमी भद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि यानी कि आठवें दिन मनाई जाती है। 

“नन्द के घर आनंद भयो,
 जय कन्हैया लाल की!
 हाथी घोड़ा पालकी,
 बोलो जय कन्हैया लाल की!” 

देवताओं में भगवान श्री कृष्ण विष्णु के अकेले ऐसे अवतार हैं जिनके जीवन के हर पड़ाव के अलग रंग दिखाई देते हैं। उनका बचपन लीलाओं से भरा पड़ा है। उनकी जवानी रासलीलाओं की कहानी कहती है, एक राजा और मित्र के रूप में वे भगवद् भक्त और गरीबों के दुखहर्ता बनते हैं तो युद्ध में कुशल नितिज्ञ। महाभारत में गीता के उपदेश से कर्तव्यनिष्ठा का जो पाठ योगेश्वर श्री कृष्ण ने पढ़ाया है आज भी उसका अध्ययन करने पर हर बार नये अर्थ निकल कर सामने आते हैं। भगवान श्री कृष्ण के जन्म लेने से लेकर उनकी मृत्यु तक अनेक रोमांचक कहानियां है।इन्हीं श्री कृष्ण के जन्मदिन को हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले और भगवान श्री कृष्ण को अपना आराध्य मानने वाले जन्माष्टमी(जिसे सटम आथम, गोकुलाष्टमी, श्री कृष्ण जयंती आदि कहते हैं)  के रूप में मनाते हैं। इस दिन भगवान श्री कृष्ण की कृपा पाने के लिये भक्तजन उपवास रखते हैं और श्री कृष्ण की पूजा अर्चना करते हैं।

जन्माष्टमी कब मनाई जाती हैं (When is the festival of Janmashtami celebrated)

हिन्‍दू पंचांग के अनुसार कृष्ण जन्माष्टमी भद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि यानी कि आठवें दिन मनाई जाती है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी हर साल अगस्‍त या सितंबर महीने में आती है। 

जन्माष्टमी को स्मार्त और वैष्णव संप्रदाय के लोग अपने अनुसार अलग-अलग ढंग से मनाते हैं।श्रीमदभागवत को प्रमाण मानकर स्मार्त संप्रदाय के मानने वाले चंद्रोदय व्यापनी अष्टमी अर्थात रोहिणी नक्षत्र में जन्माष्टमी मनाते हैं तथा वैष्णव मानने वाले उदयकाल व्यापनी अष्टमी एवं उदयकाल रोहिणी नक्षत्र को जन्माष्टमी का त्योहार मनाते हैं।

वर्ष 2019 मे कृष्ण जन्माष्टमी कब है? (Krishna Janmashtami or Gokulashtami 2019 Date Muhurat)

जन्माष्टमी को लेकर पंचांग भेद 

इस साल भी जन्माष्टमी 23 और 24 अगस्त 2019 को लेकर काफी उलझन बनी हुई है। ज्योतिर्विदों की माने तो भगवान श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इसलिए जन्माष्टमी रोहिणी नक्षत्र में मनाया जाना सर्वोत्तम माना गया है। पंचांग के मुताबिक, रोहिणी नक्षत्र 23 अगस्त 2019 रात 11:56 बजे से ही शुरु हो जाएगा। 23 अगस्त को रोहिणी नक्षत्र 44 घड़ी का है इसलिए कृष्णजी का जन्मदिन इस घड़ी में मनाना ही शुभ माना गया है। लेकिन कुछ ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, 24 अगस्त को ही सूर्योदय से लेकर 25 अगस्त सुबह 4 बजे तक रोहिणी नक्षत्र के साथ अमृतसिद्धि योग रहेगा, इसलिए शनिवार को श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाए जाने की सलाह दी जा रही है। ऐसे में 24 अगस्त को पूजा का शुभ मुहुर्त 12:01 बजे से 12:46 बजे तक का है और पारण का समय सुबह 6 बजे का है। 

यदि आप भी जन्माष्टमी की तिथियों और शुभ संयोग को लेकर असमंजस की स्थिति में हैं तो आपको किसी अनुभवी ज्योतिषाचार्य से परामर्श लेना चाहिए ताकि आप रोहिणी नक्षत्र में ही भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव मना सकें।

जन्‍माष्‍टमी की तिथि और शुभ मुहूर्त 

निशिथ पूजारात 12:01 बजे से 12:45 बजे तक
पारण05:59 (24 अगस्त) सूर्योदय के पश्चात
रोहिणी समाप्तसूर्योदय से पहले
अष्टमी तिथि आरंभ08:08 प्रातः (23 अगस्त, 2019)
अष्टमी तिथि समाप्त 08:31 प्रातः (24 अगस्त, 2019)
रोहिणी  नक्षत्र  आरंभ03:48 प्रातः (24 अगस्त,2019 )
रोहिणी  नक्षत्र  समाप्त 04:17 प्रातः (25 अगस्त,2019 ) 

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क्यों मनाया जाता है जन्माष्टमी का त्योहार ? – Why is the festival of Janmashtami celebrated?


श्री कृष्ण वसुदेव तथा देवकी की आठवी संतान थे, परंतु श्री कृष्ण के जन्म के तुरंत बाद वसुदेव जी उन्हे कंस से सुरक्षित रखने के लिए अपने मित्र नन्द बाबा के घर छोड़ आये थे। इसलिए श्री कृष्ण का लालन पोषण नन्द बाबा तथा यशोदा मैया ने किया। उनका सारा बचपन गोकुल मे बीता। उन्होंने  अपनी बचपन की लीलाएँ गोकुल मे ही रचाई ।

“परित्राणाय साधुनां विनाशाय च दुष्कृताम् धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे!”

श्री कृष्ण का अवतार पृथ्वी पर फैले अंधकार और बुरी ताकतों को नष्ट करने के लिए था। श्री कृष्ण के बारे में ये भी कहा जाता है कि वे एक सच्चे ब्राम्हण थे जो निर्वाण पहुंचे थे। कृष्णा के नीले रंग को आकाश की अनंत क्षमता और भगवान की शक्ति को प्रकट करता है।

इसके साथ ही उनकी पीली पोशाक पृथ्वी के रंग का प्रतिनिधित्व करती है। बुराई का नाश करने और भलाई को पुनर्जीवित करने के लिए श्री कृष्ण के रूप में एक शुद्द अनंत चेतना का जन्म हुआ था।

श्री कृष्ण बांसुरी बजाने के शौकीन थे उनकी बांसुरी की मोहक धुन दिव्यता का प्रतीक है। वहीं बड़े होने के बाद श्री कृष्ण वापस मथुरा लौट आए जहां उन्होनें अपनी दिव्य शक्ति से राजा कंस के बढ़ रहे अत्याचार और उनकी वजह से फैल रहीं बुराइयों का अंत करने के लिए अपने मामा कंस का अंत कर दिया और वहां फैले अंधेरे को मिटा दिया।

श्री कृष्ण का जीवन

श्री कृष्ण के जीवन में कर्म की निरंतरता और कभी भी निष्क्रिय नहीं रहना उनकी अवतारी को सिद्ध करती हैं। श्री कृष्ण भगवान के रूप थे ये एहसास उन्होनें अपने जन्म और बालपन की घटनाओं से ही दिला दिया था।

जिस तरह अत्याचारी मामा कंस से बचकर उनका कारागृह में जन्म हुआ फिर उसके बाद राजा कंस के सख्त पहर में वासुदेव जी का यमुना पार कर गोकुल तक श्री कृष्ण को ले जाना फिर दूध पीते वक्त पूतना का वध, बक, कालिय और अघ का दमन उन्होनें अपने बचपन में ही कर दिया, बालपन से ही कान्हा जी की बुराई को खत्म कर जैसे अपनी दिव्य शक्ति का प्रदर्शन कर दिया था जिस पर किसी तरह का शक नहीं था।

यहीं नहीं जब ये नटखट कान्हा बड़े हुए तब गोपियों संग उनकी मित्रता और इसके बाद अत्याचारी मामा कंस का वध किया। अर्थात जब से वे पैदा हुए ऐसी कोई घटना नहीं है जहां वे मौजूद नहीं हो, महाभारत की लड़ाई में धनुर्धारी अर्जुन के सारथी बने। इस तरह भगवान श्री कृष्ण की सक्रियता हमेशा ही बनी रही।

भगवान श्री कृष्ण को भगवान का पूर्ण अवतार कहा गया है। श्री कृष्ण का बहु आयामी व्यक्तित्व दिखाई देता है। वे परम योद्धा थे, लेकिन वे अपनी वीरता का इस्तेमाल साधुओं के परित्राण के लिए करते थे। इसके साथ ही वे एक महान राजनीतिज्ञ भी थे लेकिन उन्होंने इस राजनैतिक कुशलता का इस्तेमाल धर्म की स्थापना के लिए किया था।

वे परम ज्ञानी थे। इसलिए उन्होनें अपने ज्ञान का इस्तेमाल लोगों को धर्म के सरल और सुगम रूप को सिखाने में किया था , वे योगीराज थे। उन्होंने योगबल और सिद्धि की सार्थकता लोग मंगल के काम को करने में बताया और उसका इस्तेमाल किसी अन्य स्वार्थसिद्धि के किया जाना चाहिए। वे योग के सबसे बड़े ज्ञाता, व्याख्याता और प्रतिपालक थे।

श्री कृष्ण जी भगवान विष्णु के अवतार भी माने जाते है। भारत विभिनता  मे समानता का देश है, इसी का उदहारण है कि जन्माष्टमी को कई नामो से जाना जाता है। जैसे
  • अष्टमी रोहिणी
  • श्री जयंती
  • कृष्ण जयंती
  • रोहिणी अष्टमी
  • कृष्णाष्टमी
  • गोकुलाष्टमी (Gokulashtami)

कृष्ण जन्माष्टमी पूजा विधि कैसे करे ?(Krishna Janmashtami Pooja Vidhi Mahtva ):

श्री कृष्ण का जन्म वसुदेव तथा देवकी के घर रात्री 12 बजे हुआ था। इसलिए पूरे भारत मे कृष्ण जन्म को रात्री मे ही 12 बजे मनाया जाता है। हर साल भाद्रपद मास की अष्टमी के दिन रात्रि मे 12 बजे हर मंदिर तथा घरों मे प्रतीक के रूप मे लोग श्री कृष्ण का जन्म करते है। जन्म के बाद उनका दूध, दही तथा शुध्द जल से अभिषेक करते है, तथा माखन मिश्री, पंजरी तथा खीरा ककड़ी का भोग लगाते है। तत्पश्चात कृष्ण जी की आरती करते है, कुछ लोग खुशी मे रात भर भजन कीर्तन करते तथा नाचते गाते है।



माखन मिश्री कृष्ण जी को बहुत प्रिय था। अपने बाल अवतार मे उन्होंने इसी माखन के लिए कई गोपियों की मटकिया फोड़ी थी और कई घरों से माखन चुरा कर खाया था। इसलिए उन्हें माखन चोर भी कहा जाता है और इसीलिए उन्हें माखन मिश्री का भोग मुख्य रूप से लगाया जाता है। कई जगह पर मटकी फोड़ प्रतियोगिता भी की जाती है, इसमें एक मटकी में  माखन मिश्री भरकर इसे ऊंची रस्सी पर बांध दिया जाता है और विभिन्न जगह से मंडलिया आकर इसे तोड़ने का प्रयास करती है और कृष्ण जन्म उत्सव मनाती है।

कुछ लोग इस दिन पूरे दिन का व्रत/उपवास रखते है और कृष्ण जन्म के पश्चात भोजन ग्रहण करते है। इस दिन के व्रत/उपवास की विधि एकदम साधारण होती है कुछ लोग निराहार रहकर व्रत करते है, तो कुछ लोग फल खाकर व्रत करते है, तो कुछ लोग फरियाल खाकर व्रत/उपवास करते है क्योकि व्रत/उपवास के लिए कोई नियम नहीं है। श्रद्धालु अपनी इच्छा अनुसार व्रत/उपवास कर सकते है और श्री कृष्ण की भक्ति कर सकते है। यह बात हमेशा याद रखिए कि अगर आप व्रत/करने मे समर्थ नहीं है, तो व्रत/उपवास करना जरूरी नहीं है। आप अपने मन मे श्रद्धा रखकर भी पूजन करते है, तो माखन चोर कान्हा आप पर कृपा करते है। आपकी भक्ति स्वीकार करते है, और आपको अपना परम आशीर्वाद  देते है।

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कृष्ण जन्माष्टमी भोग कैसे बनाये (Krishna Janmashtami Bhog Mahtva):

श्री कृष्ण जी भोग स्वरूप माखन मिश्री, खीरा ककड़ी, पंचामृत तथा पंजरी का भोग लगाया जाता है। ध्यान रखिए श्री कृष्ण को लगाया हुआ भोग बिना तुलसी पत्र के स्वीकार नहीं होता है। इसलिए जब भी आप कृष्ण जी को भोग लगाए, उसमें तुलसी पत्र डालना ना भूले। श्री कृष्ण जी के भोग मे बने पंचामृत मे दूध, दही, शक्कर, घी तथा शहद मिला रहता है, तथा भोग लगते वक़्त इसमे तुलसी पत्र मिलाये जाते है।

श्री कृष्ण जी को जो पंजरी भोग मे लगाई जाती है वह भी साधारण पंजरी से अलग होती है। वैसे तो पंजरी आटे की बनती है, परंतु जो पंजरी कृष्ण जी को अर्पित करते है, उसे धनिये से बनाया जाता है। पंजरी बनाने के लिए पिसे हुये धनिये को थोड़ा सा घी डालकर सेका जाता है। और इसमें पिसी  शक्कर मिलाई जाती है। लोग इसमे अपनी इच्छा अनुसार सूखे मेवे मिलाते है, कुछ लोग इसमे सोठ भी डालते है और फिर श्री कृष्ण को भोग लगाते है।

कृष्ण जन्माष्टमी का भारत में उत्सव (How to Celebrate Janmashtmi ):


वैसे तो पूरे भारत मे श्री कृष्ण जन्म उत्सव बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है, परंतु गोकुल, मथुरा, वृन्दावन श्री कृष्ण की लीलाओं के प्रमुख स्थान थे। इसलिए यहाँ पर इस दिन का उल्लास देखने लायक होता है। मंदिरो मे पूजा अर्चना, मंत्रोच्चार, भजन कीर्तन किए जाते है। इस दिन मंदिरो की साज सज्जा भी देखने लायक होती है। श्री कृष्ण के भक्त भी यही चाहते है, इस दिन कान्हा के दर्शन इन जगहों पर हो जाये।


महाराष्ट्र के मुंबई तथा पुणे जन्माष्टमी पर अपने विशेष दही हांडी उत्सव को लेकर मशहूर है तथा यहाँ  इस दिन होने वाली दही हांडी प्रतियोगिता मे दी गयी इनाम की राशी आकर्षण का केंद्र है। यह ईनाम की राशि ही है, जिसके कारण यहाँ पर दूर दूर से आई मंडलियों का उत्साह देखते ही बनता है। यहाँ पर बंधी दही की हांडी को फोड़ने के लिए मंडलीया कई दिनो से तैयारियों में जुट जाती है, तथा कई लड़कों का समूह इस दिन एक के ऊपर एक चढ़कर इसे फोड़ने का प्रयास करता है, तथा जो लड़का सबसे ऊपर होता है तथा दही की हांडी को फोड़ता है उसे गोविंदा कहकर पुकारा जाता है। जैसे ही गोविंदा दही हांडी फोड़ता है, उसमें भरा माखन सारी मंडली पर गिरता है और उस जगह एक अलग ही माहोल बन जाता है।

गुजरात मे द्वारिका जहाँ कहा जाता है कि श्री कृष्ण ने अपना राज्य स्थापित किया था। वहाँ जन्माष्टमी का उत्सव वहाँ के मशहूर मंदिर मे विशेष पूजा अर्चना करके तथा दर्शन करके मनाया जाता है । तो जम्मू मे इस दिन पतंग उड़ाने का रिवाज है।


बिहार ,उड़ीसा, पूरी तथा बंगाल मे इस दिन रात्री मे पूजा अर्चना की जाती है, तथा दूसरे दिन नन्द उत्सव मनाया जाता है। इस दिन लोग नाचते गाते तथा कीर्तन करते है। नन्द उत्सव के दिन यहाँ  के लोग तरह तरह के पकवान बनाते है, तथा अपना व्रत/उपवास तोड़ते है।श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दौरान कई जगहों पर भव्य मेला का आयोजन किया जाता है ,जिसमें तेघरा (बिहार) में बहुत ही शानदार मेला का आयोजन होता है। वही दक्षिण मे इसे गोकुल अष्टमी नाम दिया गया है, तथा वहाँ भी इस दिन भगवान कृष्ण की पूजा अर्चना की जाती है। इसी प्रकार सभी स्थानों की अपनी अलग पूजा अर्चना की विधियां है। परंतु अगर मध्य भारत की बात की जाए, तो वहाँ पर मध्य मे होने के कारण हर तरफ की प्रथाओं का अनुसरण किया जाता है, तथा कृष्ण जन्म, भजन कीर्तन, मंदिरों में विशेष पूजन साज-सज्जा तथा दही हांडी सारी प्रथाएं अच्छी तरह से निभाई जाती है।

॥ बोलो श्रीकृष्ण भगवान की जय ॥

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  1. बहुत सुन्दर लेख।👍
    जय कन्हैया लाल की,
    मदन गोपाल की।🙏

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